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पर्यावरण वार्ता (अंक 3 )
22 अप्रैल 1970 को पहली बार पृथ्वी दिवस तब मनाया गया जबकि यूनाईटेड स्टेट्स के दो हजार से अधिक विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों से अध्यापक और छात्र एक साथ इस कारण के लिये इकट्ठे हुए। उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से मार्च कर धरती के गिरते स्वास्थ्य की ओर विश्व का ध्यान खींचने की महत्वपूर्ण पहल की थी। जाने माने फिल्म और टेलीविजन अभिनेता एड्डी अल्बर्ट के जन्मदिवस पर इसे मनाये जाने का प्राथमिक कारण उनकी पर्यावरण चेतना तथा जागरूकता के लिये किया गया उनका कार्य माना जाता है। अलबर्ट ने अपने टेलिविजन शो “ग्रीन एंकर्स” में पर्यावरण के प्रति जन-चेतना फैलाने में महति भूमिका का निर्वहन किया था। यद्यपि इस दिवस के धरती के प्रति जागरूकता प्रसारित करने के लिये चयन किये जाने के अन्य कारण भी थे, उदाहरण के लिये, अप्रैल माह में प्रकृति अपने सर्वाधिक सौष्ठव में होती है जो लगाव की भावना के प्रसारण का सर्वोत्तम समय भी है। आज यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि धरती की पीड़ा को हम समझें और उसके संरक्षण और नव-जीवन के लिये प्रयसरत हों।
पिछले दिनों (20 मार्च) विश्व गोरैया दिवस था। जैव-विलुप्तता का गोरैया से बड़ा उदाहरण देखने को नहीं मिलता। एक समय था जबकि गोरैया हमें घर-घर में नज़र आया करती थी किंतु अब वह तलाशने पर भी दिखाई नहीं पड़ती है। इसी तरह यदि अपने मष्तिष्क पर हम जोर दें तो जीवों-पादपों की एक लम्बी सूची तैयार हो सकती है जिन्हें हमने एक दशक में ही अपनी नजरों से ओझल होते हुए देखा है। आज विकास और विलुप्तता की यह एक असमान दौड़ है। तथ्य यह भी है कि जैव-विलुप्तता एक स्वाभाविक प्रक्रिया है तथा प्रकृति इसे शनै: शनै: अंजाम देती रहती है। प्रकृति जिन जीवों को अपने सुचारू संचालन में अनुपयुक्त पाती है उनसे पीछा छुडा लेती है। उदाहरण के लिए डायनासोर जो एक समय धरती पर व्यापकता से प्रसारित थे, आज विलुप्त प्राणी हैं। यह समझने योग्य बात है कि स्वाभाविक विलुप्तीकरण की प्रक्रिया में खतरा प्राय: उन अधिक सफल प्रजातियों पर होता है जो कम सफल प्रजातियों पर अपनी उपस्थिति फैला लेते हैं।
पृथ्वी पर बड़ी संख्या में विलुप्तताओं के पांच काल रहे हैं ये 4,400 लाख, 3,700 लाख, 2,500 लाख, 2,100 लाख एवं 650 लाख वर्ष पूर्व हुए थे। ये प्राकृतिक प्रक्रियाएं थीं। परंतु यह बात वर्तमान में हो रही विलुप्तताओं पर लागू नहीं होती। आज जीव-वनस्पतियां बहुत तेजी से और अस्वाभाविक प्रक्रियाओं के फलीभूत विलुप्त होती जा रही हैं। आज होने वाली विलुप्तताओं के लिये जीवजगत का वह प्राणी सबसे अधिक जिम्मेदार है जो इसके शीर्ष पर होने का दम्भ रखता है- अर्थात मनुष्य। एक सत्य यह है कि वर्तमान में मौजूद जीवों की संख्या पृथ्वी पर आज तक रहे कुल जीवों की मात्रा का महज एक प्रतिशत है जबकि लगभग निनानबे प्रतिशत जीवन अपनी प्रवास यात्रा समाप्त कर विलुप्त हो चुका है। सन् 1000 से 2000 के मध्य हुए प्रजातीय विलुप्तताओं में से अधिकांश मानवीय गतिविधियों के चलते प्राकृतिक आवासों के विनाश के कारण हुई हैं। हमें इस तथ्य को संज्ञान में लेते हुए ही सभी प्रकार के विकासोन्मुख कार्यों की योजना बनाने की आवश्यकता है। यह धरती सभी जीव-जंतुओं/पादपों की है, मनुष्य सर्वेसर्वा नहीं अपितु एक घटक मात्र है।
अरुण कुमार मिश्रा (कार्यपालक निदेशक)
पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन विभाग
PHOTOGRAPH OF THE WEEK
उपरोक्त तस्वीर एनएचपीसी के तीस्ता लो डैम -III एवं IV परियोजनाओं, के लिए स्थापित ऑर्किडेरियम में खींची गई है। ऑर्किडेरियम एक संरक्षित क्षेत्र है जो ऑर्किड की विभिन्न किस्मों ( लुप्तप्राय व अन्य ) के लिए वांछित पर्यावरणीय परिस्थितियाँ प्रदान करता है ताकि वे बहुतायत से विकसित हो सकें। यह ऑर्किडेरियम वन्यजीव/जैव विविधता संरक्षण योजना के अंतर्गत ‘रियांग, दार्जलिंग जिला, पश्चिमी बंगाल’ में विकसित किया गया है। ऑर्किडेसिअ (आर्किड प्रजाति) फूल – पौधों के सबसे बड़े परिवारों में से एक है और इसकी कई प्रजातियां हर्बल दवाओं और बागवानी उद्योग के लिए अत्यधिक मूल्यवान हैं। यह प्राय: भूमि पर अथवा दूसरे पेड़ों पर आश्रय ग्रहण कर उगते हैं। ऑर्किड जो पेड़ की सतहों पर बढ़ते हैं, प्रकाश की तरफ ऊपर की ओर चढ़ते हैं, उन्हें अधिजीविक (एपिफाइट्स) कहा जाता है। उनकी उजागर, वायवीय जड़ें हवा और उनके आसपास की जैविक सतहों से नमी और पोषक तत्व इकट्ठा करती हैं। किसी भी समूह के फूल-पौधों में इतने विविध रूप नहीं हैं जितने और्किडों में। वास्तव में इनके फूल की तथा अन्य भागों के रूपांतरण ने इन्हें इतना भिन्न बना दिया है कि ये साधारण एकदली फूल जैसे लगते ही नहीं हैं। और्किडों के फूल चिरजीवी होने के लिए प्रसिद्ध हैं।इसे ” प्रकृति के नायब तोहफों ” में से एक कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पर्यावरण शब्दकोष (1)
Photograph Source: https://www.achisoch.com/hindi-slogans-on-environment.html
क्र.
सं. |
शब्द | अर्थ |
1 | अतिसंवेदनशीलता (Hypersensitivity) |
जलवायु परिवर्तनशीलता एवं उसकी चरम स्थितियों के साथ साथ जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का सामना करने वाली किसी प्रणाली की अतिसंवेदनशीलता अथवा क्षमता की वह ऊपरी सीमा, जिसके बाद वह इनका सामना करने में असमर्थ हो जाती है। |
2 | अधिपादप (Epiphytes) |
जिन दो अलग अलग प्रकार के पौधों का संबंध भोजन आधारित न होकर केवल आवास आधारित होता है, उन पौधों को अधिपादप कहते हैं । ये वे पौधे होते हैं, जो आश्रय के लिये वृक्षों पर निर्भर होते हैं लेकिन परजीवी नहीं होते। ये वृक्षों के तने, शाखाएं, दरारों, कोटरों, छाल आदि में उपस्थित मिट्टी में उपज जाते हैं व उसी में अपनी जड़ें चिपका कर रखते हैं। कई किस्मों में वायवीय जड़ें भी पायी जाती हैं। ये पौधे उसी वृक्ष से नमी एवं पोषण खींचते हैं। इसके अलावा वर्षा, वायु या आसपास एकत्रित जैव मलबे से भी पोषण लेते हैं। ये अधिपादप पोषण चक्र का भाग होते हैं और उस पारिस्थितिकी की विविधता एवं बायोमास, दोनों में ही योगदान देते हैं। ये कई प्रजातियों के लिये खाद्य का महत्त्वपूर्ण स्रोत भी होते हैं।
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3 | अनिच्छित ध्वनियाँ (Unwanted Sounds)
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“अनिच्छित ध्वनियाँ” वे होती हैं, जो हमारे कार्य – कलापों और गतिविधियों में बाधाएँ उत्पन्न करती हैं। प्रभाव के अनुसार उनका वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है –
· श्रव्य स्तर पर बाधा उपस्थित करने वाली ध्वनियाँ, जिनसे हमारी श्र्वानेंद्रियाँ कष्ट या पीड़ा का अनुभव करने लागती हैं। · जैविक स्तर की अवांछित ध्वनियाँ, जो हमारे शारीरिक क्रिया-कलापों पर प्रतिकूल असर डालती हैं । तीसरे प्रकार की ध्वनियाँ वे हैं, जो समूचे सामाजिक व्यवहार को विपरीत ढंग से प्रभावित करने लगती हैं । |
4 | अनुकूलन (Adaptation) |
अनुकूलन वह क्रिया, जिसके द्वारा कोई जीव स्वयं को अपने पर्यावरण के अनुकूल ढालता है तथा वह उस स्थान विशेष के पर्यावरण के अनुसार अपने में परिवर्तन कर के स्वयं को उस पर्यावरण में रहने योग्य बनाता है । अनुकूलन एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसके द्वारा जीवित पदार्थ स्वयं को नई पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेते हैं । प्रत्येक पौधे तथा पशु की पर्यावरणीय तापमान, प्रकाश तथा अन्य तथ्यों के प्रति अपनी अलग सहनशक्ति होती है। इन सबके साथ पूर्णत: अनुकूलित होने वाला ही जीवित रहता है। अनुकूलन दो प्रकार का होता है – व्यक्तिगत अनुकूलन तथा सामूहिक अनुकूलन ।एक अवयव के जीवन के दौरान उसका व्यक्तिगत अनुकूलन उत्पन्न होता है, जबकि सामूहिक अनुकूलन किसी अवयव की जनसंख्या हेतु लंबी समयावधि में उत्पन्न होता है। |
5 | अपशिष्ट (Waste) |
यह रद्दी, कचरा, उत्सर्ग आदि के नाम से भी जाना जाता है । किसी वस्तु का प्रयोग करने के बाद त्याज्य अंश जिसका उपयोग पुनः हो सकता है, अपशिष्ट कहलाता है । यह प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होता है। कृषीय अपशिष्ट, म्युनिसिपल अपशिष्ट, औद्योगिक अपशिष्ट इत्यादि विविध प्रकार के अपशिष्ट होते हैं। यह ठोस तथा द्रव दोनों रूप में हो सकता है जैसे – कूड़ा-कचरा, मल-जल । |
6 | अपक्षय
( Weathering ) |
शैलों का टूट-फूट कर अंत में मिट्टी बनना “अपक्षय” कहलाता है । सामान्यता ताप में परिवर्तन, आद्रता, कार्बन डाई ऑक्साइड का होना आदि अपक्षय के कारक हैं । |
7 | अपवाह
( Runoff) |
अपवाह या धरातलीय अपवाह जल की वह मात्रा है जो पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में ढाल का अनुसरण करते हुए जलधाराओं, सरिताओं, नालों और नदियों के रूप में प्रवाहित होता है।अपवाह को पानी के चक्र के हिस्से के रूप में वर्णित किया जा सकता है जो भूजल या वाष्पीकरण में अवशोषित होने के बजाय सतह के पानी के रूप में भूमि पर बहता है। |
8 | अप्पिको आंदोलन
( Appico Andolan )
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यह आंदोलन अर्थ एवं अभिप्राय में उत्तर भारत के “ चिपको आंदोलन के समान ही है । ‘अप्पिको आंदोलन’ के प्रमुख संचालक पांडुरंग हेगड़े थे,जिन्होंने आंदोलन का प्रेरणादायक नारा ‘उलिसु बेलेसू मतबलिसू’ अर्थात – ‘ बनाओ, बढाओ और काम में लाओ ’ प्रचलित किया। इस आंदोलन में भी पेड़ों से चिपक कर उन्हें बचाया जाता है । ‘अप्पिको’ कन्नड़ भाषा का शब्द है, जो कन्नड़ में ‘ चिपको’ का पर्याय है । पर्यावरण संबंधी जागरूकता का यह आंदोलन अगस्त 1983 में शुरू हुआ । यह बड़ेथी हाइडल प्रोजेक्ट के विरोध में उत्तर कन्नड़ के लोगों द्वारा शुरू किया गया । यह आन्दोलन पूरे जोश से लगातार एक महीने आठ दिन तक चलता रहा । युवा लोगों ने भी जब यह पाया कि उनके गाँवों के चारों और के जंगल धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं तो वे इस आंदोलन में जोर-शोर से लग गए । |
9 | अम्लता-क्षारता व पी.एच.
(Acidity-Alkaliness and P.H.) |
जब जल में लवण तथा खनिज पदार्थ मिलते हैं, तब वह जल अम्लीय या क्षारीय हो जाता है ।पी. एच. जल के अम्लीय या क्षारीय स्वाभाव का सूचक है I अम्ल की वृद्धि से घटता और क्षारता की वृद्धि से पी. एच. बढ़ता है ।उदासीन जल का पी. एच. लगभग 7.0 होता है । पी. एच. मापने के लिए रंगमापी विधियाँ ( सूचकों का प्रयोग करके ) या स्वचालित विधुतमापीय विधियाँ ( पी. एच. मीटर ) हैं ।
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10 | अम्ल वर्षा
( Acid Rain )
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शुद्ध वर्षा जल में कार्बन डाई- ऑक्साइड गैस घुली होती है, जिसके कारण वह पूर्णत: उदासीन न होकर कुछ-कुछ अम्लीय होता है ; किंतु औद्योगिक प्रदूषण के कारण वायुमंडल में प्राप्य गंधक तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सल्फ्यूरिक तथा नाइट्रिक अम्ल मिल जाने से वह पूर्णत: अम्लीय हो जाता है ।यही अम्ल वर्षा है ।यह अम्लता कार्बन डाई- ऑक्साइड के कारण नहीं होती। अम्ल वर्षा से वनस्पति तथा मृदा को क्षति पहुँचती है। साथ ही झील आदि के जलीय जीव भी इस से दुष्प्रभावित होते हैं।भवनों व इमारतों पर भी अम्ल वर्षा का कुप्रभाव पड़ता है। सल्फर डाई- ऑक्साइड इमारतों में स्थित चूने व कुछ पत्थरों से प्रतिक्रिया करती है, जिससे जिप्सम पैदा होता है ।इससे कई बार इमारतों में दरारें उत्पन्न हो जाती हैं ।
ऐतिहासिक इमारत ताजमहल को भी सल्फर डाई- ऑक्साइड से खतरा बना रहता है ।संगमरमर पर इस गैस का सीधा प्रभाव पड़ता है और उसकी सफेदी धूमिल पड़ने लगती है।यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करके ताजमहल के आस-पास के प्रदूषणकारी उद्योगों को हटवाया है।इमारतों व उद्योगों में प्रयुक्त धातुओं पर अम्ल वर्षा का कुप्रभाव पड़ता है। तांबा, अल्युमीनियम जैसी बहुतायत से प्रयोग होनेवाली धातुएँ प्रभावित होने लगती हैं ।ये धातु – प्रदूषण का भी काम करती हैं और चीजें विषैली हो जाती हैं ।
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– पूजा सुन्डी
सहायक प्रबंधक ( पर्या. )
Presentation on Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement, Environmental Management and Sustainable Development of Hydropower Projects
Felicitation by Shri Sanjeev Chopra, IAS, Director (LBSNAA)
- Centre for Rural Studies, Lal Bahadur Shastri National Academy of Administration (LBSNAA) organised a two days’ Workshop on “The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act (RFCTLARR Act), 2013 and other Land Acquisition Acts: Issues in Implementation, Divergence and Convergence” from 4th – 5th April 2019. In the workshop a presentation on “ RFCTLARR Act, 2013: Issues in Implementation, Divergence & Convergence” was given by Shri Gaurav Kumar, DGM (Environment).The workshop was an ideal platform for the representatives from different Ministries, Public Sector Undertakings, Corporates, Revenue Departments of States, Practitioners, Academicians and other stakeholders, to discuss the issues, challenges and solutions in implementation of the RFCTLARR Act, 2013 and convergence of the Act with other Special Acts. On the issue of divergence, R&R provisions of NHPC R&R Policy and best practices at various power stations on R&R etc. were also presented.
- “Ek Kaam Desh KE Naam (EKDKN), organized a one day conference on “Environment and Sustainable Development” on 25.03.2019 at India Habitat Centre, New Delhi. The conference deliberated important issues, innovations and integrated approaches towards Environmental Sustainability in different Industries. During the conference a presentation on “Implementation of Environmental Management Plans for Sustainable Development of Hydropower Projects” was given by Shri Gaurav Kumar, DGM (Env.). The presentation highlighted the Environmental Conservation and environment initiatives undertaken by NHPC at its various projects and power stations, which were appreciated by the experts and panellists present in the conference.
TRAINING ON “ CONSERVATION OF INDIGENOUS FISH SPECIES AND SUSTAINABLE AQUACULTURE IN WARM WATER AND COLD WATER REGION OF LOWER DIBANG VALLEY AND DIBANG VALLEY DISTRICT” UNDER CSR and SD OF NHPC DIBANG MULTIPURPOSE PROJECT
A two days training programme was organised on “ Aquaculture for skill development of fish farmers of Lower Dibang valley” on 27th – 28th November 2018 and on “ Trout Farming Techniques in Cold Water Region for Skill Development of Fish Farmers of Dibang Valley District” on 17th to 18th December 2018, in collaboration with State Fisheries Department, Arunachal Pradesh. The programme was attended by more than 70 fish farmers in Lower Dibang Valley and more than 40 fish farmers of Dibang Valley district. The programme got an overwhelming response from the fish farming community. The aim of the programme was not only to divert the people from using the destructive fishing methods and to make them aware about the conservation of biodiversity but also to give them the alternate source of income by developing their skill to take up the sustainable aquaculture as a means of their livelihood generation.
Training was attended by the officials of the State Fisheries Department and NHPC. On the occasion, Dr. Avinash Kumar, DGM (Environment) highlighted the importance of fisheries in livelihood generation and nutritional security of the tribal people, whereas Shri Nabam Tania, DFDO highlighted the importance of good management practices in Aquaculture and relevance of biodiversity to the tribal people. The training was interactive and farmers were motivated to take up aquaculture as an income generating scheme.
गंगेटिक डॉल्फिन (राष्ट्रीय जलीय पशु)
(चित्र आभार : इन्टरनेट/गूगल)
लेख/आलेख :-
1)डॉ. अनिल कुमार त्रिपाठी, महाप्रबंधक(पर्याo) 2) गौरव कुमार, उप-महाप्रबंधक (पर्याo)
3) विशाल शर्मा, वरिष्ठ प्रबंधक (पर्याo) 4) मनीष कुमार, सहायक प्रबंधक (मत्स्य)
(पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन विभाग)
“राजभाषा ज्योति” में प्रकाशित – अंक : 29, अप्रैल-सितम्बर’2016
परिचय:
गंगेटिक डॉल्फिन, मीठे पानी की एक जलीय स्तनधारी जीव हैं। ये कोर्डेटा संघ और मेमेलिया कक्ष के अंतर्गत सिटेसियन ऑर्डर से संबंध रखते हैं। इनका द्विपद नाम प्लाटानिस्टा गंगेटिका है। ये प्रायः गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों में पायी जाती हैं। यह आमतौर पर गंगा नदी में “सुसु” और ब्रह्मपुत्र नदी में “हूहू” नाम से जानी जाती है।
वितरण:
भारत में गंगेटिक डाल्फिन का वितरण असम, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में हैं। गंगेटिक डाल्फिन के लिए अपर गंगा नदी, चंबल नदी (मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश), घाघरा और गंडक नदियों (बिहार और उत्तर प्रदेश), गंगा नदी, (वाराणसी से पटना, उत्तर प्रदेश और बिहार), सोन और कोसी नदियों (उत्तर प्रदेश और बिहार), ब्रह्मपुत्र नदी (सादिया से धुबरी तक, अरुणाचल प्रदेश की तलहटी से बंगलादेश सीमा तक) और कुलसी नदी (ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी) को आदर्श निवास के रूप में जानी जाती है। कुछ डाल्फिन की आबादी सुबनसिरी नदी (ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी) में भी पायी जाती है। भारत में गंगेटिक डॉल्फ़िन की आबादी वाली कुल नदी पद्धति की लंबाई लगभग 1050 किoमीo है। हालांकि गंगेटिक डाल्फिन की आबादी नदी में बिखरी हुई हैं, पर ज्यादातर इनकी आबादी नदियों के संगम पर पायी जाती है, जहां प्रायः गहरे पानी की अधिकता एवं पानी की धारा प्रबल रहती है। एक अध्ययन के अनुसार ब्रह्मपुत्र नदी में गंगेटिक डॉल्फिन को ऐसे जगह बहुतायत में पाया गया है, जहाँ नदी में पानी कि गहराई 4.1 से 6 मीटर के बीच, जबकि सबसे कम संख्या 3.95 मीटर गहराई पर पायी गयी है। ये प्रायः मगरमच्छ, कछुए और आर्द्रभूमि वाली पक्षियों के साथ अपना निवास स्थान साझा करना पसंद करती हैं।
विशिष्टता:
गंगेटिक डॉल्फिन (“सुसु” या “हूहू”) की अधिकतम लंबाई 2.6 मीटर (8 फीट) और वजन 100 किलोग्राम तक पाया गया है। गंगेटिक डॉल्फ़िन का रंग भूरा, त्वचा चिकनी और शरीर का मध्य भाग्य गठीला होता है, जबकि डॉल्फिन शावक जन्म के समय चॉकलेट भूरे रंग का होता है। गंगेटिक डॉल्फ़िन के पास एक लंबी चोंच और साथ में ऊपरी और निचले जबड़े के प्रत्येक पक्ष पर कुल 28 तेज घुमावदार दांत होते हैं। इनके फ्लिपर्स व्यापक और पैडल की तरह होते हैं। चूकीं ये स्तनधारी हैं, अतः ये फेफड़ों से सांस लेते हैं और 30-50 सेकंड में कम से कम एक बार सांस लेने के लिए सतह के ऊपर आया करती हैं। यह 5 0C से 35 0C तक पानी की तापमान में आराम से जीवन निर्वाह करती है। इनके ऑप्टिक इंद्रियाँ अल्पविकसित होने के साथ-साथ इनके नेत्र लेंस भी काफी कमज़ोर होते हैं, जिनकी वजह से ये प्रभावी रूप से अंधी होती हैं, लेकिन इसकी भरपाई इनके अच्छी तरह से विकसित सोनार संवेदना से हो जाती है। डॉल्फिन की विशिष्टता इनकी यही अत्यधिक विकसित सोनार संवेदना है। यह केवल ऐसे जलीय स्तनपायी हैं, जिनकी सोनार संवेदना (ध्वनि) इस हद तक विकसित है कि, यह इको-लोकेशन की मदद से ही नेविगेशन और अपने भोजन के लिए शिकार करती हैं। ये 2,00,000 हर्ट्ज (Hz) तक अल्ट्रा सोनिक ध्वनि पैदा करती हैं, जबकि मानव कान की सुनने की क्षमता केवल 20,000 हर्ट्ज (Hz) तक है। इसकी मदद से यह प्रकाश की तीव्रता और प्रकाश की दिशा का पता लगाने के लिए सक्षम है। डॉल्फिन अपने बगल से तिरछे होकर तैर सकती हैं, जो इन्हें सारे सिटेसियन्स में अनुपम बनाते हैं। डॉल्फिन, कछुए, मगरमच्छ और शार्क की कुछ प्रजातियों के साथ-साथ दुनिया में सबसे पुराने प्राणियों में से एक है।
जीवविज्ञान:
परिपक्व मादा डाल्फिन एक परिपक्व नर की तुलना में बड़ी होती है। मादा 10-12 साल की उम्र में यौन परिपक्वता प्राप्त करती है, जबकि नर उनसे पहले परिपक्व हो जाते हैं। गर्भ की अवधि 9-11 महीने होती है और एक मादा 2-3 वर्षों में केवल एक डॉल्फिन शावक (65 सेमी लंबाई) को जन्म देती है। एक डॉल्फ़िन अपने पूरे जीवनकाल (लगभग 25 – 28 वर्ष) में औसतन पाँच से छह बच्चे को जन्म देती है। डॉल्फिन के बच्चों का जन्म ज्यादातर दिसंबर से जनवरी और मार्च से मई के बीच केंद्रित होता है। लगभग एक वर्ष के बाद, किशोर दूध पीना छोड़ देते हैं और वे 8-10 साल की उम्र में यौन परिपक्वता प्राप्त करते हैं।मानसून के दौरान डॉल्फिन मुख्य नदी प्रणालियों की सहायक नदियों की ओर पलायन करती हैं। कभी कभी, डॉल्फिन तैरते समय अपने चोंच पानी की सतह से ऊपर रखती हैं, तो कभी हवा मे छलांग लगाकर वापस पानी में अपने बगल की तरफ से लैंडिंग करती हैं। डॉल्फिन प्रायः भोजन के लिए झींगा और मछलियों के किस्म जैसे कार्प और कैटफ़िश को अपना शिकार बनाती है। चूँकि डॉल्फिन आम तौर पर अंधी होती हैं, इसलिए अपने शिकार को पकड़ने के लिए ये एक अल्ट्रासोनिक ध्वनि उत्पन्न करती हैं जो शिकार तक पहुंचता है, फिर डॉल्फिन अपने मन में इस छवि को कैद करती हैं और अपने शिकार को पकड़ लेती हैं। ये ज्यादातर अपना शिकार कम प्रवाह की पानी में करती हैं। डॉल्फिन तंग समूह में रहना पसंद नहीं करती है।
संरक्षण:
गंगेटिक डॉल्फिन कुछ साल पहले बड़ी संख्या में पायी जाती थी। लेकिन अब इनकी संख्या गंगा नदी में मछली पकड़ने (गिल नेटिंग), अवैध शिकार, रेत खनन और वनों की कटाई (असम की कुलसी नदी में) जैसे विभिन्न मानव गतिविधियों की वजह से काफी नीचे आ गयी है। सन 1982 में गंगेटिक डॉल्फ़िन की कुल आबादी 6000 थी, जो 2005 में केवल 2000 संख्या तक रह गयी और 2012 के सर्वेक्षण के अनुसार अब यह आंकड़ा घटकर 1800 की संख्या से भी कम हो गयी है। यह अनुमान है कि लगभग 100 डॉल्फिन गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी में सालाना मारी जाती हैं। डॉल्फिन का तेल, गठिया के लिए दवा के रूप में और कैटफिश के चारा की तैयारी के लिए प्रयोग किया जाता है।
गंगेटिक डॉल्फिन को भारतीय वन्यजीव अधिनियम, 1972 के अनुसूची 1 में शामिल किया गया है। इस अधिनियम के अनुसार, डॉल्फिन को मारने या उनके किसी भी हिस्से को रखने के अपराध के लिए संबंधित व्यक्ति को 1 से 6 साल तक की कैद और कम से कम 6000 रुपए तक का जुर्माना रखा गया है। गंगेटिक डॉल्फिन को “कन्वेंशन ऑन इन्टरनेशनल ट्रेड इन इंडेञ्जर्ड स्पीसीज” (CITES) के ‘परिशिष्ट- I’ में सूचिबद्ध किया गया है, ताकि इनके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर रोक लग सके। इनकी संख्या में निरंतर गिरावट के कारण ही IUCN द्वारा सन 1996 में इसे ‘अतिसंवेदनशील’ की स्थिति से ‘लुप्तप्राय प्रजाति’ में तब्दील किया गया था। इस प्रजाति को IUCN द्वारा संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट, 2006 में “लुप्तप्राय प्रजाति” के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया है।
राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (National Chambal Sanctuary) में गंगेटिक डॉल्फिन की आबादी तत्काल खतरे में है, जिनका प्रत्यक्ष कारण नदी की घटती गहराई और रेत टीलों द्वारा नदी का छोटे-छोटे खंडों में विभाजित होना है। डॉल्फ़िन के संरक्षण के उपायों को मद्देनजर रखते हुए डॉल्फिन अभयारण्य और अतिरिक्त निवास स्थान के निर्माण के लिए प्रस्ताव रखा गया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा गंगेटिक डॉल्फिन को एक “राष्ट्रीय जलीय पशु” के रूप में घोषणा की गयी है, ताकि इनका संरक्षण उच्च पैमाने पर किया जा सके। यह निर्णय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में अक्टूबर, 2009 में “राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण” (NGRBA) की पहली बैठक में लिया गया था। इसे राष्ट्रीय धरोहर का हिस्सा माना गया है।
बिहार में सुल्तानगंज और कहलगांव के बीच गंगा नदी के एक खंड को “डॉल्फिन अभयारण्य” के रूप में घोषित किया गया है, जिसका नाम “विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन अभयारण्य” (VGDS) रखा गया है। यह गंगेटिक डॉल्फिन के संरक्षण के लिए दुनिया का पहला डॉल्फिन अभयारण्य है, जो गंगेटिक डॉल्फिन संरक्षित क्षेत्र है।
यह अभ्ययारण्य 1991 में मनोनीत हुआ था। विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन अभयारण्य, भारत के बिहार राज्य के भागलपुर जिले में स्थित है। यह अभयारण्य सुल्तानगंज से कहलगांव तक गंगा नदी में 50 किलोमीटर तक फैली है। पर्यटन के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर और जून है, जबकि पर्यटन स्थान बरारी घाट, जहां विक्रमशिला सेतु शुरू होता है, उल्लेखनीय रूप से दर्ज है। कुछ वर्ष पहले गंगेटिक डॉल्फ़िन इस क्षेत्र में बहुतायत में पाया जाता था, जो की अब यहां पूरे जनसंख्या की केवल आधी आबादी भर रह गयी है।
यह प्रजाति “कोन्वेंसन ऑन द कंजर्वेसन ऑफ माइग्रेटरी स्पीसीज ऑफ वाइल्ड एनिमल्स” (CCMSWA) की परिशिष्ट प्रथम एवं द्वितीय में भी सूचीबद्ध है। इसके तहत गंगेटिक डॉल्फ़िन के विलुप्त होने के खतरे को कम करने की दिशा में सख्ती से प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे इन जानवरों के एक जगह से दूसरे जगह पलायन करने में रुकावट न हो, उनके निवास स्थान को संरक्षण प्रदान कर एवं अन्य सभी कारकों को नियंत्रित रखना है, ताकि इनका जीवन-यापन अनुकूल रह सके। उत्तर प्रदेश में डॉल्फिन के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार प्राचीन हिंदू ग्रंथों की सहायता ले रही है, ताकि इनके संरक्षण के लिए समुदाय का समर्थन बढ़ाया जा सके।
इनके संरक्षण के लिए अभयारण्य क्षेत्र के आस-पास विभिन्न संरक्षण कार्य किए जा रहे हैं। “विक्रमशिला जैव विविधता अनुसंधान और शिक्षा केन्द्र” (VBREC) के द्वारा “व्हेल और डॉल्फिन संरक्षण सोसायटी” (WDCS), पटना विश्वविद्यालय के “पर्यावरण जीवविज्ञान प्रयोगशाला” और टी.एम. भागलपुर विश्वविद्यालय के साथ मिलकर विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन अभयारण्य के संरक्षण के मूल्य में सुधार करने के लिए एक परियोजना शुरू की गई है। “आरण्यक” जो एक पंजीकृत संरक्षण एनजीओ है और पूर्वोत्तर भारत में 1989 से कार्य कर रहे हैं, उन्होनें डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय (असम) के सहयोग से “ कंजर्वेसन ऑफ गंगेटिक डॉल्फ़िन इन ब्रह्मपुत्र रिवर सिस्टम, इंडिया” नमक परियोजना की शुरूआत की है। यह परियोजना गंगेटिक डॉल्फ़िन प्रजाति की जनसंख्या की स्थिति, वितरण, निवास स्थान वरीयताओं को और खतरों में अनुसंधान कर पूरे ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली भर में गंगेटिक डॉल्फिन के संरक्षण की स्थिति का मूल्यांकन पर ध्यान केन्द्रित करती है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ, इंडिया ने भी गंगा नदी डॉल्फिन के निवास स्थान के संरक्षण और इस लुप्तप्राय प्रजातियों के भविष्य सुरक्षित करने के लिए एक डॉल्फिन संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया है।
मानव हस्तक्षेप के कारण ख़तरा :
उर्वरकों, कीटनाशकों और औद्योगिक एवं घरेलू अपशिष्ट के द्वारा हो रही जल-प्रदूषण से कई मछलियों की मौत हो रही है और यह डॉल्फिन की आबादी पर भी नकारात्मक प्रभाव डालने की पूरी संभावना रखती है ।हाल के वर्षों में गंगा नदी पर नाव यातायात भी बढ़ गया है, जिनके इंजनों के शोर से डॉल्फिन की सोनार प्रणाली प्रभावित होती है। डॉल्फ़िन के मांस या तेल (कैटफ़िश चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है) के लिए इनका शिकार करने और मछली पकड़ने के जाल में आकस्मिक उलझाव के कारण भी इन जानवरों की मौत हो रही है। नदी में, खास कर शुष्क महीने में, मछली पकड़ने के लिए जाल का उपयोग करने से अकसर डॉल्फ़िन फंस जाया करती है, क्यूंकि तब नदी में पानी कम रहता है। इसलिए इस समय मछली पकड़ने की मनाही होना जरूरी है। नदी में उपयोग होने वाले जाल नायलॉन के न हो, क्यूंकी इसमें डॉल्फ़िन फंसकर बाहर निकलने में असमर्थ होती है, इनकी जगह जूट और कपास से बने जाल का उपयोग होना चाहिए, ताकि यह उसे तोड़कर बाहर निकल सके और इस तरह हम इनके संरक्षण के लिए अपना योगदान दे सकें।
पर्यावरण वार्ता (अंक 4 )
पर्यावरण को ले कर हमारी सजगता प्राचीन समय से ही है। इसकी प्राथमिक समझ तो हमारी प्राचीन पुस्तकें ही करा देती हैं जहाँ वे शरीर को जिन पाँच तत्वों की समिष्टि बताती हैं अर्थात धरती, जल, अग्नि, आकाश तथा वायु; वस्तुत: ये सभी तत्व सम्मिलित रूप से पर्यावरण शब्द की सही परिभाषा निर्मित करते हैं और यह भी बताते हैं कि शरीर की कोशिका जैसे सूक्ष्म तत्व से ले कर अंतरिक्ष की विराटता तक सब कुछ पर्यावरण शब्द के भीतर समिष्ठ हो जाता है। अथर्ववेद मे कहा गया है कि भूमि हमारी माता है। हम पृथ्वी के पुत्र हैं। मेघ हमारे पिता हैं, वे हमें पवित्र करते हुए पुष्ट करें – मात्य भूमि पुत्रो अहम पृथिव्या। पर्जन्य पिता स उ ना पिपर्तुम। ऋग्वेद में ही उल्लेख है कि पृथ्वी, अंतरिक्ष एवं द्युलोक अखंडित तथा अविनाशी हैं। जगत का उत्पादक परमात्मा एवं उसके द्वारा उत्पन्न यह जीव जगत भी कभी नष्ट न होने वाला है। विश्व की समस्त देवशक्तियाँ अविनाशी हैं। पाँच तत्वों से निर्मित यह सृष्टि अविनाशी है। जो कुछ उत्पन्न हो चुका है अथवा जो कुछ उत्पन्न होने वाला है वह भी अपने कारण रूप से कभी नष्ट नहीं होता है – अदितिधौर्रदितिर न्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्र:। विश्वे देवाअ अदिति: प न्चजनाअदितिर्जात मदितिर्जनित्वम॥
हमारे आसपास की प्रत्येक वस्तु जड़, चेतन, प्राणी, हमारा रहन-सहन, खान-पान, संस्कृति विचार आदि सभी कुछ पर्यावरण के ही अंग है। ‘जल बिन मीन’ के अस्तित्व की कल्पना कीजिये। जल मछली का पर्यावरण है वह जीवित ही नहीं रह सकती यदि उसे पानी से बाहर निकाल दिया जाये। मछली तब भी जीवित नहीं रह सकती यदि जिस पानी में उसका जीवन है वह विषैला हो जाये अथवा उसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगे। यही उदाहरण वृहद हो कर पर्यावरण की सम्पूर्ण परिभाषा बन जाता है। इस आधार पर यह स्पष्ट है कि जीवन के लिए एक परिपूर्ण व्यवस्था बनाने वाले जैविक तथा अजैविक तत्व मिल कर पर्यावरण का निर्माण करते हैं। “किसी भी जीव जन्तु में समस्त कार्बनिक व अकार्बनिक वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों को पर्यावरण कहेंगे” ।यह परिभाषा जर्मन वैज्ञानिक अरनेस्ट हैकन ने दी है।
इसी उदाहरण पर आगे बढ़ते हुए हम यह समझ सकते हैं कि प्रत्येक प्राणी भिन्न पर्यावरण में निवास करता है। मछली के लिये जो पर्यावरण सही है वह हाथी के लिये अनुपयुक्त, यही उनके भिन्न-भिन्न निवास स्थल होने का कारण भी है। अत: एक विशेष जीव समूह के योग्य पर्यावरण में उसका निवास स्थल अर्थात हेबिटाट (Habitat) बनता है। हेबिटाट शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द हैबिटेयर (Habitare) से हुई है। बुनियादी तौर पर देखा जाये तो हेबिटाट और पर्यावरण शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची प्रतीत होते हैं किंतु इनमें बुनियादी अंतर व्यापकता का है। जहाँ हैबिटाट शब्द किसी परिवेश के स्थानीय घटकों तक संकुचित है वहीं पर्यावरण व्यापकता में परिवेश के अनेकों घटकों को स्वयं में समाहित करता है। किसी छोटे क्षेत्र में एक जीव विशेष से जुडे परिवेश को उसका अपना सूक्ष्म वातावरण (Micro Climate) कहा जा सकता है।
पर्यावरण तथा हेबिटाट की बात करना इसलिये भी प्रासंगिक है कि इस माह 17 मई को “नेशनल एन्डेंजर्ड स्पिसीज डे” मनाया गया। इस माध्यम से विलुप्त हो रहे पादप तथा जीव प्रजातियों को बचाने की वैश्विक स्तर पर चिंता की गयी। इसी माह की 22 मई को “इंटरनेशनल डे फॉर बायलॉजिकल डाईवर्सिटी” मनाया जा रहा है। इस अवसर पर जैव-विविधता को बनाये रखने और उसका संवर्धन करने के दृष्टिगत पर्यावरण से जुडी संस्थाओं द्वारा अनेक आयोजन किये जायेंगे। इस वर्ष इस आयोजन का विषय है – “हमारी जैवविविधता, हमारा भोजन, हमारा स्वास्थ”। इसी क्रम में 23 मई को “वर्ल्ड टर्टल डे” है। कछुओं को बचाने के तथा उनके हैबिटाट को नष्ट न होने देने के अनेक प्रयास वैश्विक स्तर पर हो रहे है।
एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमारा कर्तव्य है कि हमारा भी इन प्रयासों में सतत योगदान सुनिश्चित हो। एनएचपीसी ने निरंतर जैवविविधता संरक्षण के दृष्टिगत कार्य किया है जिसके कुछ उदाहरण जैसे – तीस्ता लो डैम परियोजना – III, IV एवं सुबनसिरी लोअर परियोजना में ऑर्किडेरियम का निर्माण, सेवा-II परियोजना के अंतर्गत फ्लोरल बायोडाईवर्सिटी कंजरवेटरी का निर्माण, पार्बती-II परियोजना के अंतर्गत वन विभाग के सौजन्य से ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में गिद्ध की प्रजातियों के संरक्षण का कार्य, तीस्ता-V परियोजना में हर्बल एवं तितली उद्यान का निर्माण, लगभग 40 हेक्टेयर भूमि में वन विभाग के सौजन्य से अंडमान स्थित केलपॉन्ग परियोजना द्वारा बॉटनिकल गार्डन का निर्माण, इंदिरासागर परियोजना में पक्षीविहार का निर्माण आदि सम्मिलित है। 5 जून अर्थात विश्व पर्यावरण दिवस भी निकट है। इस वर्ष इस दिवस को वायु प्रदूषण से सम्बंधित चिंताओं पर विमर्श एवं रोकथाम सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मनाया जायेगा। इस सभी दिवसों तथा आयोजनओं का मूलभूत उद्देश्य है कि हमारा भी इन प्रयासों में सतत योगदान सुनिश्चित हो।
अरुण कुमार मिश्रा
कार्यपालक निदेशक (पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन)
Photograph Source: https://fineartamerica.com/featured/caribbean-sea-turtle-and-reef-fish-daniel-jean-baptiste.html
बच्चों के नन्हे प्रयास और पर्यावरण संरक्षण
Photo Source = https://www.123rf.com/photo_74350708_stock-vector-set-of-cute-kids-volunteers-save-earth-waste-recycling-girls-planted-and-watering-young-trees-kids-g.html
पर्यावरण ऊर्जा टाइम्स (अंक जुलाई – 2018) में प्रकाशित
हर वर्ष 5 जून को संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2018 के आयोजन का विषय था – बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन अर्थात प्लास्टिक प्रदूषण को परास्त करें। यह विश्व पर्यावरण दिवस और भी खास रहा क्योंकि आयोजन की मेजबानी भारत देश ने की। वर्ष 1972 में स्टॉकहोम सम्मेलन के पहले दिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस मनाये जाने की घोषणा हुई एवं इसके दो वर्षों के बाद वर्ष 1974 में पहली बार “केवल एक धरती” विषय वस्तु पर केंद्रित विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। तब से इन चवालिस वर्षों में निरन्तर विभिन्न विषयवस्तुओं पर केंद्रित आयोजनों के द्वारा पृथ्वी को बचाने की मुहिम चल रही है। विश्व पर्यावरण दिवस अब जन जागरूकता कार्यक्रम के रूप में विश्वव्यापी स्वरूप ले चुका है।
पर्यावरण संवर्धन की दिशा में अब सचेत होने की हमारी बाध्यता का प्राथमिक कारण है जलवायु परिवर्त्तन के अपेक्षित दुष्परिणामों का परिलक्षित होना। जो द़ृश्य लगभग दो-तीन दशकों पहले हौलीवुड की फिल्मो में नज़र आते थे, अब रोज़ ही विश्व के किसी ना किसी कोने में साक्षात हो रहे हैं। असाधारण गर्मी, असाधारण एवं बिन मौसम बारिश, तूफानी हवाएँ, समुद्री तूफान में अभूतपूर्व वृद्धि, जल एवं वायु प्रदूषण से होने वाली खतरनाक बीमारियाँ, पीने के पानी का अभाव इत्यादि आने वाले प्रलय का साफ संकेत दे रहे हैं।वर्ष 2018 के विश्व पर्यावरण दिवस की विषय वस्तु “प्लास्टिक प्रदूषण को पराजित करें” का प्रथम पर्यावरण दिवस की विषय वस्तु “केवल एक धरती” से सीधा संबन्ध प्रतीत होता है।
हमारी नासमझी और लापरवाही के कारण हर वर्ष तेरह मिलियन टन प्लास्टिक समुन्दर में जा रहा है। प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पूरे विश्व में व्यक्तिगत स्तर पर बहुत सारी कोशिशें हो रही हैं। इसके बाद भी हमारी प्रवृत्ति ऐसी है कि हर व्यक्ति यह सोचता है, जिस प्रकार सरकार स्वच्छ भारत मुहिम में शौचालय बनवा बनवा कर लोगों को खुले में शौच करने पर पाबंदी लगा रही है वैसे ही हाथ में कपड़े का थैला लाकर देगी, तब हम प्लास्टिक के प्रयोग पर रोक लगाएँगे।
वर्ष 2018 में जब हमारा देश विश्व पर्यावरण दिवस के मेजबान के रूप में वैश्विक कार्यक्रमों की तैयारियों में मशगूल था, ठीक उसी दौरान तूफानी एवं गर्म हवाओं के चपेट में आकर विभिन्न राज्यों में कई लोगों ने अपनी जाने गवां दी। खबर आई कि शिमला में पीने के पानी के अभाव में पाँच दिनों के लिए स्कूल बंद कर दिये गए। विडम्बना देखिये कि जितना समय इस आलेख को पूरा करने में लगा उतनी देर में लगभग 35 हज़ार टन प्लास्टिक समुद्र में विसर्जित कर दिया गया होगा जो कि ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं और उनके कारण उत्पन्न होने वाली विभीषिकाओं का जनक है। ये कुछ उदाहरण इस बात के साक्ष्य हैं कि वर्ष में एक दिन वृक्षारोपण करने, विश्व पर्यावरण दिवस के दिन पाँच सितारा होटलों में बड़े बड़े सम्मेलन करने अथवा पर्यावरण संरक्षण के सार्थक संदेश को सोश्यल माध्यमों पर आगे ठेल देने से न अपने गृह को बचाया जा सकता है और न ही इस ग्रह को। यह समय की मांग है कि मानव जाति अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर संदेश अग्रसारक की भूमिका से आगे निकले एवम स्वयं की पहल से किये गए कार्यों के कारण संदेश वाहक बने।
सबसे सरल उपाय है कि स्कूल के बच्चों के माध्यम से बड़ी मुहिम चलाई जाए। बच्चे यदि पर्यावरण संरक्षण की महत्ता समझ गये तब संवर्धन के कार्य को पूरा कर पाना आसान हो जाएगा। यह लेख मैं अपनी दस वर्षीय पुत्री की प्रेरणा से लिख रहा हूँ जिसके परोक्ष में एक घटना है जो साझा करना चाहता हूँ। दो हफ्तों से निरन्तर मैं उसे दूध, फल और सब्ज़ी खरीदने अपने साथ ले कर जा रहा हूँ। बाज़ार में दुबारा प्रयोग में ना आ सकने वाली प्लास्टिक के अनियंत्रित प्रयोग एवं मेरी ओर से व्यक्तिगत स्तर पर इसके प्रयोग में कमी लाने के लिए कोइ गंभीर प्रयास को ना देख कर उसके व्यहवार में मैंने अजीब प्रकार की असहजता देखी। कभी दूध लेने के लिए, कभी एक सब्ज़ी को दूसरी सब्ज़ी में मिल जाने से बचाने के लिए, कभी आलस्य के कारण प्रतिदिन दो चार चीजें मैं पॉलीथीन की थैली में घर ला रहा था। इसपर बेटी मुझसे नाराज हो जाती और हर बार गिनाती कि आपके कारण आज इतनी संख्या में पॉलीथीन का कचरा उत्पन्न हुआ। मुझे यह जागरूकता अच्छी लगी और मैं सराहना करते हुए पुन: प्रयोग न करने का वायदा किया। हैरानी हुई जब अनपढ़ समझे जाने वाले दुकानदारों ने भी पुत्री की पॉलीथीन का प्रयोग न करने सम्बंधी जागरूकता को खुल कर सराहा। अब बाजार जाते हुए कपड़े अथवा जूट के थैले ले जाना मेरा स्वभाव बन गया है। यह प्रयास छोटा है किंतु अत्यधिक महत्तवपूर्ण है।
मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ कि पर्यावरण बचाने की मुहिम में मेरी पुत्री अपनी सतर्कता और जागरूकता के कारण सार्थकता के साथ सम्मिलित हो गयी है। यदि प्रत्येक छात्र ऐसा ही जागरूक हो जाये तो शहरी आबादी के द्वारा अनियंत्रित रूप से उपयोग किए जा रहे प्लास्टिक/पॉलीथीन को कम किया जा सकेगा एवं उत्पादित कचरे का पर्यावरण प्रिय निष्पादन सुनिश्चित किया जा सकेगा। आवश्यक है कि हम स्वयं से आरम्भ करें स्वत: कारवां बनता चला जायेगा। बच्चों में आने वाली पर्यावरण जागरूकता का श्रेय उनके विद्यालय एवं शिक्षकों को जाता है। इसी पीढ़ी के माध्यम से किये गये सतत प्रयासों के द्वारा ही पर्यावरण संरक्षण की दिशा प्रशस्त होगी एवं यह भावना एक जन आंदोलन का रुप ले सकेगी।
डॉ. सुजीत कुमार बाजपेयी, उप-महाप्रबंधक (पर्यावरण)
पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन विभाग, निगम मुख्यालय, फरीदाबाद
पार्बती-III पावर स्टेशन के सिउण्ड स्थित बांध क्षेत्र में छोड़े गए 12000 ब्राउन ट्राउट्
एनएचपीसी ने पार्बती-III पावर स्टेशन के मत्स्य विकास प्रबंधन योजना के अंतर्गत एक करोड़ 30 लाख रुपए की लागत से हिमाचल राजकीय मत्स्य विभाग के माध्यम से एक ट्राउट् फिश फार्म तीर्थन नदी पर बंजार तहसील के हमनी नामक स्थान पर विकसित किया है। यह ट्राउट् फिश फार्म ब्राउन ट्राउट् और रेनबो ट्राउट् दोनों प्रकार की फिश के फिन्गेरलिंग (fingerling) विकसित करने के उद्देश्य से बनाया गया है। इस फिश फार्म में दोनों प्रकार की ट्राउट् फिश विकसित कर तीर्थन और सेंज नदी में डालने की व्यवस्था हिमाचल राजकीय मत्स्य विभाग द्वारा की जाती है।
पार्बती-III पावर स्टेशन के सिउण्ड स्थित बांध क्षेत्र में दिनांक 10.04.2019 को ब्राउन ट्राउट् फिश के 12000 सीड (फ्राई साइज़) छोड़े गए । एक से डेढ़ ग्राम के फ्राई साइज़ सीड हिमाचल प्रदेश मतस्य विभाग द्वारा बरोट स्थित ट्राउट् फिश फार्म से लाये गए थे। इस कदम से बांध क्षेत्र के अपस्ट्रीम में मतस्य पालन को बहुत प्रोत्साहन मिलेगा तथा यह प्राकृतिक संतुलन में बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा।
पर्यावरण शब्दकोष (2)
Photograph Source: https://www.thechildrensbookreview.com/weblog/2019/05/5-kids-books-that-celebrate-the-change-of-seasons.html
क्र.
सं. |
शब्द | अर्थ |
1 | अर्थ ऑवर
(Earth Hour) |
प्रतिवर्ष मार्च महीने के अंतिम शनिवार को अर्थ ऑवर मनाया जाता है । इस समय पृथ्वी के दोनों गोलार्द्धों में दिन और रात लगभग बराबर होते हैं जिसके कारण पूरी दुनिया में एक जैसा दृश्यात्मक प्रभाव होता है ।यह एक विश्व स्तरीय अभियान है जिसमें ऊर्जा की बचत हेतु दुनिया भर के लोग एक घंटे तक बिजली बंद रखते हैं। प्रतिवर्ष मार्च महीने के अंतिम शनिवार को साढ़े आठ से साढ़े नौ बजे तक बिजली बंद रखी जाती है । सरकारी, गैर सरकारी संगठनों के अलावा लोग व्यक्तिगत तौर पर भी इस अभियान का हिस्सा बनते हैं । सिडनी के लोगों ने सब से पहले सन 2007 में अर्थ ऑवर अभियान के तहत ऊर्जा संरक्षण के लिए इसकी शुरुआत की थी ।वर्ल्ड वाइड फण्ड फॉर नेचर(WWF) और अन्य स्वयंसेवी संगठनों द्वारा समन्वित, अर्थ आवर की सबसे बड़ी ताकत लोगों की शक्ति है। अर्थ ऑवर लोगों के लिए जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाही करने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा जमीनी स्तर का आंदोलन है।इसके द्वारा पर्यावरण सुरक्षा तथा जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के प्रति प्रतिबद्धता प्रकट की जाती है ।
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2 | अल्ट्रावायलेट रेडिएशन
(Ultraviolet Radiation) |
अल्ट्रावायलेट रेडिएशन/पराबैंगनी विकिरण सौर विकिरण स्पेक्ट्रम का हिस्सा है। यह एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरण है।इसे एक्स-रे और दृश्यमान प्रकाश के बीच(10 से 400 नैनोमीटर के बीच की दैर्ध्यतरंग) के विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में परिभाषित किया जाता है।पराबैंगनी (यूवी) विकिरण सभी भौतिक पहलुओं में दृश्यमान प्रकाश के समान है,लेकिन यह हमें चीजों को देखने में सक्षम नहीं करती।दृश्य प्रकाश हमें चीजों को देखने में सक्षम बनाता है और उन रंगों से बना होता है जिन्हें हम इंद्रधनुष में देखते हैं।पराबैंगनी क्षेत्र इंद्रधनुष के बैंगनी अंत के ठीक बाद शुरू होता है। पराबैंगनी विकिरण में दृश्यमान प्रकाश की तुलना में छोटी तरंग दैर्ध्य (उच्च आवृत्तियाँ) लेकिन एक्स-रे की तुलना में इसमें लंबी तरंगदैर्ध्य (कम आवृत्तियाँ) होती हैं। सूरज की रोशनी पराबैंगनी विकिरण का सबसे बड़ा स्रोत है। मानव निर्मित पराबैंगनी स्रोतों में कई प्रकार के यूवी लैंप, आर्क वेल्डिंग और पारा वाष्प लैंप शामिल हैं।
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3 | अवमल (Sludge) |
वाहित मल-जल का ठोस अंश अवमल कहलाता है जो प्राय: मल – जल में से नीचे बैठ जाता है। इसमें कार्बन, नाइट्रोजन तथा फास्फोरस की प्रचुर मात्रा होने से इसे सुखाकर खाद के रूप में प्रयोग में लाते हैं। किंतु विषैली एवं भारी धातुओं की अधिकता होने पर इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। |
4 |
अपशिष्ट भराव क्षेत्र (Landfill) |
ऐसा भू-क्षेत्र जहां कूड़ा-कचरा भरा जाता है और उसे मिट्टी की नई सतह से ढक दिया जाता है । यह बड़ी मात्रा में कचरे से छुटकारा पाने की प्रक्रिया है जिसके तहत एक पूर्व नियोजित क्षेत्र में कूड़े – कचरे को जमीन में दफन किया जाता है । |
5 | अवसाद
(Sediment) |
अवसाद / तलछट वे ठोस पदार्थ हैं जो जल में घुले-मिले होते हैं और नए स्थान पर स्थानांतरित और एकत्रित होते रहते हैं। ये प्राय: तली में बैठ जाते हैं जैसे मिट्टी के सूक्ष्म कण, धूल, राख, गाद आदि । इसमें चट्टानों और खनिजों के साथ-साथ पौधों और जानवरों के अवशेष शामिल हो सकते हैं। अवसाद / तलछट रेत के दाने जितना छोटा या बोल्डर जितना बड़ा हो सकता है। |
6 | अवसादन
(Sedimentation) |
किसी तरल (द्रव या गैस) में उपस्थित कणों का तल पर आकर बैठ जाना अवसादन या तलछटीकरण कहलाता हैं। अवसादन, तरल में निलम्बित कणों पर लगने वाले गुरुत्व बल या अपकेन्द्री बल के कारण होता है। भूविज्ञान में अवसादन को प्रायः अपरदन की विपरीत क्रिया माना जाता है। झीलों और नदियों में, अवसादन कभी-कभी वहाँ रहने वाले जीवों के लिए समस्या पैदा कर सकता है। अवसादन के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि यह भूवैज्ञानिकों को पीछे छोड़ दिए गए सुरागों से झीलों, नदियों और चट्टानी क्षेत्रों के बारे में बहुत कुछ बता सकता है। अतीत के अवसादन से चट्टानों में तलछट की परतें धाराओं की कार्रवाई दिखाती हैं, जीवाश्मों को प्रकट करती हैं, और मानव गतिविधि का प्रमाण देती हैं। |
7 | आघात तरंगें
(Shock waves) |
आघात तरंगें अनिवार्य रूप से गैर-रेखीय तरंगें होती हैं जो सुपरसोनिक (पराध्वनिक) गति से फैलती हैं। ऊर्जा के अचानक निस्तारण के परिणामस्वरूप आघात तरंगों का निर्माण होता है। इस तरह की गड़बड़ी स्थिर ट्रांसोनिक या सुपरसोनिक प्रवाह में होती है यथा विस्फोट, भूकंप, हाइड्रोलिक जम्प और बिजली के झटके के दौरान। आघात तरंगें मूलत: बड़े आयाम वाले दाब तरंगें (प्रेशर वेव्स) होते हैं। |
8 | आधारभूत प्रजाति
(Keystone Species) |
आधारभूत प्रजाति एक जीव है जो संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को परिभाषित करने में मदद करता है। इनके बिना, पारिस्थितिक तंत्र नाटकीय रूप से अलग होगा या पूरी तरह से अस्तित्व में नहीं रहेगा। कोई भी जीव, पौधों से कवक तक, एक कीस्टोन प्रजाति हो सकता है। ये हमेशा एक पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे बड़ी या सबसे प्रचुर प्रजाति नहीं होते हैं। हालांकि, आधारभूत प्रजाति के लगभग सभी उदाहरण ऐसे जानवर हैं जिनका खाद्य जाल पर बहुत अधिक प्रभाव है। आधारभूत प्रजातियां समुदाय की संरचना और अखंडता को बनाए रखते हुए कई पारिस्थितिक समुदायों में एक ही भूमिका निभाती हैं।ऐसी प्रजातियाँ एक समुदाय के भीतर स्थानीय जैव विविधता को बनाए रखने में मदद करती हैं या तो अन्य प्रजातियों की आबादी को नियंत्रित करती हैं जो कि समुदाय पर हावी होती हैं या प्रजातियों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करती हैं। |
9 | आयनमंडल
(Ionosphere) |
आयनमंडल पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल का वह हिस्सा है जहां चरम अल्ट्रा वायलेट (ईयूवी) और एक्स-रे सौर विकिरण परमाणुओं और अणुओं को आयनित करता है और इलेक्ट्रॉनों की एक परत बनाता है। इस मंडल में विद्युत आवेशित कण पाये जाते हैं, जिन्हें आयन कहते हैं तथा इसीलिए इसे आयनमंडल के नाम से जाना जाता है। इसका विस्तार लगभग 80 से 600 किमी के बीच है यहाँ पर ऊँचाई बढ़ने के साथ ही तापमान में वृद्धि शुरू हो जाती है।आयनमंडल महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संचार और नेविगेशन के लिए उपयोग की जाने वाली रेडियो तरंगों को प्रतिबिंबित (रिफ्लेक्ट) और संशोधित (मॉडिफाई) करता है। अन्य घटनाएँ जैसे ऊर्जावान आवेशित कण और ब्रह्मांडीय किरणें भी एक आयनीकरण प्रभाव डालती हैं और आयनमंडल में योगदान करती हैं। |
10 |
आर्द्रतामापी (Hygrometer) |
आर्द्रतामापी एक उपकरण है जिसका उपयोग हवा में जल वाष्प की मात्रा या आर्द्रता को मापने के लिए किया जाता है। कई हाइग्रोमीटर उत्पाद तापमान को भी मापते हैं। आर्द्रतामापी और तापमान दोनों को मापने वाले हाइग्रोमीटर को अक्सर थर्मो-हाइग्रोमीटर कहा जाता है। |
– पूजा सुन्डी
सहायक प्रबंधक ( पर्या. )
PHOTOGRAPH OF THE WEEK
उपरोक्त तस्वीर एनएचपीसी के तीस्ता लो डैम-III एवं IV परियोजनाओं के अंतरगर्त स्थापित ऑर्किडेरियम (Orchidarium) एवं वनस्पतिशाला (Arboretum) में पुन : स्थापित किए गए जंगली ऑर्किडस में से एक ऑर्किड नामत: Ascocentrum ampullaceum (Roxb.) Scltr. की है। यह ऑर्किडेरियम / वनस्पतिशाला वन्यजीव/जैव विविधता संरक्षण योजना के अंतर्गत ‘रियांग, दार्जलिंग जिला, पश्चिमी बंगाल’ में दार्जिलिंग वन विभाग एवं नॉर्थ बंगाल विश्व विद्यालय के माध्यम से विकसित किया गया है । इस प्रजाति की मुख्य भूमि एशिया क्रमश: पूर्व में असम, नेपाल और भूटान के मध्य से, उत्तरी हिमालय के पार बर्मा (म्यांमार) से चीन और लाओस तक है। यह प्रजाति दक्षिण में थाईलैंड तक फैली हुई है और अंडमान द्वीप समूह में भी रिपोर्ट की गयी है । इस आर्किड में समृद्ध फूलों की विशेषताएं हैं और यही कारण है कि यह अविचारपूर्वक अंधाधुंध एकत्र किया जाता है। अत: इस खूबसूरत आर्किड के अस्तित्व के लिए, संरक्षण कार्य करना आवश्यक है।
Implementation of Fish Management Plan in TLD-III (132 MW) and TLD-IV (160 MW) Power Stations, West Bengal
River Ranching in river Teesta for TLD-III & TLD-IV Power Stations under Fish Management Plan
To facilitate unhindered upstream fish migration over the barrage structures, fish ladders are provided at TLD-III and TLD-IV Power Stations. The fish ladder was constructed across the barrage of TLD-IIIPS based on the studies carried by Central Inland Capture Fisheries Research Institute (currently known as CIFRI), Barrackpore and Inland Fisheries Training Institute, Kolkata, as a part of EMP. The fish ladder constructed across the dam of TLD-IVPS in consultation with Central Institute of Fisheries Education (CIFE), Kolkata. The detailed studies on riverine fisheries of Teesta were undertaken by these Institutes before the commencement of any project activity. To facilitate the movement of migratory fish through fish ladders, release of minimum 1.25 cumec of water is being ensured by both the Power Stations.
River ranching programme for conservation and propagation of river Teesta has been conducted. The project reservoir of TLD-IV PS or downstream of TLD-III PS near Hanuman Jhora in Kurseong Division has been supplemented with fish fingerlings in association with officials from the State Fisheries Deptt. and Projects along with the local populace.
पर्यावरण वार्ता (अंक 5 )
विश्व पर्यावरण दिवस हर वर्ष 5 जून को मनाया जाता है। भारत में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा घोषित विशेष थीम पर केंद्रित कर विश्व पर्यावरण दिवस के आयोजन को विस्तार प्रदान करता है। इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस का विषय ‘वायु प्रदूषण’ था। इसी क्रम में उल्लेखनीय है कि वायु प्रदूषण की समस्या से निदान पाने के दृष्टिगत पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 10.01.2019 को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) का आरम्भ किया है। यह एक मध्यमकालिक पंचवर्षीय कार्ययोजना है जिसमें 102 शहरों में पीएम 2.5 और पीएम 10 (सूक्ष्म धूल कण) के स्तर में 20-30 प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी करने के लक्ष्य रखे गये हैं।
भारत में वायु प्रदूषण की रोकथाम के अनेक प्रयास सतत रूप से किये जाते रहे हैं। औद्योगिकरण के कारण पर्यावरण में निरंतर दूषित हो रही वायु तथा इसकी रोकथाम के लिए वायु (प्रदूषण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 अस्तित्व में आया। वायु प्रदूषण के स्रोतों जैसे उद्योगों, वाहनों, बिजलीघरों आदि को निर्धारित सीमा से अधिक कणपदार्थ, सीसा, कार्बन मोनोआक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, वाष्पशील कार्बन यौगिक या अन्य विषैले पदार्थ निस्तारित न करने देने के प्रावधानों सहित इसके लिये मानकों का निर्धारण किया गया। वायु प्रदूषण पर बहुत कुछ कहा जा सकता है परंतु आवश्यकता है कि रोकथाम पर विमर्श आरम्भ हो। प्रत्येक व्यक्ति पहल करे, वायु प्रदूषण को कम करने का न्यूनतम प्रयास अवश्य करे। अगर हम चेहरे पर मास्क लगा कर अथवा कंधे पर ऑक्सीजन सिलिंडर को ढोती हुई नयी पीढी नहीं चाहते तो हमें इस महति उद्देश्य के लिये आगे आना ही होगा।
यह हर्ष का विषय है की निगम मुख्यालय, सभी क्षेत्रीय कार्यालयों एवं परियोजनाओं/ पावरस्टेशनों मे विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम हुए एवं इस अवसर को सोल्लास मनाया गया। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर मेरी ओर से सभी का हार्दिक अभिनन्दन तथा बधाई।
(अरुण कुमार मिश्रा)
कार्यपालक निदेशक (पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन)
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आवरण चित्र साभार: https://wbmfoundation.org/blog/world-environment-day-theme-2019–air-pollution
घरेलू (इनडोर) वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए नासा द्वारा सुझाए गए शीर्ष 10 घरेलू पौधे/हाउसप्लांट्स
1980 के दशक के उत्तरार्ध में नासा ने अंतरिक्ष स्टेशनों के लिए शुद्ध और स्वच्छ हवा प्रदान करने के साधन के रूप में हाउसप्लांट्स का अध्ययन शुरू किया। नासा ने विभिन्न हाउसप्लांट सुझाए जो हवा को शुद्ध करने में मदद कर सकते हैं। ये पौधे हवा में मौजूद कुछ हानिकारक यौगिकों को छानकर हवा को सांस लेने के लिए और भी स्वस्थकर बनाते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि ये पौधे आसानी से उपलब्ध हैं एवं घरेलू/इंडोर वातावरण में इनकी मौजूदगी से हवा बहुत शुद्ध और हानिकारक घटकों से मुक्त हो जाती है। इन पौधों में से अधिकांश आमतौर पर स्थानीय फूलवाले की दूकान पर मिल जाते हैं। ये पौधे फॉर्मेल्डीहाइड और बेंजीन जैसे हानिकारक रसायनों को फ़िल्टर करके उसी समय ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। घरेलू (इनडोर) वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए नासा द्वारा सुझाए गए शीर्ष 10 घरेलू पौधे/हाउसप्लांट्स की चर्चा इस आलेख के माध्यम से की जा रही है जो निम्नलिखित हैं :
(I) घृत कुमारी (Aloe Vera)
इसे क्वारगंदल या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है । लोग इस पौधे को इसकी उपचार क्षमता के कारण अपने घरों में रखते हैं। पत्तियों के अंदर का जेल जलन और चीरा/घाव को ठीक करने के लिए उत्कृष्ट होता है। वस्तुतः घृत कुमारी/एलोवेरा इनडोर वायु गुणवत्ता में सुधार करने के लिए एक शानदार संयंत्र है। इसे उगाना आसान है और यह घर को बेंजीन से मुक्त रखने में मदद करता है जो आमतौर पर पेंट और कुछ रासायनिक क्लीनर में पाया जाता है।
(II) पीस लिली (Peace Lily)
पीस लिली एक सुंदर पौधा है जो इनडोर वायु की गुणवत्ता में 60 प्रतिशत तक सुधार कर सकता है। यह घर में उगने वाले मोल्ड बीजाणुओं के स्तर को कम करने में मदद करता है। इसके द्वारा मोल्ड बीजाणुओं को पत्तियों के माध्यम से अवशोषित करके उन्हें पौधे की जड़ों तक पहूँचाया जाता है जहां उनका उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है। स्नानगृह में पीस लिली टाइलों और पर्दे को फफूंदी से मुक्त रखने में मदद करती है साथ ही साथ शराब और एसीटोन के हानिकारक वाष्पों को भी अवशोषित करती है।
(III) स्पाइडर प्लांट (Spider Plant)
स्पाइडर प्लांट आमतौर पर पाया जाने वाला हाउसप्लांट है और यह एक ऐसा पौधा है जिसे उगाना वास्तव में आसान है। सिर्फ दो दिनों के भीतर यह पौधा इनडोर वायु में 90 प्रतिशत तक विषाक्त पदार्थों को निकाल सकता है। पत्ते जल्दी से बढ़ते हैं और मोल्ड और अन्य एलर्जी जैसे हानिकारक पदार्थों को अवशोषित करने में मदद करते हैं इसलिए यह उन लोगों के लिए एकदम सही पौधा है जिनके पास सामान्य धूल एलर्जी है। यह फॉर्मलाडेहाइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के छोटे निशान को अवशोषित करने में भी मदद करता है।
(IV) इंग्लिश आइवी (English Ivy)
इंग्लिश आइवी प्लांट उन घरों के लिए उपयुक्त है जहां पालतू जानवर हैं क्योंकि इससे हवा में फैले पशुगंध की मात्रा कम होती है। यह फॉर्मलाडेहाइड को भी अवशोषित कर सकता है जो आमतौर पर कुछ घरेलू सफाई उत्पादों और फर्नीचर या कालीन उपचार रसायनों में पाया जाता है। अध्ययन से पता चलता है कि मेज पर एक अंग्रेजी आइवी प्लांट रखने से बेहतर ध्यान में मदद मिलेगी क्योंकि यह बेंजीन की ट्रेस मात्रा को भी अवशोषित कर सकता है जो आमतौर पर कार्यालय उपकरणों में पाया जाने वाला एक रसायन है।
(V) बोस्टन फर्न (Boston Fern)
बोस्टन फ़र्न सौंदर्य और स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। ये पौधे वातावरण की नमी को बनाए रखने में मदद करते हैं । घर में इस पौधे का होना उन लोगों के लिए एकदम सही है जो शुष्क त्वचा और ठंड के मौसम की समस्याओं से पीड़ित हैं। बोस्टन फ़र्न फॉर्मलाडेहाइड के निशान को खत्म करने में भी मदद करते हैं और घर के चारों ओर बास्केट से लटकते हुए सुंदर दिखते हैं। इस पौधे को सीधे धूप में रखना और इसकी पत्तियों को नियमित रूप से पानी के साथ भिगाना आवश्यक होता है।
(VI) हार्ट लीफ फिलोडेंड्रोन (Heart Leaf Philodendron)
हार्ट लीफ फिलोडेंड्रोन एक चढ़ाई वाली बेल है जो छोटे पालतू जानवरों या बच्चों से रहित घरों के लिए सबसे अच्छा है। चूंकि खा लिए जाने पर यह पौधे विषाक्त है। यह वातावरण से फॉर्मेल्डीहाइड को हटाने के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प है जो कि आमतौर पर पार्टिकल बोर्ड में पाया जाता है। इस पौधे की देखभाल आसान है।
(VII) नीलगिरी (Eucalyptus)
नीलगिरी के पौधे का उपयोग सदियों से सभी प्रकार की बीमारियों के लिए किया जाता रहा है। हाउसप्लांट के रूप में इसे ढूंढना थोड़ा मुश्किल हो सकता है । नीलगिरी के पौधे की पत्तियां टैनिन से भरी होती हैं जो शरीर के वायु मार्ग में स्वस्थ तरल पदार्थ जमा करती हैं। इस पौधे की गंध में सांस लेने से रक्त-संकुलन की समस्याओं को कम करने और जुकाम को दूर करने में मदद मिल सकती है।
(VIII) अफ्रीकी वायलेट (African Violets)
अफ्रीकी वायलेट रंग में बैंगनी होते हैं जो अपने आप में एक स्वास्थ्य लाभ है। पौधे को देखने से हार्मोन एड्रेनालाईन के प्रवाह को प्रोत्साहन मिलता है जिससे मस्तिष्क में ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ जाता है एवं आराम मिलता है। पौधे छोटे और देखभाल करने में आसान होते हैं और अप्रत्यक्ष धूप पसंद करते हैं। अफ्रीकी वायलेट कृत्रिम प्रकाश में बहुत अच्छी तरह से बढ़ते हैं इसलिए उन जगहों के लिए सही हैं जहां सीधे सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता।
(IX) चाईनीज सदाबहार (Chinese Evergreen)
चाईनीज सदाबहार की देखभाल करना बहुत आसान है और यह घर को कई वायु प्रदूषकों से छुटकारा दिलाने में मददगार साबित होता है। यह छोटे लाल जामुन पैदा करता है जो देखने में प्यारा होता है और हवा से विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद करता है जो आमतौर पर रासायनिक आधारित घरेलू क्लीनर में पाए जाते हैं। जितना लंबा पौधा होगा उतने अधिक विषाक्त पदार्थों को हटा सकेगा।
(X) गुलदाउदी (Chrysanthemum)
गुलदाउदी सुंदर फूल हैं जो आमतौर पर अधिकांश नर्सरी या फूलों की दुकानों पर मिल जाते हैं। यह वायु गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए अत्यंत लाभकारी है। गुलदाउदी बेंजीन को छानने में मदद करता है। यह रसायन बहुत से घरेलू डिटर्जेंट के साथ-साथ पेंट्स, प्लास्टिक और कुछ गोंद उत्पादों में पाया जाता है। यह पौधा प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश को पसंद करता है ।
पूजा सुन्डी
सहायक प्रबंधक (पर्यावरण)
Air Pollution: Cause, Effects, Prevention, and Control
Picture Source = https://www.deccanherald.com/city/11-yrs-kspcb-helpless-tackling-707468.html
On 5th June 2019, World Environment Day has been celebrated across the globe on the theme of “air pollution”— a call to action to combat one of the greatest environmental challenges of our time. Hosted by China, World Environment Day invites us all to consider how we can make changes in our daily lives to reduce air pollution, which in turn can reduce greenhouse gas emissions and benefit people’s health too. To do that we ought to understand causes & effects of air pollution and the measures to control it. This article is an attempt in this regard.
Air Pollution-It is an undesirable change in the physical, chemical or biological characteristics of air.
Air Pollutants-They are the substances which pollute the air. Some of the common pollutants are dust, soot, ash, carbon monoxide, excess of carbon dioxide, sulphur dioxide, oxides of nitrogen, hydrocarbons, chlorofluorocarbons (CFC), lead compounds, asbestos dust, cement dust, pollens and radioactive rays.
Causes of Air Pollution: The pollution of air can be caused by natural processes or by human activities.
(A) Natural Sources of Air Pollution-They are dust storms, forest fires, ash from smoking, volcanoes, decay of organic matters and pollen grains floating in air. Sand and dust storms are particularly concerning. Fine particles of dust can travel thousands of miles on the back of these storms, which may also carry pathogens and harmful substances, causing acute and chronic respiratory problems.
(B) Man made Sources of Air Pollution- It comes from five main human sources. These sources spew out a range of substances including carbon monoxide, carbon dioxide, nitrogen dioxide, nitrogen oxide, ground-level ozone, particulate matter, sulphur dioxide, hydrocarbons, and lead–all of which are harmful to human health.
- Household: The main source of household air pollution is the indoor burning of fossil fuels, wood and other biomass-based fuels used for cooking, heating and lighting homes.
- Industry: In many countries, energy production is a leading source of air pollution. Coal-burning power plants are a major contributor, while diesel generators are a growing concern in off-grid areas. Industrial processes and solvent use, in the chemical and mining industries, also pollute the air.
- Transport: The global transport sector accounts for large chunk of energy-related carbon dioxide emissions and this proportion is rising.
- Agriculture: There are two major sources of air pollution from agriculture- livestock, which produces methane and ammonia, and the burning of agricultural waste. Methane is a more potent global warming gas than carbon dioxide.
- Waste: Open waste burning and organic waste in landfills release harmful dioxins, methane, and black carbon into the atmosphere. The problem is most severe in urbanizing regions and developing countries.
Harmful Effects of Air Pollution: Air pollution is identified as the most important health issue of our time, causing number of deaths prematurely. The ill effects of air pollution are numerous.
- Air pollution affects respiratory system causing breathing difficulties and diseases such as bronchitis, asthma, lung cancer, tuberculosis and pneumonia.
- It affects the central nervous system causing carbon monoxide poisoning. CO has more affinity for haemoglobin than oxygen and thus forms a stable compound carboxy haemoglobin (COHb), which is poisonous and causes suffocation and death.
- It causes depletion of ozone layer due to which ultraviolet radiations can reach the earth and cause skin cancer, damage to eyes and immune system.
- It causes acid rain, which damages crop plants, trees, buildings, monuments, statues and metal structures and makes the soil acidic.
- It causes greenhouse effect and global warming which leads to excessive heating of earth’s atmosphere, further leading to weather variability and rise in sea level. The increased temperature may cause melting of ice caps and glaciers, resulting in floods.
- Air pollution from certain metals, pesticides and fungicides causes serious ailments.
- Lead pollution causes anaemia, brain damage, convulsions and death.
- Certain metals cause problem in kidney, liver, circulatory system and nervous system.
- Fungicides cause nerve damage and death.
- Pesticides like DDT (Dichloro diphenyl trichloroethane) which are toxic, enter into our food chain and gets accumulated in the body causing kidney disorders and problems of brain and circulatory system.
Prevention and Control of Air Pollution: The good news is that air pollution is preventable. Solutions are known and can be implemented. Different techniques are used for controlling air pollution caused by ‘gaseous pollutants’ and that caused by ‘particulate pollutants’.
(A) Methods of controlling gaseous pollutants-The air pollution caused by gaseous pollutants like hydrocarbons, sulphur dioxide, ammonia, carbon monoxide, etc can be controlled by using three different methods-Combustion, Absorption and Adsorption.
- Combustion-This technique is applied when the pollutants are organic gases or vapours. The organic air pollutants are subjected to ‘flame combustion or catalytic combustion’ when they are converted to less harmful product carbon dioxide and a harmless product water.
- Absorption-In this method, the polluted air containing gaseous pollutants is passed through a scrubber containing a suitable liquid absorbent. The liquid absorbs the harmful gaseous pollutants present in air.
- Adsorption-In this method, the polluted air is passed through porous solid adsorbents kept in suitable containers. The gaseous pollutants are adsorbed at the surface of the porous solid and clean air passes through.
(B) Methods of controlling particulate emissions-The air pollution caused by particulate matter like dust, soot, ash, etc can be controlled by using fabric filters, wet scrubbers, electrostatic precipitators and certain mechanical devices.
(i) Fabric Filters-The particulate matter is passed through a porous medium made of woven or filled fabrics. The particulate present in the polluted air are filtered and gets collected in the fabric filters, while the gases are discharged.
(ii) Wet Scrubbers-They are used to trap SO2, NH3 and metal fumes by passing the fumes through water.
(iii) Electrostatic Precipitators-When the polluted air containing particulate pollutants is passed through an electrostatic precipitator, it induces electric charge on the particles and then the aerosol particles get precipitated on the electrodes.
(iv) Mechanical Devices-It works on the basis of following:
- Gravity-In this process, the particulate settle down by the action of gravitational force and get
- Sudden change in the direction of air flow-It brings about separation of particles due to greater
(C) Some other methods of controlling Air Pollution:
- Tall chimneys should be installed in factories.
- Better designed equipments and smokeless fuels should be used in homes and industries. The adoption of cleaner, more modern stoves and fuels can reduce the risks of illness and save lives.
- Policies and programmes aimed at increasing energy efficiency and production from renewable sources have a direct impact on a country’s air quality. Investment that promote renewable energy production, cleaner production, energy efficiency and pollution control should be incentivized.
- Reducing vehicular emissions is an important intervention to improve air quality, especially in urban areas. Policies and standards that require the use of cleaner fuels and advanced vehicle emissions standards can reduce vehicular emissions substantially.
- Improving the collection, separation, and disposal of solid waste reduces the amount of waste that is burned or landfilled. Separating organic waste and turning it into compost or bioenergy improves soil fertility and provides an alternative energy source.
- More trees should be planted along roadsides and houses.
Conclusion: Air pollution impacts all of us and we all have a role to play to keep our air clean. The sources of air pollution are many but if we act now, we can work towards eliminating dangerous pollutants that are costing lives, driving climate change, and weakening our planet’s life systems every day. We need to act now and can demonstrate our commitment by simple steps like plant trees, clean up trash and find ways to commute without polluting.
Brahmeshwar Kumar,
Sr. Manager (Env), NHPC
एनएचपीसी की उत्तराखंड स्थित परियोजनाओं में विश्व पर्यावरण दिवस 2019 के आयोजन की झलकियां
धौलीगंगा पावर स्टेशन
धौलीगंगा पावर स्टेशन में 5 जून 2019 को विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर समस्त अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा पौधे लगाए गए एवं एनएचपीसी परिवार के बच्चों द्वारा चित्रकारी के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देती तस्वीरें बनाई गईं। महाप्रबंधक महोदय ने अपने संबोधन के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण व उसके विकास पर जोर देते हुए अपील जताई कि आस पास पर्यावरण के अनुकूल वृक्षों को लगाना चाहिए और उनका ध्यान भी रखना चाहिए । हरे भरे वृक्ष ही हमारा भविष्य हैं।
कोटलीभेल जलविद्युत परियोजना
कोटलीभेल जलविद्युत परियोजना (उत्तराखंड) में “विश्व पर्यावरण दिवस-2019” के अवसर पर देहरादून में स्थित कार्यालय भवन के प्रांगण में सभी अधिकारियों ने वृक्षारोपण कार्यक्रम में भाग लिया। इस मौके पर महाप्रबंधक द्वारा संबोधन में कहा गया कि पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के प्रति एनएचपीसी पूर्णतः सजग है, परन्तु, हमें अपनी परियोजनाओं / पावर स्टेशनों के आस-पास पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी विशेष ध्यान देना चाहिए। क्योंकि पर्यावरण संबंधी मुद्दे पृथ्वी पर मानव जाति के अस्तित्व और उसके समस्त क्रियाकलापों से जुड़ी होने के कारण पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी प्रकार के उपाय, जैसे “वन” व “वन्य प्राणियों” की सुरक्षा, धरती को स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए पोलिथीन / प्लास्टिक कचरे के अलावा अजैविक कचरे को उचित ठिकाने लगाने, वन्य-संरक्षण इत्यादि की ओर विशेषत: बल दिया जाना चाहिए ।
टनकपुर पावर स्टेशन
टनकपुर पावर स्टेशन मे विश्व पर्यावरण दिवस- 2019 को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया । टनकपुर पावर स्टेशन में पर्यावरण को संतुलित एवं समृद्ध बनाने के लिए सभी वरिष्ठ अधिकारियों एवं कर्मचारियों को अपने दैनिक क्रिया – कलापों में पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कारकों से सचेष्ट रहने, ऊर्जा का संरक्षण एवं पौधों का रोपण करने के लिए शपथ दिलायी गयी तथा पर्यावरण में विगत कुछ सालों में बढ़ते वायु प्रदूषण से होने वाले विभिन्न प्रकार के बीमारियों के बारे में विस्तार से बताया गयाI इससे राहत पाने के लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करते हुए वायु प्रदूषण को कम करने के लिए अधिकारियों एवं कर्मचारियों को कार, मोटरसाइकिल आदि मोटर वाहनों का कम से कम इस्तेमाल करने एवं पैदल चलने के लिए प्रेरित किया गया जिससे वायु प्रदूषण को कम किया जा सके। समस्त अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा फलदार व औषधीय (लीची, कपूर,आड़ू कटहल, नींबू, नीम आदि) पौधौं का रोपण किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए श्री मनोज कुमार कुशवाहा, व. प्रबन्धक (पर्यावरण) ने विश्व पर्यावरण दिवस की महत्ता पर प्रकाश डाला और विश्व पर्यावरण दिवस -2019 का थीम –BEAT AIR POLLUTION (वायु प्रदूषण को हराओ) का अनुपालन करते हुए वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सभी को अपने क्रिया- कलापों मे प्रदूषण फैलाने वाले कारकों का प्रयोग कम करने का अनुरोध किया।
एनएचपीसी की पश्चिम बंगाल स्थित परियोजना/कार्यालय में विश्व पर्यावरण दिवस 2019 के आयोजन की झलकियां
Teesta Low Dam-IV Power Station
World Environment Day 2019 was celebrated at Teesta Low Dam-IV Power Station, Kalijhora. 100 Saplings of Madhulatha, Gandharaj, hibiscus, Rajat Bali, Coconutm Gulmohar, Neem, Mango, and other decorative plants were planted on this occasion.
क्षेत्रीय कार्यालय, सिलीगुड़ी
पर्यावरणीय संरक्षण एवं पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखने की एनएचपीसी की अपनी प्रतिबद्धता की दिशा में क्षेत्रीय कार्यालय, सिलीगुड़ी में दिनांक 05.06.2019 को “विश्व पर्यावरण दिवस 2019” का आयोजन उत्साह के साथ किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ अधिकारियों, कर्मचारियों व बच्चों द्वारा विभिन्न प्रकार के फलदार एवं अन्य प्रकार के पौधों का रोपण किया गया। साथ ही साथ अपने आस पास अधिक से अधिक वृक्ष लगा कर हरियाली उत्पन्न करने एवं वायु को स्वच्छ एवं प्रदूषण रहित रखने का सन्देश भी दिया गया। वृक्षारोपण कार्यक्रम में नारियल, चीकू, आवला, पपीता एवं नींबू आदि के पौधे लगाए गए।
एनएचपीसी की जम्मू कश्मीर स्थित परियोजनाओं में विश्व पर्यावरण दिवस 2019 के आयोजन की झलकियां
उडी -I पावर स्टेशन
उडी पावर स्टेशन में 05.06.2019 को विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर गिंगल कॉलोनी परिसर में पौधारोपण किया गया। समस्त अधिकारियों को पर्यावरण के महत्व के बारे में जागरूक किया गया तथा पावर स्टेशन परिसर व आस पास के इलाकों में अधिक से अधिक पेड़ लगाने की अपील की गई।
उड़ी-II पावर स्टेशन
उड़ी-II पावर स्टेशन में विश्व पर्यावरण दिवस बहुत उत्साह से मनाया गया। इस अवसर पर सभी वरिष्ठ अधिकारीगण व कार्मिकों द्वारा पौधे लगाए गए। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल द्वारा भी पौधरोपण किया गया ।
सेवा II पावर स्टेशन
सेवा-II पावर स्टेशन, माश्का (जम्मू व कश्मीर) में दिनांक 06/06/2019 को विश्व पर्यावरण दिवस का विधिवत आयोजन किया गया। इस अवसर पर सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने मिलकर सामूहिक वृक्षारोपण किया जिसमें 50 पौधे लगाये गये। सेवा-II पावर स्टेशन के आस-पास 2000 फलदार पौधे लगाने का संकल्प भी लिया गया। उल्लेखनीय है कि सेवा-II पावर स्टेशन द्वारा गत वर्ष भी इसी मौसम में 2000 पौधे लगाए गए थे।
सलाल पावर स्टेशन
सलाल पावर स्टेशन में 06.06.2019 को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। इस अवसर पर सभी अधिकारियों ने ज्योतिपुरम में पौधे लगाए । मुख्य महाप्रबंधक ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि पौधारोपण को केवल विश्व पर्यावरण दिवस जैसे कुछ अवसरों तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए बल्कि प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण अभियान एक सतत प्रयास होना चाहिए। विश्व पर्यावरण दिवस विश्व स्तर पर मनाया जाता है क्योंकि पर्यावरणीय खतरा एक व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है, बल्कि वैश्विक है। कचरा प्रबंधन, वनों की कटाई, ग्लोबल वार्मिंग, औद्योगिक प्रदूषण आदि जैसे मुद्दों को वन प्रबंधन, जैव ईंधन उत्पादन को बढ़ावा देने, नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन एवं उपयोग को अधिकतम करने और देश के प्रत्येक नागरिक द्वारा वृक्षारोपण कर निबटा जा सकता है। विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में अधिकारियों और कर्मचारियों को पौधे भी वितरित किए गए।
एनएचपीसी की पूर्वोत्तर स्थित परियोजनाओं में विश्व पर्यावरण दिवस 2019 के आयोजन की झलकियां
दिबांग बहुद्देशीय परियोजना
दिबांग बहुउद्देशीय परियोजना, एनएचपीसी, रोइंग में पर्यावरण दिवस समारोह के अवसर पर परियोजना के सभी वरिष्ठ अधिकारियों, कर्मचारियों एवं मॉडल स्कूल, मायू, रोइंग के अध्यापक और विद्यार्थियों के द्वारा बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाया गया। वृक्षारोपण कार्यक्रम मॉडल स्कूल, मायू, रोइंग के प्रांगण में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर वायु प्रदूषण के खतरनाक प्रभावों और वायु प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए पेड़ लगाने के महत्व पर जोर दिया गया।
रंगित पावर स्टेशन
दिनांक 06.06.2019 को रंगीत पावर स्टेशन में विश्व पर्यावरण दिवस 2019 का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अधिकारियों, कर्मचारियों, अनुबंधित श्रमिकों एवं महिला कल्याण समिति द्वारा जागरूकता अभियान चलाया गया। सड़क के किनारे पौधे (अशोक, चेरी आदि) लगाए गए । पौधारोपण के दौरान “प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने एवं प्लास्टिक मुक्त परिवेश के निर्माण” पर भी चर्चा हुयी।
सुबनसिरी लोअर जलविद्युत् परियोजना
सुबनसिरी लोअर जलविद्युत् परियोजना, गेरुकामुख में 05.06.2019 को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। इस अवसर पर विश्व पर्यावरण दिवस 2019 की थीम “Beat Air Pollution” के प्रति जागरूकता के लिए परियोजना परिसर के प्रमुख स्थलों पर बैनर लगाए गए । वरिष्ठ आधिकारियों, कर्मचारियों व बच्चों द्वारा विभिन्न प्रकार के पौधे लगाए गए। पौधारोपण के बाद दुलुन्ग्मुख, अरुणाचल प्रदेश स्थित विवेकानंद केंद्र विद्यालय के बच्चों हेतु “Beat Air Pollution” थीम पर चित्रांकन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें चित्रकारी के माध्यम से बच्चों ने पर्यावरण के प्रति अपनी भावनाओं का प्रदर्शन किया ।
Teesta-V Power Station
On 5th June, 2019, World Environment Day was observed at Teesta-V Power Station of NHPC in which officials participated with zeal and enthusiasm. On this occasion, about 150 saplings of Cherry Blossom (Prunus serrulata) tree were planted by employees, their family members and contract staff of the power station along the roadside and on the wasteland in the premises of the power station. On this occasion, a themed cultural program was presented by the students of Sirwani Govt. Secondary School, East Sikkim, Govt. Primary School, Amaley, South Sikkim and Kendriya Vidyalaya, NHPC Teesta-V Students. Essay writing competition and painting competition were also organised on the topic “Air Pollution” to celebrate the World Environment Day 2019 in which children of NHPC employees, and students of Sirwani Govt. Secondary School, East Sikkim, Govt. Primary School, Amaley, South Sikkim and Kendriya Vidyalaya, NHPC Teesta-V Students participated. Prizes and certificates were given to the winners of Essay Writing and Painting Competition.
एनएचपीसी की हिमाचल प्रदेश स्थित परियोजनाओं में विश्व पर्यावरण दिवस 2019 के आयोजन की झलकियां
चमेरा-।। पावर स्टेशन
चमेरा-II पावर स्टेशन, करियां में “विश्व पर्यावरण दिवस – 2019’’ का आयोजन किया गया। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर दिनांक 05.06.2019 को कालोनी परिसर में स्थित हर्बल पार्क में पौधारोपण किया गया। पौधारोपण के दौरान विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाए गए जिसमें शहतूत, चिनार, शीशम आदि के पौधे सम्मिलित थे । विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पावर स्टेशन के प्रशासनिक भवन में स्थित प्रशिक्षण हॉल मे कार्मिकों के बच्चों के लिए स्लोगन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस स्लोगन प्रतियोगिता में कक्षा नर्सरी से कक्षा बारहवीं तक के बच्चों ने भाग लिया जिसका शीर्षक – “पर्यावरण संरक्षण” था । स्लोगन प्रतियोगिता में सभी बच्चों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया।
चमेरा-III पावर स्टेशन
दिनांक 04.06.2019 को राजकीय उच्च. माध्यमिक विद्यालय खज्जियार, चंबा में ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के अवसर पर हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, चंबा द्वारा पर्यावरण प्रदूषण को रोकने की जागरूकता के लिए आयोजित कार्यक्रम में चमेरा-3 पावर स्टेशन नें भी भाग लिया। राजकीय उच्च. माध्यमिक विद्यालय खज्जियार के सहयोग से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने हेतु रैली भी निकाली गई। इस रैली में चमेरा-3 पावर स्टेशन द्वारा छात्रों के लिए टोपियों का भी वितरण किया गया। चमेरा-III पावर स्टेशन द्वारा दिनांक 05 जून 2019 को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के अवसर पर सर्ज शाफ्ट परिसर में पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
पारबती-II जल विद्युत परियोजना
पार्बती जल विद्युत परियोजना चरण – II की विभिन्न साइटों पर सभी कार्मिकों एवं श्रमिकों के साथ मिलकर विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गयाI इस अवसर पर निम्नलिखित कार्यक्रमों का आयोजन किया गया: क) पार्बती – II परियोजना की सभी ईकाइयों पर पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिज्ञा , ख) नवचेतना स्पेशल स्कूल सरवरी, कुल्लू में मानसिक दिव्यांग बच्चों के लिए चित्रकला प्रतियोगिता एवं पर्यावरण जागरूकता का आयोजन, ग) परियोजना के स्कूल जाने वाले छात्रों के लिए चित्रकला सह जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन, घ) नेचर पार्क, झिडी में सफाई अभियान, ड़) नगवाई स्थित मुख्य कार्यालय तथा परियोजना की विभिन्न ईकाइयों पर पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया ।
पारबती-III पावर स्टेशन
पारबती-III पावर स्टेशन, बिहाली में विश्व पर्यावरण दिवस 2019 बहुत उत्साहवर्धक रूप से मनाया गया। इस अवसर पर पावर स्टेशन में वृक्षारोपण कार्यक्रम एवं पर्यावरण जागरूकता सत्र का आयोजन किया गया। वृक्षारोपण कार्यक्रम पावर स्टेशन की सपांगनी आवासीय परिसर में आयोजित किया गया जिसके अंतर्गत कुल 150 पौधे लगाये गये । पावर स्टेशन के सभी कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा एक-एक पौधा रोपित किया गया। पावर स्टेशन के सपंगनी परिसर के ऑफिसर क्लब में एक ज्ञानवर्धक पर्यावरण वार्तालाप का आयोजन भी किया गया जिसमें पावर स्टेशन के कर्मचारियों और अधिकारियों ने भाग लिया । कार्यक्रम का समन्वयन वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण) श्री विशाल शर्मा ने किया।
एनएचपीसी, निगम मुख्यालय में विश्व-पर्यावरण दिवस 2019 का आयोजन
एनएचपीसी द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस 2019 का समारोहपूर्वक आयोजन किया गया। इस अवसर पर निगम मुख्यालय, फरीदाबाद के कार्यालय परिसर में वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। श्री बलराज जोशी, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक; श्री रतीश कुमार, निदेशक (परियोजनाएँ) तथा श्री एम. के. मित्तल, निदेशक (वित्त) सहित अनेक वरिष्ठ अधिकारियों ने इस अवसर पर पौधारोपण किया। एनएचपीसी की विभिन्न परियोजनाओं मे भी विश्व पर्यावरण दिवस सोल्लास मनाया गया। यह विश्व पर्यावरण दिवस, वायु प्रदूषण के प्रति बढ़ती चिंताओं के दृष्टिगत मनाया गया। निगम मुख्यालय में वृक्षारोपण तथा परियोजनाओं में आयोजित विविध कार्यक्रम, संस्था की पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हैं।