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अंक की तस्वीर (अंक : 22)
एनएचपीसी लिमिटेड की ओर से पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन विभाग तथा नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी), हैदराबाद के मध्य “अंतरिक्ष चित्र आधारित ग्लोफ अध्ययन” के लिए अनुसंधान एवं विकास परियोजना के तहत दिनांक 20.03.2024 को एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। इस अवसर पर एनएचपीसी ओर से श्री रजत गुप्ता, कार्यपालक निदेशक (पर्यावरण व विविधता प्रबंधन), डॉ. अविनाश कुमार , महाप्रबंधक (पर्यावरण), श्री राजीव रंजन प्रसाद, उप- महाप्रबंधक (पर्यावरण) तथा श्री अमित भदुला, प्रबंधक (पर्यावरण) उपस्थित थे। एनआरएससी की ओर से डॉ. प्रकाश चौहान, निदेशक, डॉ. के श्री निवास, उप निदेशक, डॉ. पी वी राजू, समूह निदेशक (जल संसाधन), डॉ. एम सिम्हाद्री, वैज्ञानिक-जी, श्री अब्दुल हकीम, वैज्ञानिक-जी, श्री के चंद्रशेखर, वैज्ञानिक-जी तथा श्री सक्षम जोशी, वैज्ञानिक-डी उपस्थित थे।
ESG Rating of NHPC
NHPC Limited had actively participated in S&P Global Corporate Sustainability Assessment (CSA) Survey (Dow Jones Sustainability World index) for the methodology year 2023. The CSA survey Form was submitted at the web portal of S&P Global in January 2024 for ESG rating of NHPC. Based on CSA analysis, NHPC has achieved S&P Global ESG Score of 48 (March, 2024). ESG Score is available on the website of S&P Global (https://www.spglobal.com/esg/solutions/data-intelligenceesg-scores).
Earlier, S&P Global had provided ESG Score of 17 to NHPC (November, 2022) based on publically available information. Enhanced ESG score of NHPC will improve the brand image, open access to new investors and improve transparency & operational efficiency.It is also to inform that the 1st Sustainability Report for FY 2021-22 of NHPC is available on the website of NHPC under the Tab: Sustainability. The preparation of Sustainability Report for FY 2022-23 is under progress in EDM Division.
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में जंगल सफारी
[ Picture Source : विशाल शर्मा, समूह वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण)]
काजीरंगा नेशनल पार्क, डिब्रूगढ़ से 235 km एवं गुवाहाटी से लगभग 220 km की दूरी पर है । जोरहाट रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी 90 km है। काजीरंगा नेशनल पार्क की यात्रा मैंने परिवार के साथ डिब्रुगढ़ से शुरू की। डिब्रूगढ़, रेल एवं वायु मार्ग द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़ा हुआ है। डिब्रूगढ़ से काजीरंगा नेशनल पार्क टॅक्सी एवं बस से जाया जा सकता है। काजीरंगा नेशनल पार्क असम के गोलाघाट, नगाँव और शोणितपुर जिलों में स्थित है। डिब्रूगढ़ से सुबह 10 बजे निकलने पर हम 4 बजे तक काजीरंगा नेशनल पार्क के कोहोरा रेंज पहुँच चुके थे जहाँ एक रेस्ट हाउस में हमारे ठहरने की व्यवस्था थी। रेस्ट हाउस के माध्यम से हमने सुबह 6 से 7 बजे के लिए कोहोरा रेंज से एलिफ़ेंट सफारी के लिए बुकिंग की। उसी दिन के लिए हमने बागोरी रेंज से जीप सफारी के लिए 10 बजे से 12 बजे के लिए बुकिंग की ।
काजीरंगा का एक संरक्षित क्षेत्र के रूप में इतिहास वर्ष 1904 से प्रारंभ होता है, जब मेरी कर्ज़न, जो तत्कालीन भारत के वायसराय लॉर्ड कर्ज़न की पत्नी थीं, ने क्षेत्र का दौरा किया। जिस वजह से काजीरंगा प्रसिद्ध था, वह एक सिंगल-हॉर्न गैंडा नहीं देख सकी, तब उन्होने अपने पति को नष्ट होते हुए प्रजातियों की सुरक्षा के लिए तत्काल उपाय करने के लिए प्रेरित किया, जिसके उपरांत लॉर्ड कर्ज़न ने सिंगल-हॉर्न राइनो की सुरक्षा के लिए योजना आरंभ की। 1 जून 1905 को, 232 वर्ग किमी (90 वर्ग मील) के क्षेत्र के साथ काजीरंगा प्रस्तावित अनुरक्षित वन क्षेत्र बनाया गया। वर्ष 1968 के असम नेशनल पार्क अधिनियम के प्रावधान के साथ वर्ष 1974 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। वर्ष 1985 में काजीरंगा को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। वर्तमान में काजीरंगा राष्ट्रीय वन उद्यान का क्षेत्रफल 919.49 वर्ग किलोमीटर है एवं काजीरंगा बाघ रिजर्व अभयारण्य का क्षेत्रफल 1307.49 वर्ग किलोमीटर है।
काजीरंगा राष्ट्रीय वन उद्यान उष्णकटिबंधीय जलवायु का अनुभव करता है; इसलिए वन्यजीवन दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय नवंबर से अप्रैल के बीच होता है। मानसून के मौसम में यहाँ जाने से बचना चाहिए क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी का पानी वन को बाढ़ से भर देता है। यह पार्क दर्शकों के लिए 1 मई से 31 अक्टूबर तक बंद रहता है। यह एक संरक्षित क्षेत्र है जो प्राकृतिक सौंदर्य और वनस्पति-जीव विविधता से समृद्ध है। काजीरंगा नेशनल पार्क को चार पर्यटन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जो मध्य ज़ोन या कोहोरा ज़ोन, पश्चिमी ज़ोन या बागोरी ज़ोन, पूर्वी ज़ोन या आगरटोली ज़ोन और बुरापहार ज़ोन हैं। जीप सफारी हर क्षेत्र में आयोजित की जाती है जबकि हाथी सफारी केवल मध्य ज़ोन और पश्चिमी ज़ोन में आयोजित की जाती है।
कोहोरा क्षेत्र वन विभाग के सौजन्य से लगभग 20 हाथियों पर पर्यटकों की सफारी एक साथ शुरू होती है जो वन उद्यान का विहंगम दृश्य दिखाती है। एलिफ़ेंट सफारी एक घंटे तक एवं जीप सफारी लगभग 2 घंटे तक होती है। वन उद्यान के भीतर के कच्चे रेतीले रास्तों, दलदली भूमि एवं घास के विस्तृत मैदानों मे अनेक जानवर विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं।
काजीरंगा वन उद्यान 35 स्तनधारी प्राणी जातियों के लिए महत्वपूर्ण प्रजनन स्थान है, जिनमें से 15 को IUCN की रेड डाटा बुक के अनुसार संकट ग्रस्त प्रजाति (threatened species) में रखा गया है । पार्क की विशेषता है कि यह भारतीय गैंडे (संख्या 2613) जंगली भैंसे और ईस्टर्न स्वांप हिरण की दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या का प्राकृतिक आवास है। समय के साथ, काजीरंगा में बाघ की जनसंख्या भी बढ़ी है, और यही कारण है कि काजीरंगा को 2007 में टाइगर अभ्यारण्य के रूप में भी घोषित किया गया।
बड़े शाकाहारी जानवर जैसे भारतीय हाथी, गौर, सांभर इत्यादि यहाँ बहुतायत में निवास करते हैं । भारतीय गैंडा, रॉयल बंगाल टाइगर, एशियन हाथी, जंगली भैंसा और स्वांप हिरण को सामूहिक रूप से ‘काजीरंगा के बड़े पाँच जन्तु समूह के रूप में जाना जाता है। वन क्षेत्र में प्राकृतिक झीलों की संख्या भी बहुतायत में है जिनमें विभिन्न पक्षियों की 478 प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से 25 प्रजाति संकट ग्रस्त श्रेणी की हैं ।
एलिफ़ेंट सफारी एवं जीप सफारी से विभिन्न जन्तु समूहों को उनके प्राकृतिक आवास क्षेत्र में विचरण करते हुए देखा जा सकता है । वैसे तो दोनों सफारी का अनुभव रोमांचकारी है अपितु एलिफ़ेंट सफारी का रोमांच विशेष रूप से अनुभव करने योग्य है ।
विशाल शर्मा
समूह वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण)
महुआ – भारत की जनजातीय आबादी के लिए वरदान
Picture Source :
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https://www.aranyapurefood.com/blogs/news/mahua-tree-kalpvriksra-of-tribal-area
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https://www.sourcedjourneys.com/post/the-tree-of-life
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http://anyflip.com/zptxm/ambt
मधुका लॉन्गीफोलिया अथवा इंडियन बटर ट्री जिसे सामान्य भाषा में महुआ कहते हैं सैपोटेसी परिवार का एक महत्वपूर्ण वृक्ष है । यह वृक्ष मध्य भारतीय राज्यों की जनजातीय आबादी के लिए सामाजिक तथा आर्थिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है । भारत में यह वृक्ष मुख्य रूप से पश्चिमी, मध्य तथा दक्षिणी भारत के अर्ध-पर्णपाती शुष्क वनों में पाया जाता है तथा इसका विस्तार मुख्यतः आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में है । यह एक बहुउद्देशीय वृक्ष है जिससे भोजन, ईंधन, लकड़ी, हरित खाद, तेल, खली, शराब प्राप्त होती है तथा यह अनेक उत्पादों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराता है।
वृक्ष विवरण
महुआ एक मध्यम से बड़े आकार का पर्णपाती एवं तीव्रता से बढ़ने वाला वृक्ष है जिसकी ऊँचाई 20-25 मीटर तक हो सकती है। इसकी लकड़ी कठोर से अति कठोर श्रेणी की होती है जिसमें सैपवुड की मात्रा अधिक होती है तथा हार्डवुड भूरे-लाल रंग की होती है । पत्तियाँ जो शाखाओं के सिरों के पास एकत्रित होती हैं, अण्डाकार या लंबाकार-अण्डाकार, चिकनी तथा रोमरहित होती हैं। युवा पत्तियाँ गुलाबी-लाल और निचली सतह पर रोमिल होती हैं। फूल सफेद-क्रीम रंग के तथा ट्यूबुलर मांसल और रसदार कोरोलायुक्त होते हैं तथा शाखाओं के अंत में गुच्छों में लगते हैं। फल अंडाकार बेर के आकार के होते हैं, परिपक्व होने पर हरे और पकने पर गुलाबी-पीले रंग के हो जाते हैं । फल बड़े अंडाकार बीज वाले व गूदेदार होते हैं, प्रत्येक फल में बीजों की संख्या 1 से 4 तक हो सकती है। फल 20-30 के झुंड में लगते हैं। बीज हल्के भूरे से काले रंग के, 3-4 सेमी लंबे, अण्डाकार तथा एक तरफ चपटे होते हैं। फरवरी से अप्रैल के बीच में वृक्ष की अधिकांश पत्तियाँ झड़ जाती हैं तथा उसी समय वृक्ष में पुष्पन प्रारंभ होता है । पुष्प रात्रि में खिलते हैं तथा प्रातःकाल में भूमि पर गिर जाते हैं, जिन्हें व्यावसायिक उपयोग के लिए स्थानीय जनजातीय आबादी द्वारा एकत्र कर लिया जाता है। फल सामान्यतः मई-जून के महीने में परिपक्व होते हैं।
उपयोग एवं स्वदेशी तकनीकी ज्ञान
स्थानीय और जनजातीय लोगों द्वारा महुए के वृक्ष के प्रत्येक भाग को आर्थिक एवं औषधीय प्रयोजनों हेतु उपयोग में लाया जाता है। उनके द्वारा वृक्ष के विभिन्न हिस्सों को वन से संग्रहित करके एवं उनसे निर्मित उत्पादों को स्थानीय बाज़ार में बेचकर अपनी आजीविका अर्जित की जाती है। महुए के पुष्पों का आर्थिक मूल्य काफी अधिक होता है तथा आदिवासी महिलाओं द्वारा इन्हें प्रातःकाल में संग्रहित किया जाता है। ये शर्करा का एक समृद्ध स्रोत हैं और इसमें काफी मात्रा में विटामिन और कैल्शियम होते हैं।अधिकतर सूखे फूलों का उपयोग महुआ शराब के आसवन के लिए किया जाता है, जिसे स्थानीय रूप से “महुदी” कहा जाता है, जो कि आदिवासी क्षेत्र में एक बहुत ही आम मादक पेय है। महुआ के पुष्पों से शराब का उत्पादन सदियों से एक पारंपरिक प्रथा है। महुए के एक टन पुष्पों से लगभग 340 लीटर अल्कोहल प्राप्त होता है। महुए के बीजों से तेल भी प्राप्त किया जाता है। इस तेल का उपयोग त्वचा की देखभाल, साबुन और डिटर्जेंट के निर्माण और वनस्पति मक्खन के रूप में भी किया जाता है। तेल निकालने के बाद प्राप्त बीज की खली का उपयोग बहुत अच्छे उर्वरक के रूप में किया जाता है।
महुए के वृक्षों को इसके सामाजिक-आर्थिक महत्व के कारण खेतों और सीमांत भूमि पर बनाए रखा और संरक्षित किया जाता है। इसलिए, उष्णकटिबंधीय वनों में बड़ी आबादी के अलावा गाँवों, सड़क के किनारों पर और पंचायत भूमि पर बड़ी संख्या में इसके वृक्ष मौजूद होते हैं।
वृक्षों का प्रवर्धन
महुआ को बीज और वेजिटेटिव तरीकों से प्रवर्धित किया जा सकता है। परिपक्व फलों से गूदे को अलग करने तुरंत बाद बीजों के अंकुरण के लिए बोया जा सकता है। महुए के बीजों की भंडारण अवधि काफी कम लगभग बीस दिनों की होती है, उसके बाद इनकी अंकुरण क्षमता समाप्त हो जाती है । यदि ताजे बीजों को 15° सेल्सियस पर संग्रहित किया जाए तो अंकुरण क्षमता अधिकतम 30 दिनों तक रह सकती है।
वेजिटेटिव तरीकों से प्रवर्धन सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग, वेज ग्राफ्टिंग, विनियर ग्राफ्टिंग और एयर लेयरिंग का उपयोग करके किया जा सकता है।
संरक्षण
वन क्षेत्रों और संरक्षित वनों के आसपास रहने वाली आदिवासी आबादी के लिए इस वृक्ष प्रजाति का सामाजिक-आर्थिक महत्व बहुत अधिक होने के कारण, आजीविका सहायक प्रजाति के रूप में इसका महत्व बहुत अधिक है। देश के कुछ हिस्सों में इन वृक्षों को पवित्र भी माना जाता है, इसलिए इन्हें आदिवासी लोगों और राज्य वन विभागों द्वारा संरक्षित किया जाता है। हालाँकि, बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं, नगरीकरण और कृषि के लिए भूमि की मांग के कारण इस प्रजाति की कुछ आबादी या तो पूरी तरह से नष्ट हो गई है और या बड़े खतरे के मुहाने पर हैं।
मौजूदा आनुवंशिक विविधता की रक्षा के लिए वनों और सीमांत भूमि में महुए का यथास्थान (in situ) संरक्षण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। वृक्षों के संरक्षण के बारे में जागरूकता और ऐसी गतिविधियों में आदिवासी किसानों की समान भागीदारी अपरिहार्य है क्योंकि उपज (फूल, छाल और फल) के संग्रह के लिए मुख्य शाखाओं को काटने से पूरे वृक्ष को नुकसान होता है ।
महुआ मूलतः एक वन्य फसल है जिसकी अब तक किसानों द्वारा कोई संगठित खेती नहीं की गई है। इसकी आर्थिक क्षमता के प्रति सीमित जागरूकता और वन या सीमांत भूमि का वृक्ष होने के कारण इस वृक्ष प्रजाति के आनुवंशिक संसाधनों पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है। महुए की विशाल आनुवंशिक विविधता का संरक्षण के लिए in situ और ex situ दोनों रणनीतियों के उपयोग की आवश्यकता है । चूंकि इस वृक्ष के बीज अत्यधिक रिकैल्सित्रैन्ट तथा कम भंडारण अवधि वाले होते हैं अतएव ex situ संरक्षण भ्रूणो॑ के क्रायोप्रिजर्वेशन का उपयोग करके किया जा सकता है।
अजय कुमार झा
वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण)
रोडोडेंड्रोन नीवियम (Rhododendron niveum)- सिक्किम का राज्य वृक्ष
[ Picture Source : https://www.treesandshrubsonline.org/articles/rhododendron/rhododendron-niveum/ ]
- स्थानीय नाम: ह्युनपाटे गुरांस
- परिवार: एरिकेसी
- कॉमन नाम: रोडोडेंड्रोन (इंग्लिश); बुरांस (कुमाऊनी); गुराँस (नेपाली)
- पाया जाता है: 3000-3700 मीटर की ऊंचाई पर
- IUCN स्थिति: गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered (CR))
रोडोडेंड्रोन नीवियम का स्थानीय नाम से ह्युनपाटे गुरांश है। मूल रूप से यह केवल उत्तरी सिक्किम में लाचुंग के ऊपर शिंगबा रोडोडेंड्रोन अभयारण्य के आसपास पाया जाता था। यह सिक्किम की संस्कृति की खूबसूरती, सुघड़ता और दृढ़ता का प्रतिनिधित्व करता है इस लिए इसे सिक्किम के ‘राज्य वृक्ष’ होने का का दर्जा प्राप्त है।
रोडोडेंड्रोन नीवियम के विषय में:
रोडोडेंड्रोन नीवियम या Bell Snow Rhododendron एक छोटा पेड़ है जो 2-6 मीटर तक ऊँचा होता है। इसमें अनोखे धुएँ के रंग के नीले या बैंगनी- मॉव रंग के फूल होते हैं और पत्तियों के निचले हिस्सों में बर्फ के समान सफेद रंग होता है। नीवियम रोडोडेंड्रोन की प्रजाति का नाम लैटिन शब्द “निवेस” से लिया गया है जिसका अर्थ बर्फीला या बर्फ जैसा सफेद। इस पौधे के फूल गोलाकार घने 15-20 के गुच्छे में लगते हैं, जिनके बीच में पीला मखमली रंग होता है। फूल अप्रैल-मई में आते हैं और फल जुलाई के माह मे । युवा अंकुर भूरे हरे, घने मखमली बालों वाले होते हैं। पत्ती के डंठल लंबे होते हैं, पत्तियाँ चमड़े सदृश्य होती हैं। पत्तियों का निचला भाग सघन, भूरा, सफेद, चमकीला, बाल वाला होता है ।खुली हुई पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद फ्लोकोस बिखरा हुआ होता है। परिपक्वता पर पत्ती बाल रहित हो जाती है। रोडोडेंड्रोन नीवियम सिक्किम के लिए स्थानिक है और उत्तरी सिक्किम में याकची में एक माइक्रोनिच तक सीमित है।
उपयोग:
रोडोडेंड्रोन का स्थानीय लोग विभिन स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के उपचार के लिए उपयोग करते हैं जैसे हृदय, पेचिश, दस्त, विषहरण, सूजन, बुखार, कब्ज, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा । पत्तियों में प्रभावी एंटीऑक्सीडेंट होते हैं।
ख़तरा और संरक्षण:
चूंकि रोडोडेंड्रोन निवियम स्थानिक है और बहुत छोटे क्षेत्र में पाया जाता है, इसलिए यह गंभीर रूप से खतरे में है। अन्य वन रोडोडेंड्रोन की तरह इसका आवास भी मुख्य रूप से विकासात्मक गतिविधियों के लिए वनों की कटाई और पर्यटकों के दबाव के कारण गंभीर रूप से खतरे में हैं। सिक्किम सरकार ने रोडोडेंड्रोन के संरक्षण के लिए काम शुरू किया है। सिक्किम में एक बायोस्फीयर रिजर्व, दो राष्ट्रीय उद्यान और छह वन्यजीव अभयारण्य हैं, जहाँ क्षेत्रीय रोडोडेंड्रोन की 36 प्रजातियों को संरक्षित किया जाता हैं। रोडोडेंड्रोन के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए शिंगबा रोडोडेंड्रोन और बर्सी रोडोडेंड्रोन अभयारण्यों को विशेष रूप से संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। हाल में, रोडोडेंड्रोन नीवियम के संरक्षण के प्रयासों मे सफलता प्राप्त हुई है और उसका सफल रूप से growth और propagation पूर्वी सिक्किम के क्योंगनोसला अल्पाइन अभयारण्य में किया गया है (टेलीग्राफ, 24 अप्रैल, 2024)।
डा. अनुराधा बाजपेयी
समूह वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण)
संदर्भ:
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https://www.telegraphindia.com/west-bengal/sikkims-state-tree-gets-new-home/cid/1901259
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https://www.flowersofindia.net/catalog/slides/Bell%20Snow%20Rhododendron.html
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https://journals.tubitak.gov.tr/cgi/viewcontent.cgi?article=1944&context=botany
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https://www.treesandshrubsonline.org/articles/rhododendron/rhododendron-niveum/
ईएसजी रिपोर्टिंग में डाटा प्रबंधन की भूमिका
[ Picture Source : https://community.nasscom.in/communities/ai/how-ai-can-help-esg-data-standardization-bfsi ]
पर्यावरणीय (Environmental), सामाजिक (Social) और गवर्नेंस (Governance) अर्थात ‘ईएसजी रिपोर्टिंग’ एक मापदंड है जिसका उपयोग किसी कंपनी के व्यावसायिक कार्यप्रणाली की स्थिरता (Sustainability) को प्रभावी करने वाले मूल गैर-वित्तीय तत्वों के प्रदर्शन (परफॉर्मेंस) का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। यह व्यावसायिक जोखिमों और अवसरों को मापने का तरीका भी प्रदान करता है। पूंजी बाजारों में कुछ निवेशक कंपनियों का मूल्यांकन करने और निवेश योजनाओं को निर्धारित करने के लिए ईएसजी रिपोर्ट का उपयोग करती हैं। ईएसजी रिपोर्ट में प्रदान किए गए विवरणों से निवेशकों को कंपनियों की पहचान करके निर्णय लेने में सक्षमता प्राप्त होती है। इस रिपोर्टिंग या प्रदत्त विवरणों से कंपनी को अपनी कार्य-प्रणाली में मौजूद अच्छाई व कमी का भी आकलन करने में सहजता होती है एवं मूल्यांकन के आधार पर यदि आवश्यकता हो तो समय रहते सुधार किया जा सकता है।
कंपनी की ‘ईएसजी (ESG) रिपोर्टिंग’ के लिए ‘ग्लोबल रेपोर्टिंग इनिसिएटिव (जीआरआई)’ स्टैंडर्ड एवं सेबी (SEBI) के निर्धारित फ़ारमैट में ‘ईएसजी (ESG) के प्रमुख कारक व संकेतक के बारे में वित्त-वर्ष के अनुसार वृहद डाटा की आवश्यकता होती है। इस डाटा के विश्लेषण व विवेचना के अनुसार कंपनी की Sustainability Report एवं बीआरएसआर तैयार किया जाता है। इसे पब्लिक डोमेन में डाला जाता है तथा इसी डाटा के आधार पर कंपनी की ईएसजी रेटिंग निर्धारित की जाती है। साथ ही, इस रिपोर्ट का एश्योरेंस करना आवश्यक होता है। अत: इसके दृष्टिगत, कंपनी की ईएसजी रिपोर्टिंग’ के लिए डाटा-प्रबंधन करना अति महत्वपूर्ण है। इससे समय के साथ ‘ईएसजी रेटिंग’ में भी सतत सुधार होगा एवं कंपनी की छवि वैश्विक पटल पर अच्छी होगी, जिससे निवेशकों को एनएचपीसी में निवेश करने के बारे में निर्णय लेने में रुचि होगी।
एनएचपीसी द्वारा डाटा प्रबंधन के लिए उचित कदम उठाए जा रहे हैं। सभी परियोजनाओं/पावर स्टेशनों को डाटा प्रबंधन की आवश्यकता के बारे में जागरूक किया गया है एवं इंट्रानेट पर ‘बीआरएसआर पोर्टल’ का प्रावधान किया गया है, जिसके माध्यम से सभी परियोजनाओं/पावर स्टेशनों द्वारा निगम मुख्यालय को रिपोर्ट तैयार करने हेतु डाटा जमा किया जाता है। इस दिशा में एनएचपीसी के सतत प्रयास एवं ‘ईएसजी रिपोर्टिंग’ के आधार पर S&P Global द्वारा मार्च 2024 में एनएचपीसी ने ‘ईएसजी रेटिंग’ 48 प्राप्त की है जो पहले नवंबर,2022 में 17 थी।
मनोज कुमार सिंह,
समूह वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण)
तीस्ता VI जलविद्युत परियोजना द्वारा पर्यावरण स्वच्छता के अंतर्गत फोगिंग कार्यक्रम का आयोजन
तीस्ता-VI जलविद्युत परियोजना द्वारा दिनांक 30.04.2024 को पीएम श्री राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय एवं राजकीय प्राथमिक विद्यालय, सिंगताम, जिला-गंगटोक, सिक्किम में मलेरिया एवं डेंगू जैसी बीमारियों एवं जहरीले कीटों से बचाव हेतु फोगिंग किया गया।
कार्यक्रम के अंतर्गत विद्यालय के सभी कक्षाओं एवं परिसर में फोगिंग किया गया। इस आयोजन के लिए विद्यालय के प्रधानाचार्य एवं शिक्षकों ने एनएचपीसी का आभार व्यक्त किया एवं इसकी प्रशंसा की। उन्होंने भविष्य में इस प्रकार के कार्यक्रम के आयोजन की आशा व्यक्त की।
अंक की तस्वीर ( अंक : 23 )
[ चित्र आभार : पूजा सुन्डी, प्रबंधक (पर्यावरण), निगम मुख्यालय ]
भारतीय हाथी : जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, रामनगर, उत्तराखंड
- स्थिति: संकटग्रस्त
- जनसंख्या : 20,000 – 25,000
- वैज्ञानिक नाम : एलीफस मैक्सिमस इंडिकस (Elephas maximus indicus)
- ऊंचाई : 6-11 फीट (कंधे तक)
- वज़न: 5 टन
- लंबाई: 21 फीट तक
- निवास: उपोष्णकटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाले वन, उष्णकटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाले नम वन, शुष्क वन, घास के मैदान (Subtropical broadleaf forest, tropical broadleaf moist forest, dry forest, grassland)
हाथी भारत के साथ-साथ पूरे एशिया में एक सांस्कृतिक प्रतीक है। ये समूह में रहना पसंद करते हैं तथा अपनी सामाजिक संवेदना एवं बुद्धिमता (intelligence) के कारण प्राणिजगत में इनका खास स्थान है। भारतीय हाथी का मुख्य भोजन घास होता है, लेकिन बड़ी मात्रा में ये पेड़ों की छाल, जड़ें, पत्तियां और छोटे तने भी खाते हैं। कृषि फसलें जैसे केले, धान, गन्ना आदि भी इनके पसंदीदा भोजन हैं। प्रतिदिन भोजन करते हुए एवं अपने आवास के एक बड़े क्षेत्र में घूमते हुए ये गोबर का उत्पादन करते हैं, इससे अंकुरित बीजों को फैलाने में मदद मिलती है। इस तरह ये अपने जंगल तथा घास के मैदानों के आवास की अखंडता को बनाए रखने तथा पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) में संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन्हें दिन में कम से कम एक बार पानी पीने की ज़रूरत होती है अत: ये हमेशा ताजे पानी के स्रोत के करीब रहते हैं।
(संदर्भ : https://www.worldwildlife.org/species/indian-elephant)
एनएचपीसी में विश्व पर्यावरण दिवस-2024 का आयोजन
एनएचपीसी में निगम मुख्यालय के साथ – साथ समस्त परियोजनाओं, पावर स्टेशनों एवं क्षेत्रीय कार्यालयों में दिनांक 05 जून 2024 को “विश्व पर्यावरण दिवस” का आयोजन हर्षोल्लास के साथ किया गया। इस वर्ष पर्यावरण दिवस के अवसर पर “Land Restoration , Desertification and Drought Resilience” की थीम के साथ विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया । एनएचपीसी की सभी कार्यस्थलों में पर्यावरण संरक्षण हेतु जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन कर अधिकारियों व कर्मचारियों को पर्यावरण संरक्षण की शपथ दिलाई गई। विभिन्न स्थानों में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का सन्देश दिया गया। समस्त परियोजनाओं, पावर स्टेशनों एवं क्षेत्रीय कार्यालयों में बड़े पैमाने पर पौधारोपण कर स्वच्छ व हरित पर्यावरण बनाने की पहल की गई।स्थानीय विद्यालयों में लेख, स्लोगन एवं चित्रकला प्रतियोगिताओं का आयोजन कर भावी पीढ़ी को जागरूक करते हुए पर्यावरण संरक्षण का सन्देश दिया गया।