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पर्यावरण वार्ता (अंक 12 )

कोविड-19 का प्रकोप विश्व में फैलता जा रहा है। प्रतिदिन ग्लोब पर संक्रमित होने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। मानवता को अपेक्षा करनी चाहिए कि जितनी शीघ्रता से हो सके, कोई प्रभावी दवा अथवा टीके का इजाद हो सके और हम कोरोना प्रसारित महामारी से मुक्ति पा सकें। केवल फैलता हुआ संक्रमण ही समस्या नहीं है, लॉकडाउन के कारण कार्यालय, फैक्ट्रियाँ, स्कूल-कॉलेज, यात्रा-परिवहन सब कुछ हाशिये पर है। लोक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था थम गई है। विश्व सबसे बड़ी मंदी की तरफ धकेला जा रहा है, अर्थात किसी भी मोर्चे पर कोई अच्छी खबर नहीं, पर क्या सचमुच ऐसा है?

 

 

सभी पर्यावरण शोध संस्थानों का मंतव्य है कि वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में बड़ी लगाम लग गई है। अमेरिका के न्यूयार्क से ले कर भारत के मुंबई तक प्रदूषण का स्तर पचास प्रतिशत से भी नीचे गिर गया है (बीबीसी हिन्दी)। इसे इन दिनों दिख रहे नीले और चमकीले आसमान से देखा समझा जा सकता है। गंगा और यमुना जैसी देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदियाँ पारदर्शी हो गई हैं। चाँद अधिक चमकीला, तारे अधिक जगमग, फूल अधिक चटखीले और पशु-पक्षी मानव बस्तियों में स्वच्छंद दिखाई पड़ रहे हैं। कई पर्यावरणविदों का मानना है कि यह वायरस मनुष्य और प्रकृति के बीच पैदा हुए असंतुलन का दुष्परिणाम है। परिवेश के परिवर्तनों को देखते हुए इस तथ्य से सहमत हुआ जा सकता है। वस्तुत: विगत कुछ दशकों से हो रहे पारिस्थितिकीय परिवर्तन, अनियंत्रित आर्थिक विकास और प्राकृतिक संसाधनों के बिना सोचे समझे किए जा रहे दोहन ने पारिस्थितिकीय तंत्र के अनुचित तथा असंतुलित प्रयोग को बढ़ाया है। कोरोना-काल हमें ठहर कर यह सब मूल्यांकित करने और सतत विकास की अवधारणा को नए तरीके से सोचने के लिए बाध्य कर रहा है।

 

 

एनएचपीसी के सभी अधिकारी और कार्मिक, केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुरूप व्यक्तिगत सुरक्षा का पालन करते हुए देश की प्रगति में यथासंभव योगदान दे रहे हैं। मैं कामना करता हूँ कि इस कठिन समय से हम धैर्य पूर्वक सुरक्षा मानदंडों को पूरा करते हुए पार पा सकेंगे। सभी स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें, देश के विकास की चिंता करें, पर्यावरण की चिंता करें, यही सर्वे भवन्तु सुखिन: की मैं कामना करता हूँ।

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                     

                                          (हरीश कुमार)

कार्यपालक निदेशक (पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन)

 

 

 

Image source :  https://www.kwit.org/post/impact-covid-19-earth-day-and-environment        

 

Category:  Environment


 |    July 22, 2020 |   0 comment

कोविड-19 : लॉकडाउन और दिनचर्या

Image Source =https://www.lboro.ac.uk/news-events/news/2020/april/coronavirus-lockdown-sleeping-tips/

 

सोचा नहीं था कभी कि  एक दिन एक खलनायक की कहानी इस तरह से दर्शानी पड़ेगी। आज मानवता के लिए जो सबसे बड़ा खलनायक है वो है कोरोना वायरस (कोविड-19)। कोरोना की कहानी कोई नई नहीं है। इस खानदान के बिगड़ैल वायरसों ने पहले भी कई बार मानव सभ्यता पर हमला किया है, लेकिन हर बार इंसानी जज्बे ने उस पर जीत हासिल की है। मगर हर पराजय के बाद वायरसों ने पहले से ज्यादा शक्ति हासिल कर इंसानों पर हमला किया है। एक बार फिर इस वंश के कोविड-19 ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है।

 

हमारे भारत देश में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देशहित में 22 मार्च 2020 (01 दिन) को जनता कर्फ़्यू (लॉकडाउन);  तत्पश्चात 25 मार्च से 14 अप्रैल (21 दिन) का लॉकडाउन(1.0); 15 अप्रैल से 03 मई (19 दिन) का लॉकडाउन(2.0); 04 मई से 17 मई (14 दिन) का लॉकडाउन(3.0); पुनः 18 मई से 31 मई (14 दिन)  का लॉकडाउन(4.0) का एलान देशभर में किया गया। लॉकडाउन का मकसद कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकना है। इस दरम्यान लोगों को घरों में रहने को कहा गया।जून 2020 से पुरे देश में अनलॉकिंग की प्रक्रिया विभिन्न चरणों में जारी है।

 

लॉकडाउन वह स्थिति है जब लोगों को उनके ही सीमित इलाके में कैद कर दिया जाता है। वास्तव में इसमें आम लोगों को बाहर जाने से रोक दिया जाता है। लॉकडाउन का मतलब यही है कि आप जहां पर हैं, वहीं रहें। लॉकडाउन में व्यक्ति-विशेष को किसी बिल्डिंग, इलाके, या राज्य, देश तक सीमित किया जा सकता है।यह एक इमरजेंसी व्यवस्था है जो महामारी या किसी प्राकृतिक आपदा के वक्त किसी इलाके में लागू होती है। लॉकडाउन की स्थ‍िति में लोगों को घरों से निकलने की अनुमति नहीं होती है, उन्हें सिर्फ दवा या खाने-पीने की जरूरी  चीजों के लिए घर से बाहर निकलने की इजाजत मिलती है।किसी इलाके में लॉकडाउन के दौरान सामान्य तौर पर जरूरी चीजों की आपूर्ति प्रभावित नहीं होती है। इसमें राशन, मेडिकल से जुड़ी चीजें, बैंक, दूध आदि की दुकान चलती रहती हैं। लॉकडाउन में गैर-जरूरी गतिविधियों को रोक दिया जाता है।यात्रा पर रोक इसमें अहम है। यातायात के सार्वजनिक साधनों को लॉकडाउन में बंद कर दिया जाता है।भारत में लॉकडाउन के दौरान निजी कंपनियों को भी कर्मचारियों से घर से काम कराने के निर्देश दिए गए हैं। दिहाड़ी मजदूरों को केंद्र और राज्य सरकार ने अपनी तरफ से आर्थिक सहायता देने की बात की है। सरकार ने यह भी आदेश दिया है कि कंपनियां लॉकडाउन की अवधि की सैलरी नहीं काट सकतीं।अगर लॉकडाउन की अवधि में कोई मेडिकल इमरजेंसी होती है तो केंद्र और राज्य सरकार की आपातकाल स्थिति के लिए मेडिकल सेवा चालू रहती है। हर इलाके में हॉस्पिटल, फार्मेसी चालू रहती है,कोई व्यक्ति इलाज कराने या दवा लेने सावधानी पूर्वक  घर से  निकल सकते हैं।

 

 

किसी भी बीमारी को दूर करने के लिए यूं तो चिकित्सा की आवश्यकता होती है, लेकिन इसके लिए जीवन में संयम भी बहुत हद तक कारगर साबित होता है। कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए अभी तक जो भी बातें सामने आ रही हैं, उसके अनुसार सामाजिक दूरियां बनाना ही इसे आगे बढ़ने से रोक सकती है। आज जब सिर पर मंडरा रहा यह वायरस हमारी मौत बनकर बाहर घूम रहा है, तब हम अपने घरों में कैद होने के लिए बाध्य हैं।आज दुनिया के लोग इस वायरस से बचने के लिए अपने आपको क्वारेंटाइन कर रहे हैं। लेकिन हम अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि हमारी  भारतीय संस्कृति में क्वारेंटाइन की परम्परा आदिकाल से रही है।इसी कड़ी में  अब सभी को यह समझ में आने लगा है कि स्वागत करने के लिए नमस्कार करना विश्व के स्वास्थ्य के लिए हितकर है।आज सभी  को कोरोना का भय यह सब समझा रहा है।आज हमें गर्व होना चाहिए कि पूरा विश्व हमारी संस्कृति को सम्मान की दृष्टि से देख रहा है।

 

मानव व्यवहार और दिनचर्या : 

महामारियों के इतिहास को देखने से पता चलता है कि जब कोई रोग दुनिया के बड़े फलक पर फैलता है तो वह न केवल लोगों के रहन-सहन को पूरी  तरह बदल देता है, बल्कि व्यापार, राजनीति और अर्थव्यवस्थाओं के संचालन के तौर-तरीकों पर भी असर डालता है। इस लॉकडाउनमें कोविड-19 नामक बीमारी यानी कोरोना वायरस के संक्रमण से जो पहली चीज बदली है, वह सामान्य मानव व्यवहार और हमारी दिनचर्या है।

 

इस समयसभी सरकारी एवम् गैर-सरकारी कर्मचारी अपने दफ़्तर का कार्य घर से ही इंटरनेट सेवा के माध्यम से निपटा रहे हैं।सभी विभागीय मीटिंग वीडियो-कॉन्फरेन्सिंग के ज़रिए सम्पन्न कराई जा रही हैं।बच्चों के स्कूल क्लास वीडियो-कॉन्फरेन्सिंग के ज़रिए संचालित किए जा रहे हैं।घर के सभी सदस्य किचन कार्यों में एवम् घर के दैनिक कार्यों में थोड़ा-बहुत योगदान देकर समय का सदुपयोग कर रहे हैं।वहीं दूसरी ओर टेलीविज़न पर धार्मिक धारावाहिक पुनःप्रसारित किए जा रहे हैं, जिससे अच्छे आदर्श, संस्कार, शिक्षा, कर्तव्य, त्याग, क्षमा, तपस्या,  धर्मपरायणता आदि अपनाए जाने की सीख मिल रही है। रामायण, महाभारत, श्री मदभगवद् महापुराण जैसी महाकाव्य का पुनःप्रसारण टेलीविज़न पर दिखाए जाने से बच्चे वो सबकुछ स्वतःसीख रहें हैं जो उन्हें आज के दौर में सीखना बहुत ज़रूरी है।

 

अभिभावकों के साथ-साथ बच्चे भी अब प्रकृति के प्रति पहले की तुलना में ज़्यादा जागरूक होकर इसपर परिचर्चा कर रहे हैं।अभिभावकों को इसलॉकडाउन में मिले समय का सदुपयोग कर बच्चों की दिनचर्या को ऐसे ढालना चाहिए जो जीवनभर उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रख सके।उनकी दिनचर्या में व्यायाम, योग, ध्यान, पढ़ाई, खेल से लेकर हॉबी तक को शामिल करना चाहिए।अपने घर में बंद होने के ख्याल से परेशान होना स्वाभाविक है, लेकिन इस समय लॉकडाउन एक जरूरी कदम है। यह जितना मानव सभ्यता के लिए जरूरी है, शायद उतना ही अपनी पृथ्वी के लिए भी। प्रकृति की व्यवस्था में जो भी होता है, बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से होता है।यही समय है हम सबको अपनी जिम्मेदारी दिखाने एवम् निभाने की।जैसे-जैसे पृथ्वी की आयु बढ़ रही है, उसकी आंतरिक फ्रीक्वेंसी भी बढ़ती जा रही है। मानवीय क्रियाकलापों से जो शोर पैदा हो रहा है, वह इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है।

 

घर में बंद रहने से,रोज एक जैसी दिनचर्या से बोर होने से बचने के लिए अपनी दिनचर्या में आवश्यक बदलाव व विविधता लाकर समय का सदुपयोग कर इसे सार्थक बनाया जा सकता है।समय बिताने के लिए वाईफाई और इंटरनेट की लत के आदी न बनकर, देर तक अपनी वाई-फाई डिवाइस के सीधे संपर्क में आने से बचना चाहिए, क्यूंकी  इसका रेडिएशन हमारे  स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता। इस समय शारीरिक वर्कआउट, हेल्दी-डाइट और अच्छी नींद लेना हमारी सेहत के लिए बहुत जरूरी है।संसार के सारे कार्य-व्यवहार आशाओं पर ही चलते है, इसी के अनुरूप हमें अपना व्यवहार इस समय रखना है। अगर हम अपने व्यवहार में संयम और स्थिरता दिखाएंगे, तभी इस महामारी से निजात मिल सकेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही कोरोना की वैक्सीन ईजाद कर ली जाएगी। तब तक अपने घरों के दरवाजे बंद रखने में ही हम सब की भलाई है।

 

 

मनीष कुमार

सहायक प्रबंधक (फिशरीज)

 

 

 

Category:  Environment


 |    July 22, 2020 |   0 comment

कोरोनाकाल में कुछ कहना चाहती है प्रकृति

Image Source = https://www.newyorker.com/podcast/the-new-yorker-radio-hour/the-coronavirus-and-climate-change-the-great-crises-of-our-time

 

शहर-दर-शहर सन्नाटे के जंगल बनते जा रहे हैं और हरे भर वन गुलजार हो गये हैं। आदमी घर के भीतर कैद रहने के लिये बाध्य है जबकि पशु-पक्षी मानो जश्न-ए-आजादी मना रहे हैं। घर की खिड़की खोल, जरा सलाखों से बाहर तो देखिये, ऐसा नीला आसमान देखे कितना समय गुजर गया? रात बाहर बालकनी में निकल कर आकाश को निहार, आप पायेंगे कि सितारे कुछ अधिक हैं, मोतियों जैसे जग-मग-जग-मग कर रहे हैं। कोरोना काल में इन्सान बेबस हो गया है जबकि उसका परिवेश और पर्यावरण नये परिधान पहन सजीला-छबीला हो चला है। अपनी जन्मभूमि चीन के वुहान शहर से दुनिया भर में फैला कोरोना वायरस मानव जनसंख्या पर और अर्थव्यवस्था पर चाहे जैसा भी प्रभाव डाल रहा हो, सकारात्मक बात यह है  कि यह विभीषिका जीवन जीने के दर्शनशास्त्र को सामने रख रही है।

 

धरती यदि बोल पाती तो अवश्य कहती कि उसकी संततियों में से नालायक मनुष्यों को लॉकडाउन में ही रहने की आवश्यकता है। देखो न, वे बंद हैं तो हवा साफ हो गयी, पानी निर्मल हो गया, मिट्टी में जहर घटने लगा। पंजाब के जालंधर में रहने वालों को वहां से हिमाचल प्रदेश में स्थित धौलाधार पर्वत श्रृंखला की चोटियां दिख रहीं हैं, आश्चर्य है न? यह पहाड़ तो हमेशा से ही जालंधर से देखा जा सकता था, लेकिन धूल-धुंए ने यह सच भुला ही दिया। दिल्ली-आगरा में जमुना का पानी निर्मल हो गया। फेन और झाग ले कर बहने वाली, गंदा नाला बन चुकी यमुना आज अपने रंग, ढंग और चाल पर इताराती नजर आ रही है। यमुना के प्रदूषण में सत्तर प्रतिशत योगदान घरेलू कचरे का है और तीस प्रतिशत औद्योगिक गंदगी इसमें समाहित होती है। अब लोग घर के भीतर हैं और उद्योगों पर ताले हैं। इस समय यमुना की प्रसन्नता को सुनना चाहे तो उसकी कलकल में सुने। साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) ने गंगा और कावेरी नदियों में भी आये ऐसे ही बदलाव का संज्ञान लिया है। यह महसूस किया जा सकता है कि गंगा स्वच्छता अभियान में अरबों रुपये स्वाहा हुए लेकिन जो न हो सका वह कोरोना काल के लॉकडाउन अवधि में हो गया।

 

भारत ही नहीं सारी दुनियाँ से ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं कि हलचल-विहीन सड़कों पर जंगली जानवर धड़ल्ले  से आ जा रहे हैं। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में गजराज निर्भीकता से टहलते देखे गये, ऐसा ही एक दृश्य कर्नाटक के कोडागु जिले में सामने आया जहाँ हाथियों को सड़कों पर मस्ती करते, चहलकदमी करते देखा गया। इतना ही नहीं नोएडा के जीआईपी मॉल के पास एक नीलगाय को सड़क पार करते देखा गया है तो हरिद्वार में सडकों पर सांभर, चीताल और हिरण चहलकदमी कर रहे है। गुड़गांव के गलेरिया मार्केट में मोरों का झुंड झूम रहा था वहीं केरल के कोझिकोड में सडकों पर बिलाव देखे जा रहे हैं। कई स्थान भयकारक भी हो गये हैं क्योंकि तेंदुओं को बस्तियों में आते देखा जा रहा है। मनुष्य और पशु के बीच हमेशा दुराव रहा है, मनुष्य ने अपने हिस्से की जमीन से उन्हे बाहर निकाल दिया है, आज क्या वे यह बताने के लिये शहरों में चहलकदमीं कर हैं कि यह हमारी जमीन है?

 

इतना ही होता तो बात न थी लेकिन अपनी धरती पर कितने बडे बोझ हैं इन्सान, बेल्जियम की रॉयल ऑब्जर्वेट्री के विशेषज्ञ बताते हैं कि इन दिनों इंसान स्थिर क्या हुए धरती की ऊपरी सतह पर कंपन यहाँ तक कि सीस्मिक नॉईज घट गया। इसका सरल शब्दों में मतलब है कि धरती की बाहरी सतह यानि क्रस्ट पर होने वाले कंपन के कारण भीतर एक शोर सुनाई पड़ता है, उसके फेंफडे अब गहरी गहरी राहत की सांस ले रहे हैं। 1 से 20 हर्त्ज वाली इन्फ्रासाउंड फ्रीक्वेंसी इंसानी गतिविधियों से पैदा होती हैं इसमें तीस से पचास प्रतिशत की गिरावट देखी गयी है। इसका एक अर्थ यह भी है कि मानवजनित कार्यों के थमते ही प्रकृति ने स्वयं को सुधारात्मक गतिविधियों में लगा दिया है। पर्यावरण में ऐसे गुणात्मक बदलवों  को देख कर अब विशेषज्ञों का मानना है कि महामारी से निजात पाने के बाद भी विश्व को समय समय पर लॉकडाउन जैसे विकल्पों को आजमाना चाहिये। मित्रों, कोरोनाकाल आज नहीं तो कल समाप्त हो जायेगा, क्या हम इस कठिन समय से कुछ सीख सके है?

 

 

-राजीव रंजन प्रसाद

वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण )

 

Category:  Environment


 |    July 22, 2020 |   0 comment

Photograph of the Week

वनमहोत्सव के अंतर्गत एनएचपीसी में उल्लास से मनाया गया “अपना पेड़ कार्यक्रम”

 

वनों का संरक्षण-संवर्धन अत्यधिक आवश्यक है इस दृष्टिकोण से एनएचपीसी ने सर्वदा निगम मुख्यालय सहित सभी परियोजना स्थलों में हरीरिमा की अभिवृद्धि में महति योगदान दिया है। इस कड़ी में प्रतिवर्ष जुलाई माह में सोल्लास मनाया जाने वाला वन महोत्सव एनएचपीसी द्वारा समारोहपूर्वक आयोजित किया गया। उल्लेखनीय है कि वन महोत्सव वर्ष 1950 में श्री कन्हैयालाल मुंशी, तत्कालीन केंद्रीय कृषि और खाद्य मंत्री द्वारा आरम्भ कराया गया था। इस उत्सवपूर्ण आयोजन द्वारा यह अपेक्षा की गई थी कि इससे लोगों में वृक्ष लगाने और बचाने की चेतना उत्पन्न होगी। इस आयोजन के तहत देश भर में लोगों द्वारा लाखों पौधे लगाए जाते हैं।

 

एनएचपीसी निगम मुख्यालय में वन महोत्सव का आयोजन “अपना पेड़ कार्यक्रम” शीर्षक के साथ कॉलोनी परिसर में गेट क्रमांक-1 के निकट किया गया। इस अवसर पर श्री ए के सिंह, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक महोदय ने सभी निदेशकगण और वरिष्ठ अधिकारियों एवं उनके परिवारजनों की उपस्थिति में पौधारोपण किया । इसके पश्चात समस्त निदेशकगण एवं वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा स्वयं एवं परिजनों के साथ उत्साहपूर्वक पौधे लगाये गये। तदोपरांत अपना पेड़ कार्यलय परिसर में पौधारोपण किया गया। निगम मुख्यालय के अनेक कार्मिकों ने इस अवसर पर “अपना पेड़ कार्यक्रम” के अंतर्गत पौधे लगाने के लिये पंजीकरण कराया था, सभी ने अपने परिवार जनों के साथ पौधे लगाये व उन्हें बचाने का संकल्प भी किया। इस अवसर पर लगाये जाने के लिये, विशेष रूप से औषधीय महत्व, फलदार तथा छायादार श्रेणी के पादपों का चयन किया गया जिनमें प्रमुख हैं – आम, आँवला, अनार, अमरूद, नीबू, मौसमी, जामुन, बेल, मुनगा, करीपत्ता, गिलोय, शहतूत, अश्वगंधा, चम्पा, अमलतास, टिकोमा, गुलमोहर, अपराजिता, मधुमालती, रात की रानी, तुलसी आदि। “अपना पेड़ कार्यक्रम” के आयोजन के पीछे विचार यह था कि सभी को कम से कम एक पौधे की देखभाल करनी चाहिए, हरियाली बढ़ानी चाहिए; इस तरह पर्यावरण के लिये छोटा ही सही परंतु अपना योगदान देना चाहिये।

 

Category:  Environment


 |    July 22, 2020 |   0 comment

COVID MUSINGS

Image source : https://www.nyoooz.com/features/lifestyle/musings-in-the-times-of-covid-19.html/3479/

 

 

As Covid lockdown locks down life at office, morning walks and all frequent and occasional shopping sprees, the immediate realization of the real worth of all that you lived for is astounding. Your big and small vehicles have no use, outfits that were your style statements are wearily gathering dust in the wardrobe, the bank balance finds use only for the essential needs for sustenance. If it was not for those pre-existing loans, all that salary was not really required. You realize, work is indeed possible from home. And work do not really need all that time spent at workplace. As worship sessions in large gatherings cease, the ultimate and noble realization dawns. God do not really need huge structures to delve in. He/she just needs humane hearts.

 

Even as humans relax and contemplate upon the real worth of all that was sought for, the planet is in recoup mode, and its other species are reclaiming the spaces left vacant by its self-proclaimed supreme being. The air is cleaner, rivers clear of industrial wastes, the humdrum of markets replaced by silences. The country records its best air quality indices of the decade.

 

When Nilgai come to the roads in Gurugram, the rhino visits towns adjacent to Guwahati, elephants go searching for people at forest checkposts in Kerala, dolphins return to the ports in Italy, the shy Sika deer roam the streets in Japan, prides of lions hang out on the roads of Kruger NP in South Africa, and many more sightings of otherwise shy wild animals in human habitations, we are gently reminded that they are just visiting their old homes. We, the most arrogant of species on earth never think of the number of nests on a tree when we cut one down, or the small and large animal refugees when tracts of forests are cleared for human use. But nature definitely has its own effective and insurmountable methods of reclaiming its spaces. Covid is just one.

 

An old movie flashes into memory. Two brothers. A story of two tiger cubs separating and reuniting. The foreigner hunter cum writer of the movie transporting ancient sculptures recovered from dense forests, through rivers is one of the shots in the movie. It gives a feeling of huge cities overgrown by dense forests. Plants easily overgrow neglected places is a fact just too familiar. Ecology calls it succession. The natural process of reclaiming of spaces. An unintended encounter while flicking pages online was with Kaliakra in Bulgaria, where history was taken over by nature …Another, while trying to explore the picturesque settings of the movie “Two brothers” was Mahendraparvata.

 

Mahendraparvata of Cambodia is a huge ancient city that was mentioned in ancient stone inscriptions.The once-mighty metropolis was one of the first capitals of the Khmer empire, which ruled in Southeast Asia between the 9th and 15th centuries. It was long believed that the ancient city was hidden beneath thick vegetation on a Cambodian mountain, not far from the temple of Angkor Wat. Cambodians have been making religious pilgrimages to the site for hundreds of years. Recently, researchers combined air borne laser scanning with ground surveys and excavations to weave a narrative of the development and demise of this ancient city. Maps of the city have been created using LIDAR (light detection and ranging) technology. The detailed maps show a well-planned city overgrown by thick vegetation on the mountain of Phnom Kulen, Cambodia. The Phnom Kulen is presently a national park in the Siem Reap province of Cambodia, established in the year 1993. A large city and innumerable temple complexes, which were part of the Indian cultural zone taken over by nature.

 

Kaliakra is a site of more recent history. It is a long and narrow headland in the Southern Dobruja region of the northern Bulgarian Black Sea Coast. The Kaliakra peninsula stretches 2km into the Black Sea. Offering a strategic vantage point over the Black Sea, the cape has seen a long history of fortifications; occupied successively by the Thracians, the Romans, the Byzantines, the Bulgarians, the Ottoman Empire and the Kingdom of Romania. It features the remnants of fortified walls, water-main, baths and residence of Despot Dobrotitsa (1379-1386) in the short-lived Principality of Karvuna’s medieval capital. The coast is steep with vertical cliffs reaching 70 metres (230 ft) down to the sea.

 

Kaliakra is presently a nature reserve, where dolphins and cormorants can be observed. It sits on the Via Pontica, a major bird migration route from Africa into Eastern and Northern Europe. Many rare and migrant birds can be seen here in spring and autumn and is home to several rare breeding birds (e.g. pied wheatear and a local race of European shag). The rest of the reserve also has unusual breeding birds; saker falcon, lesser grey shrike and a host of others.

 

This Covid season, the sector that has got brutally affected is tourism. As flights and SUVs are in parking mode, the birds and animals and obviously all other small and large non-human inhabitants of most of those picturesque and idyllic tourist destinations are having their day out. Our lives may return to normal, but the new normal is likely to be a different kind of normal for a few years, if accounts of areas where lockdown has been lifted are to be believed. Let us happily confine ourselves in stay safe mode for a while… and allow the planet some breathing space.

 

Anita Joy 

Senior Manager (Environment)

Category:  Environment


 |    July 22, 2020 |   0 comment

COVID-19: PRECAUTIONS TO BE TAKEN

Image source = https://www.theguardian.com/environment/2020/apr/22/earth-day-bypasses-virus-with-journey-into-gaming-world

 

We all know due to continuous spread of highly contagious COVID-19, the world is not in a good shape today. Number of reported cases infected with the deadly virus has been on a constant rise throughout the world. The people of our country have been advised to stay home. The country is under lockdown. The world has come to a standstill. Under such a crisis we all need to take care of family and ourselves.

 

Firstly, it is crucial to understand what COVID-19 is and how it spreads.COVID-19 is a disease caused by a new strain of coronavirus. ‘CO’ stands for corona, ‘VI’ for virus, and ‘D’ for disease. Formerly, this disease was referred to as ‘2019 novel coronavirus’ or ‘2019-nCoV.’ The COVID-19 virus is a new virus linked to the same family of viruses as Severe Acute Respiratory Syndrome (SARS) and some types of common cold.The main causes for its spread are- air by cough or sneeze, personal contact, contaminated objects and mass gatherings. The symptoms include- dry cough, high fever, sore throat and difficulty in breathing.

 

Following are some facts about COVID-19:

 

  1. People of all ages CAN be infected by the coronavirus. Older people, and people with pre-existing medical conditions (such as asthma, diabetes, heart disease) appear to be more vulnerable to becoming severely ill with the virus.
  2. Cold weather and snow CANNOT kill the Coronavirus.
  3. Hand dryers are NOT effective in killing the coronavirus.
  4. There is NO evidence that regularly rinsing the nose with saline has protected people from infection with the coronavirus.
  5. The coronavirus CAN be transmitted in areas with hot and humid climates.
  6. Ultraviolet light SHOULD NOT be used for sterilization and can cause skin irritation.
  7. Garlic is healthy but there is NO evidence from the current outbreak that eating garlic has protected people from the coronavirus.
  8. The coronavirus CANNOT be transmitted through mosquito bites.
  9. Thermal scanners CAN detect if people have a fever but CANNOT detect whether or not someone has the coronavirus.
  10. Antibiotics DO NOT work against viruses, antibiotics only work against bacteria.
  11. There is NO evidence that companion animals/pets such as dogs or cats can transmit the coronavirus.
  12. Spraying alcohol or chlorine all over your body WILL NOT kill viruses that have already entered your body.
  13. To date, there is NO specific medicine recommended to prevent or treat the coronavirus.
  14. Taking a hot bath DOES NOT prevent the coronavirus.
  15. Vaccines against pneumonia, such as pneumococcal vaccine and Haemophilus influenzae type b (Hib) vaccine, DO NOT provide protection against the coronavirus.
  16. You can recover from the coronavirus disease (COVID-19). Catching the new coronavirus DOES NOT mean you will have it for life.
  17. Being able to hold your breath for 10 seconds or more without coughing or feeling discomfort DOES NOT mean you are free from the coronavirus disease (COVID-19) or any other lung disease. The best way to confirm if you have  the virus producing COVID-19 disease is with a laboratory test.
  18. Drinking alcohol does not protect you against COVID-19 and can be dangerous.

 

Following measures must be taken to slow down and prevent the spread of COVID-19:

 

As with other respiratory infections like the flu or the common cold, public health measures are critical to slow the spread of illnesses. Public health measures are everyday preventive actions that include:

  • Staying home when sick.
  • Covering mouth and nose with flexed elbow or tissue when coughing or sneezing.
  • Dispose of used tissue immediately.
  • Washing hands often with soap and water.
  • Cleaning frequently touched surfaces and objects.

 

Some key points on how to beat the disease:

 

  • Don’t fear and don’t panic- sprouting fear can cause more damage to us. As the mortality rate is low and due to early care, the chances of recovery(that takes approximately a week) are high. The people are scared because of the social stigma attached to it. We must know the facts as facts minimize fear. Let’s be positive and hopefuland we willfight the disease.

 

  • We must use homemade reusable face cover, particularly when we step out of our house to help protect the community at large. But it is not recommended for health workers, those working with or in contact with COVID-19 patients and COVID-19 patients, as they are required to wear specified protective gear.

 

  • The Ministry of AYUSH has released a list of Ayurveda approved practices that can help us boost our immunity during the current times. They are enumerated as under:

 

  1. Drinking warm water throughout the day.
  2. Daily practise of yoga. This can include Yogasna, Pranayama and meditation for at least 30 minutes daily.
  3. Incorporate spices like Turmeric (Haldi), Cumin (Jeera) and Coriander (Dhaniya) in your daily cooking. These spices are known to help boost immunity through the study of Ayurveda.
  4. Take one tablespoon full (10gm) of Chyavanprash every morning. However, diabetic patients should make sure they only have sugar free versions.
  5. Drink herbal tea (kadha). Your kadha should include Tulsi, Dalchini (Cinnamon), black pepper, dry ginger (Shunthi) and raisins. You can also add Jaggery (Gur) and fresh lemon juice according to your taste. Drink this concoction at least twice a day.
  6. Add half teaspoon of Turmeric (Haldi) in a glass of warm milk and drink it once or twice a day.
  7. For dry cough/sore throat- steam inhalation with Mint (pudina) leaves or Ajwain (caraway seeds) once a day. Taking Lavang (clove) powder mixed with sugar or honey once or twice a day can improve the condition.

 

There is no vaccine available to cure COVID-19 currently but we can all be cautious at every stage. We must follow guidelines issued by the World Health Organization (WHO) or Ministry of Home Affairs (MHA) from time to time.

 

Shreya

Asstt. Manager ((Environment)

References:
https://www.mygov.in/covid-19
https://timesofindia.indiatimes.com/life-style/health-fitness/health-news/ayurveda-tested-immunity-practices-to-followduring-the-coronavirus-pandemic/photostory/74912589.cms?picid=74912631

 

Category:  Environment


 |    July 22, 2020 |   0 comment

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