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सोचा नहीं था कभी कि  एक दिन एक खलनायक की कहानी इस तरह से दर्शानी पड़ेगी। आज मानवता के लिए जो सबसे बड़ा खलनायक है वो है कोरोना वायरस (कोविड-19)। कोरोना की कहानी कोई नई नहीं है। इस खानदान के बिगड़ैल वायरसों ने पहले भी कई बार मानव सभ्यता पर हमला किया है, लेकिन हर बार इंसानी जज्बे ने उस पर जीत हासिल की है। मगर हर पराजय के बाद वायरसों ने पहले से ज्यादा शक्ति हासिल कर इंसानों पर हमला किया है। एक बार फिर इस वंश के कोविड-19 ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है।

 

हमारे भारत देश में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देशहित में 22 मार्च 2020 (01 दिन) को जनता कर्फ़्यू (लॉकडाउन);  तत्पश्चात 25 मार्च से 14 अप्रैल (21 दिन) का लॉकडाउन(1.0); 15 अप्रैल से 03 मई (19 दिन) का लॉकडाउन(2.0); 04 मई से 17 मई (14 दिन) का लॉकडाउन(3.0); पुनः 18 मई से 31 मई (14 दिन)  का लॉकडाउन(4.0) का एलान देशभर में किया गया। लॉकडाउन का मकसद कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकना है। इस दरम्यान लोगों को घरों में रहने को कहा गया।जून 2020 से पुरे देश में अनलॉकिंग की प्रक्रिया विभिन्न चरणों में जारी है।

 

लॉकडाउन वह स्थिति है जब लोगों को उनके ही सीमित इलाके में कैद कर दिया जाता है। वास्तव में इसमें आम लोगों को बाहर जाने से रोक दिया जाता है। लॉकडाउन का मतलब यही है कि आप जहां पर हैं, वहीं रहें। लॉकडाउन में व्यक्ति-विशेष को किसी बिल्डिंग, इलाके, या राज्य, देश तक सीमित किया जा सकता है।यह एक इमरजेंसी व्यवस्था है जो महामारी या किसी प्राकृतिक आपदा के वक्त किसी इलाके में लागू होती है। लॉकडाउन की स्थ‍िति में लोगों को घरों से निकलने की अनुमति नहीं होती है, उन्हें सिर्फ दवा या खाने-पीने की जरूरी  चीजों के लिए घर से बाहर निकलने की इजाजत मिलती है।किसी इलाके में लॉकडाउन के दौरान सामान्य तौर पर जरूरी चीजों की आपूर्ति प्रभावित नहीं होती है। इसमें राशन, मेडिकल से जुड़ी चीजें, बैंक, दूध आदि की दुकान चलती रहती हैं। लॉकडाउन में गैर-जरूरी गतिविधियों को रोक दिया जाता है।यात्रा पर रोक इसमें अहम है। यातायात के सार्वजनिक साधनों को लॉकडाउन में बंद कर दिया जाता है।भारत में लॉकडाउन के दौरान निजी कंपनियों को भी कर्मचारियों से घर से काम कराने के निर्देश दिए गए हैं। दिहाड़ी मजदूरों को केंद्र और राज्य सरकार ने अपनी तरफ से आर्थिक सहायता देने की बात की है। सरकार ने यह भी आदेश दिया है कि कंपनियां लॉकडाउन की अवधि की सैलरी नहीं काट सकतीं।अगर लॉकडाउन की अवधि में कोई मेडिकल इमरजेंसी होती है तो केंद्र और राज्य सरकार की आपातकाल स्थिति के लिए मेडिकल सेवा चालू रहती है। हर इलाके में हॉस्पिटल, फार्मेसी चालू रहती है,कोई व्यक्ति इलाज कराने या दवा लेने सावधानी पूर्वक  घर से  निकल सकते हैं।

 

 

किसी भी बीमारी को दूर करने के लिए यूं तो चिकित्सा की आवश्यकता होती है, लेकिन इसके लिए जीवन में संयम भी बहुत हद तक कारगर साबित होता है। कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए अभी तक जो भी बातें सामने आ रही हैं, उसके अनुसार सामाजिक दूरियां बनाना ही इसे आगे बढ़ने से रोक सकती है। आज जब सिर पर मंडरा रहा यह वायरस हमारी मौत बनकर बाहर घूम रहा है, तब हम अपने घरों में कैद होने के लिए बाध्य हैं।आज दुनिया के लोग इस वायरस से बचने के लिए अपने आपको क्वारेंटाइन कर रहे हैं। लेकिन हम अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि हमारी  भारतीय संस्कृति में क्वारेंटाइन की परम्परा आदिकाल से रही है।इसी कड़ी में  अब सभी को यह समझ में आने लगा है कि स्वागत करने के लिए नमस्कार करना विश्व के स्वास्थ्य के लिए हितकर है।आज सभी  को कोरोना का भय यह सब समझा रहा है।आज हमें गर्व होना चाहिए कि पूरा विश्व हमारी संस्कृति को सम्मान की दृष्टि से देख रहा है।

 

मानव व्यवहार और दिनचर्या : 

महामारियों के इतिहास को देखने से पता चलता है कि जब कोई रोग दुनिया के बड़े फलक पर फैलता है तो वह न केवल लोगों के रहन-सहन को पूरी  तरह बदल देता है, बल्कि व्यापार, राजनीति और अर्थव्यवस्थाओं के संचालन के तौर-तरीकों पर भी असर डालता है। इस लॉकडाउनमें कोविड-19 नामक बीमारी यानी कोरोना वायरस के संक्रमण से जो पहली चीज बदली है, वह सामान्य मानव व्यवहार और हमारी दिनचर्या है।

 

इस समयसभी सरकारी एवम् गैर-सरकारी कर्मचारी अपने दफ़्तर का कार्य घर से ही इंटरनेट सेवा के माध्यम से निपटा रहे हैं।सभी विभागीय मीटिंग वीडियो-कॉन्फरेन्सिंग के ज़रिए सम्पन्न कराई जा रही हैं।बच्चों के स्कूल क्लास वीडियो-कॉन्फरेन्सिंग के ज़रिए संचालित किए जा रहे हैं।घर के सभी सदस्य किचन कार्यों में एवम् घर के दैनिक कार्यों में थोड़ा-बहुत योगदान देकर समय का सदुपयोग कर रहे हैं।वहीं दूसरी ओर टेलीविज़न पर धार्मिक धारावाहिक पुनःप्रसारित किए जा रहे हैं, जिससे अच्छे आदर्श, संस्कार, शिक्षा, कर्तव्य, त्याग, क्षमा, तपस्या,  धर्मपरायणता आदि अपनाए जाने की सीख मिल रही है। रामायण, महाभारत, श्री मदभगवद् महापुराण जैसी महाकाव्य का पुनःप्रसारण टेलीविज़न पर दिखाए जाने से बच्चे वो सबकुछ स्वतःसीख रहें हैं जो उन्हें आज के दौर में सीखना बहुत ज़रूरी है।

 

अभिभावकों के साथ-साथ बच्चे भी अब प्रकृति के प्रति पहले की तुलना में ज़्यादा जागरूक होकर इसपर परिचर्चा कर रहे हैं।अभिभावकों को इसलॉकडाउन में मिले समय का सदुपयोग कर बच्चों की दिनचर्या को ऐसे ढालना चाहिए जो जीवनभर उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रख सके।उनकी दिनचर्या में व्यायाम, योग, ध्यान, पढ़ाई, खेल से लेकर हॉबी तक को शामिल करना चाहिए।अपने घर में बंद होने के ख्याल से परेशान होना स्वाभाविक है, लेकिन इस समय लॉकडाउन एक जरूरी कदम है। यह जितना मानव सभ्यता के लिए जरूरी है, शायद उतना ही अपनी पृथ्वी के लिए भी। प्रकृति की व्यवस्था में जो भी होता है, बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से होता है।यही समय है हम सबको अपनी जिम्मेदारी दिखाने एवम् निभाने की।जैसे-जैसे पृथ्वी की आयु बढ़ रही है, उसकी आंतरिक फ्रीक्वेंसी भी बढ़ती जा रही है। मानवीय क्रियाकलापों से जो शोर पैदा हो रहा है, वह इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है।

 

घर में बंद रहने से,रोज एक जैसी दिनचर्या से बोर होने से बचने के लिए अपनी दिनचर्या में आवश्यक बदलाव व विविधता लाकर समय का सदुपयोग कर इसे सार्थक बनाया जा सकता है।समय बिताने के लिए वाईफाई और इंटरनेट की लत के आदी न बनकर, देर तक अपनी वाई-फाई डिवाइस के सीधे संपर्क में आने से बचना चाहिए, क्यूंकी  इसका रेडिएशन हमारे  स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता। इस समय शारीरिक वर्कआउट, हेल्दी-डाइट और अच्छी नींद लेना हमारी सेहत के लिए बहुत जरूरी है।संसार के सारे कार्य-व्यवहार आशाओं पर ही चलते है, इसी के अनुरूप हमें अपना व्यवहार इस समय रखना है। अगर हम अपने व्यवहार में संयम और स्थिरता दिखाएंगे, तभी इस महामारी से निजात मिल सकेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही कोरोना की वैक्सीन ईजाद कर ली जाएगी। तब तक अपने घरों के दरवाजे बंद रखने में ही हम सब की भलाई है।

 

 

मनीष कुमार

सहायक प्रबंधक (फिशरीज)