Photograph Source: https://www.achisoch.com/hindi-slogans-on-environment.html

 

क्र.

सं.

शब्द अर्थ
1 अतिसंवेदनशीलता (Hypersensitivity)  

 

जलवायु परिवर्तनशीलता एवं उसकी चरम स्थितियों के साथ साथ जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का सामना करने वाली किसी प्रणाली की अतिसंवेदनशीलता अथवा क्षमता की वह ऊपरी सीमा, जिसके बाद वह इनका सामना करने में असमर्थ हो जाती है।

2 अधिपादप (Epiphytes)    

 

जिन दो अलग अलग प्रकार के पौधों का संबंध भोजन आधारित न होकर केवल आवास आधारित होता है, उन पौधों को अधिपादप कहते हैं । ये वे पौधे होते हैं, जो आश्रय के लिये वृक्षों पर निर्भर होते हैं लेकिन परजीवी नहीं होते। ये वृक्षों के तने, शाखाएं, दरारों, कोटरों, छाल आदि में उपस्थित मिट्टी में उपज जाते हैं व उसी में अपनी जड़ें चिपका कर रखते हैं। कई किस्मों में वायवीय जड़ें भी पायी जाती हैं। ये पौधे उसी वृक्ष से नमी एवं पोषण खींचते हैं। इसके अलावा वर्षा, वायु या आसपास एकत्रित जैव मलबे से भी पोषण लेते हैं। ये अधिपादप पोषण चक्र का भाग होते हैं और उस पारिस्थितिकी की विविधता एवं बायोमास, दोनों में ही योगदान देते हैं। ये कई प्रजातियों के लिये खाद्य का महत्त्वपूर्ण स्रोत भी होते हैं।

 

 

3 अनिच्छित ध्वनियाँ (Unwanted Sounds)

 

“अनिच्छित ध्वनियाँ” वे होती हैं, जो हमारे कार्य – कलापों और गतिविधियों में बाधाएँ उत्पन्न करती हैं। प्रभाव के अनुसार उनका वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है –

·         श्रव्य स्तर पर बाधा उपस्थित करने वाली ध्वनियाँ, जिनसे हमारी श्र्वानेंद्रियाँ कष्ट या पीड़ा का अनुभव करने लागती हैं।

·         जैविक स्तर की अवांछित ध्वनियाँ, जो हमारे शारीरिक क्रिया-कलापों  पर प्रतिकूल असर डालती हैं ।

तीसरे प्रकार की ध्वनियाँ वे हैं, जो समूचे सामाजिक व्यवहार को विपरीत ढंग से प्रभावित करने लगती हैं ।

4 अनुकूलन (Adaptation)  

 

 

अनुकूलन वह क्रिया, जिसके द्वारा कोई जीव स्वयं को अपने पर्यावरण के अनुकूल ढालता है तथा वह उस स्थान विशेष के पर्यावरण के अनुसार अपने में परिवर्तन कर के स्वयं को उस पर्यावरण में रहने योग्य बनाता है । अनुकूलन एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसके द्वारा जीवित पदार्थ स्वयं को नई पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेते हैं । प्रत्येक पौधे तथा पशु की पर्यावरणीय तापमान, प्रकाश तथा अन्य तथ्यों के प्रति अपनी अलग सहनशक्ति होती है। इन सबके साथ पूर्णत: अनुकूलित होने वाला ही जीवित रहता है। अनुकूलन दो प्रकार का होता है – व्यक्तिगत अनुकूलन तथा सामूहिक अनुकूलन ।एक अवयव के जीवन के दौरान उसका व्यक्तिगत अनुकूलन उत्पन्न होता है, जबकि सामूहिक अनुकूलन किसी अवयव की जनसंख्या हेतु लंबी समयावधि में उत्पन्न होता है।

5 अपशिष्ट (Waste)  

 

यह रद्दी, कचरा, उत्सर्ग आदि के नाम से भी जाना जाता है । किसी वस्तु का प्रयोग करने के बाद त्याज्य अंश जिसका उपयोग पुनः हो सकता है,  अपशिष्ट कहलाता है । यह प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होता है। कृषीय  अपशिष्ट, म्युनिसिपल  अपशिष्ट,  औद्योगिक अपशिष्ट इत्यादि विविध प्रकार के  अपशिष्ट होते हैं। यह ठोस तथा द्रव दोनों रूप में हो सकता है जैसे – कूड़ा-कचरा, मल-जल ।

6 अपक्षय

( Weathering ) 

 

 

शैलों का टूट-फूट कर अंत में मिट्टी बनना  “अपक्षय” कहलाता है । सामान्यता ताप में परिवर्तन, आद्रता, कार्बन डाई ऑक्साइड का होना आदि  अपक्षय के कारक हैं ।

7 अपवाह

( Runoff) 

 

 

अपवाह या धरातलीय अपवाह जल की वह मात्रा है जो पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में ढाल का अनुसरण करते हुए जलधाराओं, सरिताओं, नालों और नदियों के रूप में प्रवाहित होता है।अपवाह को पानी के चक्र के हिस्से के रूप में वर्णित किया जा सकता है जो भूजल या वाष्पीकरण में अवशोषित होने के बजाय सतह के पानी के रूप में भूमि पर बहता है।

8 अप्पिको आंदोलन

( Appico Andolan )

 

 

यह आंदोलन अर्थ एवं अभिप्राय में उत्तर भारत के “ चिपको आंदोलन के समान ही है ।         ‘अप्पिको आंदोलन’ के प्रमुख संचालक पांडुरंग हेगड़े थे,जिन्होंने आंदोलन का प्रेरणादायक नारा ‘उलिसु बेलेसू मतबलिसू’ अर्थात –      ‘ बनाओ, बढाओ और काम में लाओ ’ प्रचलित किया। इस आंदोलन में भी पेड़ों से चिपक कर उन्हें बचाया जाता है । ‘अप्पिको’ कन्नड़ भाषा का शब्द है, जो कन्नड़ में ‘ चिपको’ का पर्याय है । पर्यावरण संबंधी जागरूकता का यह आंदोलन अगस्त 1983 में शुरू हुआ । यह बड़ेथी हाइडल प्रोजेक्ट के विरोध में उत्तर कन्नड़ के लोगों द्वारा शुरू किया गया । यह आन्दोलन पूरे जोश से लगातार एक महीने आठ दिन तक चलता रहा  । युवा लोगों ने भी जब यह पाया कि उनके गाँवों के चारों और के जंगल धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं तो वे इस आंदोलन में जोर-शोर से लग गए ।

9 अम्लता-क्षारता व पी.एच.

(Acidity-Alkaliness and P.H.) 

 

 

जब जल में लवण तथा खनिज पदार्थ मिलते हैं, तब वह जल अम्लीय या क्षारीय हो जाता है  ।पी. एच. जल के अम्लीय या क्षारीय स्वाभाव का सूचक है I अम्ल की वृद्धि से घटता और क्षारता की वृद्धि से  पी. एच. बढ़ता है ।उदासीन जल का  पी. एच. लगभग 7.0 होता है । पी. एच. मापने के लिए रंगमापी विधियाँ ( सूचकों का प्रयोग करके ) या स्वचालित विधुतमापीय विधियाँ (  पी. एच. मीटर ) हैं ।

 

10 अम्ल वर्षा

( Acid Rain ) 

 

शुद्ध वर्षा जल में कार्बन डाई- ऑक्साइड गैस घुली होती है, जिसके कारण वह पूर्णत: उदासीन न होकर कुछ-कुछ अम्लीय होता है ; किंतु औद्योगिक प्रदूषण के कारण वायुमंडल में प्राप्य गंधक तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सल्फ्यूरिक  तथा नाइट्रिक अम्ल मिल जाने से वह पूर्णत: अम्लीय हो जाता है  ।यही अम्ल वर्षा है ।यह अम्लता कार्बन डाई- ऑक्साइड के कारण नहीं होती। अम्ल वर्षा से वनस्पति तथा मृदा को क्षति पहुँचती है। साथ ही झील आदि के जलीय जीव भी इस से दुष्प्रभावित होते हैं।भवनों व इमारतों पर भी अम्ल वर्षा का कुप्रभाव पड़ता है। सल्फर डाई- ऑक्साइड इमारतों में स्थित चूने व कुछ पत्थरों से प्रतिक्रिया करती है, जिससे जिप्सम पैदा होता है ।इससे कई बार इमारतों में दरारें उत्पन्न हो जाती हैं  ।

ऐतिहासिक इमारत ताजमहल को भी  सल्फर डाई- ऑक्साइड से खतरा बना रहता है ।संगमरमर पर इस गैस का सीधा प्रभाव पड़ता है और उसकी सफेदी धूमिल पड़ने लगती है।यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करके ताजमहल के आस-पास के प्रदूषणकारी उद्योगों को हटवाया है।इमारतों व  उद्योगों में प्रयुक्त धातुओं पर अम्ल वर्षा का कुप्रभाव पड़ता है। तांबा,  अल्युमीनियम जैसी बहुतायत से प्रयोग होनेवाली धातुएँ प्रभावित होने लगती हैं ।ये धातु – प्रदूषण का भी काम करती हैं और चीजें विषैली हो जाती हैं ।

 

 

– पूजा सुन्डी

सहायक प्रबंधक ( पर्या. )