यह पर्यावरण के लिये ही नहीं मानवता के समक्ष भी कठिन समय है। कोरोना की दूसरी लहर ने सर्वत्र ऐसे दृश्य उपस्थित किये हैं जो भयावह हैं। ऐसे समय में एक भारतीय के रूप में हमारी पहचान सुनिश्चित होनी है, यह समय कसौटी है कि महामारी से राष्ट्र के रूप में एकजुट हो कर हम कैसे लड़ें, कैसे एक दूसरे की मदद करें, कैसे फिर से सब कुछ सामान्य हो सके, उसके लिये सतत प्रयत्नशील रहें। इस कठोर कालखण्ड में भी यह देखना सु:खद है कि देश का सरकारी तंत्र, पब्लिक सेक्टर इकाईयों सहित निजी क्षेत्र भी बढ़-चढ़ कर सामने आये हैं और अपनी अधिकाधिक क्षमता तक केंद्र व राज्य सरकारों को ही नहीं अपितु आमजन के लिये भी मदद पहुँचाने में सक्रिय हैं। एनएचपीसी प्रबंधन ने भी इस आपदा के समय अपने दायित्वों का सतत निर्वहन किया है। इसी से जोड़ कर मैं कहना चाहता हूँ कि पर्यावरण के प्रति हमारी संवेदना हमें महामारियों से बचा सकती है,जिसके लिएसजगता आवश्यक है।इस वर्ष जनवरी 2021मेंवर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा जारी ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट – 2021 में कोरोना और इस जैसी संक्रामक बीमारियों को इंसानों और व्यापार के लिए एक बड़े खतरे के रूप में बताया है। इस रिपोर्ट में पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं जैसे जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता को हो रहे नुकसान को कोरोना से बड़ा खतरा माना है। विकासशील देश बडी विपत्ति में है लेकिन यहाँ के जुझारू आम जन किसी भी आपदा से लड़ सकते हैं, हम कोरोना के इस दौर की गर्दन पर शीघ्र ही अंकुश रख पायेंगे, मैं इसकी आशा करता हूँ, साथ ही यह अपेक्षा भी रखता हूँ कि सभी स्वयं सुरक्षित रहें और सरकार द्वारा निर्धारित गाईडलाईंस का पालन करते रहें।

 

मई का महीना ग्रीष्म ऋतु की पहचान है, साथ ही प्रतिवर्ष इस माह में पर्यावरण से जुडे अनेक वैश्विक दिवस भी मनाये जाते हैं,  उदाहरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय तेंदुआ दिवस (3 मई), विश्व प्रवासी पक्षी दिवस (प्रत्येक मई माह का दूसरा शनिवार), लुप्तप्राय प्रजाति दिवस (प्रत्येक मई का तीसरा शुक्रवार), जैविक विविधता के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस (22 मई), विश्व कछुआ दिवस (23 मई), विश्व ऊदबिलाव दिवस (27 मई), विश्व तोता दिवस (31 मई) आदि। इनकी संरचना पर ध्यान दें तो सभी जीव जगत और उनके  संरक्षण से जुड़ेदिवस हैं। यह हम सबका दायित्व है कि इस धरती को केवल मनुष्यों के रहने लायक न छोड़ें बल्कि जीव-जंतुओं को उनकी नैसर्गिकता और विविधता के साथ रहने योग्य वातावरण भी निर्मित करें।  सोच कर देखें ऐसी धरती जिसमें केवल इन्सान हों, कोई पशुपक्षी नहीं? अव्वल तो इस परिस्थिति में मनुष्य भी संकटग्रस्त प्राणीयों की गिनती में आ जायेगा दूसरा यह भी सोचें कि जैसे-जैसे जीव धरती को अलविदा कह रहे हैं यहाँ का रंग-बिरंगापन भी सिमटता जा रहा है। गिद्धों से ले कर गोरैया तक अब बमुश्किल ही कहीं देखने को मिलती है। यही कारण है कि एनएचपीसी एक जिम्मेदार और पर्यावरण प्रिय संस्था के रूप में सतत विकास की अवधारणा की ओर सर्वदा प्रतिबद्ध रहा है। जैव-विविधता संरक्षण की योजनायें प्राथमिकता से हमारी पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन रिपोट का हिस्सा होती हैं, सुझावों का अक्षरत: प्रतिपादन भी किया जाता है।

 

इन शब्दों के साथ एक बार पुन: मैं दोहराना चाहता हूँ कि कोरोना से सतर्क रहें, सभी गाईडलाईंस का पालन करते रहें साथ ही बीमारी से लड़ने में समाज और मानवता को यथायोग्य अपना योगदान भी दें। साथ ही साथ इस धरती की हरियाली की भी चिंता करें जिससे वे परिस्थितियाँ फिर सामने न आयें जिनसे आज हम जूझ रहे हैं।

 

एन एस परमेश्वरन

कार्यपालक निदेशक, पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन विभाग 

 

 

 

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