आजकल की व्यस्त दिनचर्या में मनुष्य अपने खान-पान पर ध्यान नहीं दे रहा है । परिणामस्वरूप वह अनेक व्याधियों से ग्रसित होता जा रहा है। हालाँकि आज के वैज्ञानिक युग में रोगों के निदान के लिए आधुनिक रासायनिक दवाएं एवं शल्य चिकित्साएँ उपलब्ध हैं, किन्तु फिर भी पादप औषधियाँ अनेक रोगों के निदान के लिए कारगर सिद्ध होती हैं क्योंकि वह या तो परंपरा पर आधारित हैं या युगों से जनजातियों एवं लोकमान्यताओं द्वारा प्रयोग में लाई जा रही हैं । ऐसी ही एक औषधीय पादप जाति कुकरौन्धा (ब्लूमिया लैसेरा) है जो अनेक रोगों के निदान के लिए प्रचलित एवं कारगर है । विशेषतः उत्तर एवं मध्य भारत में इसका उपयोग बवासीर के निदान के लिए अत्यधिक प्रचलित है ।

 

विशेषता-

कुकरौन्धा एस्टेरेसी कुल का सदस्य है । यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार तथा ओडिशा में बहुतायत से मिलता है । यह एकवर्षीय, उच्छीर्ष पौधा है जिसकी ऊँचाई 30 से 80 सेमी होती है । तने पर घने ग्रंथिल रोम होते हैं । पत्तियां सरल, एकांतरक्रम में व्यवस्थित तथा दीर्घवृतीय होती हैं । इनके किनारे अच्छिन्न अथवा पालित, शीर्ष निशिताग्र तथा पालियाँ अनियमित रूप से ऋकची-दन्तुर होती हैं । ये 3 से 13 सेमी लंबी तथा 1.2 से 5 सेमी तक चौड़ी हो सकती हैं तथा इनकी दोनों सतहों पर ग्रंथिल रोम पाए जाते हैं । कुकरौन्धा में मुण्डक पुष्पक्रम मिलता है जिनका व्यास लगभग 3.5 सेमी होता है तथा ये अक्षीय एवं शीर्षस्थ समूहों में व्यवस्थित होते हैं । रश्मिपुष्पक लगभग 3 मिमी लंबे एवं बिम्बपुष्पक 3.5 मिमी लंबे होते हैं । एकीन लगभग 0.5 मिमी लंबे तथा रेखीय होते हैं ।

 

रोगों में प्रयोग/ औषधीय उपयोग-

बवासीर में प्रयोग के लिए इसकी पत्तियों को छाँव में सुखाकर पीस लेते हैं । पिसी हुई पत्तियों को कागज में लपेटकर सिगरेट की तरह बनाकर भोजन के उपरांत पीने से बवासीर में आराम मिलता है । साथ ही साथ इस सूखे चूर्ण को भोजन के उपरांत पानी के साथ निगलने से भी लाभ होता है । दूसरी ओर इसकी ताजी पत्तियों को पीसकर बनाए गए लेप को कपड़े के टुकड़े में लगाकर गुदा पर रखने से भी लाभ मिलता है ।

 

इसके अतिरिक्त यह पौधा कई अन्य रोगों के लिए भी उपयोगी है । इसकी पत्तियों को पीसकर लेप को कटी-छिली त्वचा तथा घावों पर लगाने से लाभ मिलता है । इसकी पत्तियों का रस आंतों में पाए जाने वाले कृमियों को बाहर निकालने में भी उपयोगी पाया गया है । साथ ही साथ पत्तियां ज्वरनाशक, प्रदाहनाशक, वायुनाशक तथा यकृत रोगों में भी लाभकारी होती हैं । उपरोक्त उपयोगों के अतिरिक्त यह पित्त एवं कफ, उदरपीड़ा, श्वेतप्रदर, फेफड़ों की सूजन, हैजा तथा श्लेष्मा के प्रदाह में भी लाभकारी होता है ।

— द्वारा

डॉ. अजय कुमार झा

वरिष्ठ प्रबन्धक (पर्यावरण), तीस्ता-VI जलविद्युत परियोजना