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प्रवासी प्रजाति पर सम्मेलन (सीएमएस), संयुक्त राष्ट्र की एक पर्यावरण संधि है, जिसमें विभिन्न देशों द्वारा पारिस्थितिक संयोजकता और कार्यक्षमता, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और प्रवासी प्रजातियों संरक्षण के उपायों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया जाता है। सीएमएस वन्यजीव की प्रवासी प्रजातियों और उनके आवासों के संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक प्रमुख समझौता है तथा पार्टियों का सम्मेलन (COP) इस अधिवेशन का निर्णय लेने वाली इकाई है।

 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तत्वावधान में प्रवासी प्रजाति पर सम्मेलन – वन्य प्राणियों के संरक्षण पर पार्टियों का 13वां सम्मेलन (COP) का आयोजन 15 से 22 फरवरी, 2020 के दौरान गांधीनगर, गुजरात में आयोजित हुआ । 82 पार्टियों और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले प्रतिष्ठित संरक्षणवादी संस्थानों और अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया ।

 

प्रवासी पक्षियों पर सम्मेलन (सीएमएस)

यह सम्मेलन (सीएमएस) प्रवासी प्रजातियों और उनके आवासों के संरक्षण हेतु  विचार-विमर्श करने के लिए एक वैश्विक मंच प्रदान करती है। विशेष रूप से, यह एकमात्र वैश्विक मंच है जो प्रवासी प्रजातियों, उनके प्रवास मार्गों और आवासों के कल्याण से संबंधित नीतिगत मामलों में सक्रिय रूप से भाग लेता है। सन 1979 में जर्मनी में गठित यह संस्था, लुप्तप्राय व संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने और इस कार्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जुटाने हेतु 130 से अधिक देशों को एक साथ लाता है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के तत्वावधान में प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण हेतु  इस सम्मेलन को ‘बॉन कन्वेंशन’ के रूप में भी जाना जाता है। यह प्रवासी जानवरों और उनके आवासों के संरक्षण और स्थायी उपयोग के लिए भी एक प्रयास करता है तथा उन देशों को एकजुट करता है जिनके क्षेत्रों से होकर प्रवासी प्रजातियाँ आवागमन करते हैं। सीएमएस विभिन्न देशों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वय संरक्षण उपायों के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है।

सीएमएस में कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों और भागीदारों देशों के साथ-साथ कॉर्पोरेट क्षेत्र की भी भागीदारी है। इस सम्मेलन के तहत, विलुप्तप्राय प्रवासी प्रजातियों को परिशिष्ट-I पर सूचीबद्ध किया गया है। विभिन्न भागीदार देशों के सहयोग से सीएमएस इन प्रजातियों की कड़ाई से सुरक्षा, इसके आवासों की रक्षा तथा उन्हें पुनर्स्थापित करने की दिशा में प्रयास करती हैं। परिशिष्ट-I पर सूचीबद्ध जानवर से संबन्धित प्रवासन की बाधाओं को कम करने और अन्य कारकों को नियंत्रित करने का दायित्व भी भागीदारों देशों द्वारा किया जाता है । इसके अतिरिक्त ऐसे प्रवासी प्रजातियों जिसे प्रतिकूल संरक्षण स्थिति का सामना करना पड़ रहा है इसे परिशिष्ट- II में सूचीबद्ध किया गया है जिससे इस प्रजातियों के संरक्षण कार्यों में भी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त हो सके।

 

भारत में प्रवासी प्रजातियां

भारत कई प्रवासी जानवरों और पक्षियों के लिए अस्थायी घर है। प्रवासी वन्यजीव वे प्राणी हैं जो वर्ष के विभिन्न समयों में भोजन,  तापमान, जलवायु आदि जैसे विभिन्न कारकों के कारण एक निवास स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। प्रवासी पक्षी और स्तनधारी जीवों के मूल निवास स्थान के और प्रवास स्थान के बीच का विस्थापन कभी-कभी हजारों किलोमीटर से भी अधिक हो सकता है।

 

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में हर साल पक्षियों की कई प्रजातियां प्रवास करती हैं। इनमें से प्रमुख हैं अमूर फाल्कन्स, बार हेडेड घीस, ब्लैक नेकलेस क्रेन, मरीन टर्टल, डगोंग, हंपबैक व्हेल आदि। भारतीय उपमहाद्वीप प्रमुख बर्ड फ्लाईवे नेटवर्क यानी सेंट्रल एशियन फ्लाईवे (CAF) का भी हिस्सा है। सेंट्रल एशियन फ्लाईवे आर्कटिक और भारतीय महासागरों के बीच के क्षेत्रों तक फैला है, जिसमें 182 प्रवासी जल पक्षी प्रजातियों की कम से कम 279 आबादी शामिल है, जिसमें विश्व स्तर पर 29 सकंटग्रस्त प्रजातियां भी शामिल हैं। भारत ने मध्य एशियाई फ्लाईवे के तहत प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना भी शुरू की है।

 

 

 

– कुमार मनोरंजन सिंह , वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण)