चित्र : गैलेपागोस द्वीप समूह

 

 

 

जैव विविधता संरक्षण हमेशा से एनएचपीसी की सभी परियोजनाओं की प्राथमिकता रहा है। जैव विविधता के नष्ट होने में मानव के क्रियाकलापों का क्या योगदान है  तथा इसके दुष्प्रभावों को वैश्विक सन्दर्भों में भी समझने की आवश्यकता है । इसे गैलेपागोस द्वीप समूह के उदहारण से समझते हैं जो कि इक्वाडोर का एक भाग है। यह 13 प्रमुख ज्वालामुखी द्वीपों, 6 छोटे द्वीपों और 107 चट्टानों और द्वीपिकाओं से मिलकर बना है। इसका सबसे पहला द्वीप 50 लाख से 1 करोड़ वर्ष पहले निर्मित हुआ था। सबसे युवा द्वीप, ईसाबेला और फर्नेन्डिना, अभी भी निर्माण के दौर में हैं और इनमें आखिरी ज्वालामुखी उद्गार 2005 में हुआ था। ये द्वीप अपनी मूल प्रजातियों की बहुत बड़ी संख्या के लिए प्रसिद्ध हैं। चार्ल्स डार्विन ने अपने अध्ययन यहीं पर किए और प्राकृतिक चयन द्वारा विकासवाद का सिद्धांत प्रतिपादित किया। यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। 2005 में लगभग 1,26,000 लोगों ने पर्यटक के रूप में गैलेपागोस द्वीपसमूह का भ्रमण किया। इससे न सिर्फ द्वीपों पर मौजूद साधनों को खामियाजा भुगतना पड़ा बल्कि पर्यटकों की बहुत बड़ी संख्या नें यहाँ के वन्यजीवन को भी प्रभावित किया है।

 

इसके साथ ही यह भी देखे जाने योग्य तथ्य है कि विशिष्ट प्रजाति की समृद्ध विविधता को दूसरी प्रजातियों से प्राकृतिक अवरोध जैसे महासागर आदि सुरक्षा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए यदि आस्ट्रेलिया एक द्वीप नहीं होता तो आस्ट्रेलिया के विशिष्ट प्राणि जीवन एवं वनस्पति जीवन का वास्तव में आज तक बचा रह पाना मुश्किल था। किंतु अब स्थिति बदल रही है महासागरों और महाद्वीपों के बीच की दूरी हमने जलपोतों और वायुयानों की मदद से पाट दी है। इसे दृष्टिगत रखते हुए यह संभावना बनती है कि यदि इसी तरह हम विभिन्न पारिस्थितिकी क्षेत्रों की प्रजातियों को दूसरे पारिस्थितिक तंत्र तक पहुँचाते रहेंगे तो किसी दिन संभव है कि आक्रामक, महाप्रजातियां जल्द ही दुनिया पर राज करने लगें, और बाकी सब पाठ्यपुस्तकों में चित्रों के रूप में ही बच पाएगा। कथनाशय यह है कि पर्यावरण संरक्षण की प्राथमिक शर्त है – Think Globally and Act Locally.

 

हमने ग्यारह जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया, आगामी 28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जाएगा। हमें मानव संसाधन विकास की ऐसी योजना कर कार्य करना चाहिए जिससे अपनी जनसंख्या के लिए भोजन-पानी और रोजगार जुटा सकें, इसकी अभिवृद्धि पर लगाम लगाने मे सक्षम हों। अगले एक दशक मे भारत चीन को पीछे छोड़ कर विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बना जाएगा। अब गंभीरता से देखना होगा कि क्या हमारे पास इतने संसाधन हैं कि हमारा पर्यावरण आबादी का बोझ सह सकेगा? आबादी ने कैसे पर्यटन और उसके माध्यम से परिवेश को प्रभावित किया है इसपर  ऊपर हमने चर्चा की है। उपसंहार मे यही कहना उचित होगा कि विश्व बचेगा अगर पर्यावरण बचा रहा अर्थात इसके संरक्षण संवर्धन के लिए हमे जुट जाना चाहिए। संभवत: यही विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाये जाने के पीछे अंतर्निहित भावना भी है।

 

 

(अरुण कुमार मिश्रा)

कार्यपालक निदेशक (पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन)

 

आवरण चित्र साभार: https://www.planetware.com/tourist-attractions/ecuador-ecu.htm