इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के पावन प्रभात में हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया। उन्होने समस्त भारतवासियों से अपेक्षा की है कि देश को पोलीथीन मुक्त करने के लिए उसी तरह का अभियान चलाया जाये जैसा स्वच्छता अभियान संचालित हो रहा है। प्रधानमंत्री ने स्पष्टत: कहा कि एक बार इस्तेमाल होने वाले पोलीथीन का पूरी तरह त्याग कर दिया जाना चाहिए। इसके विकल्प के रूप में कपड़े अथवा जूट के थैलों के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। आगामी दो अक्टूबर अर्थात राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जयंती के अवसर पर प्लास्टिक कचरे के एकत्रीकरण एवं उसके सुचारू रूप से निष्पादन करने पर अनेक राष्ट्रीय कार्यक्रमों का आगाज किया जाना है। हम सभी को सुनिश्चित करना चाहिये कि प्लास्टिक कचरे को कम करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है। कहते हैं बूंद बूंद से घड़ा भरता है अर्थात प्रत्येक नागरिक द्वारा स्वयं के स्तर पर किया गया प्रयास स्वच्छता क्रांति में परिवर्तित हो सकता है।

 

वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष लगभग अस्सी लाख टन प्लास्टिक कचरा हमारे महासागरों में समाहित हो जाता है। महासागर तक पहुँचने वाले प्लास्टिक कचरे का नब्बे प्रतिशत हिस्सा जिन नदियों से आता है वे हैं – यांग्त्जे, गंगा, सिंधु, येलो, पर्ल, एमर, मिकांग, नाइल और नाइजर। इस सूची में प्लास्टिक कचरा वाहित करने वाली सर्वाधिक नदियां चीन से हैं परंतु इसमें भारत की गंगा और सिंधु नदी का नाम होना हमारे लिए चिंता का विषय अवश्य है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत मे प्लास्टिक की बोतलें ही सबसे बड़ा कचरा है। संपूर्ण उत्पादित प्लास्टिक कचरे का केवल दस प्रतिशत ही रि-साइकिल किया जा सकता है, शेष नब्बे प्रतिशत हमारी जमीन और पानी को दूषित कर रहा है। ध्यान देने योग्य बात है कि रि-साइक्लिंग की प्रक्रिया भी प्रदूषण को बढ़ाती है। रंगीन प्लास्टिक थैलों में ऐसे रसायन होते हैं जो ज़मीन में पहुंच जाते हैं और मिट्टी और भूगर्भीय जल को विषैला बना देते हैं। रि-साइकिलिंग के दौरान पैदा होने वाले विषैले धुएं से वायु प्रदूषण फैल रहा है। अर्थात किसी भी रूप मे पोलीथीन और अन्य प्रकार के प्लास्टिक कचरे का प्रयोग लाभकारी नहीं है।

 

पर्यावरण वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने रि-साइकिल्ड प्लास्टिक मैन्यूफैक्चर एंड यूसेज़ रूल्स-1999 जारी किया था। इस रूल को वर्ष 2003 में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1968 के तहत संशोधित किया गया है, जिससे कि प्लास्टिक की थैलियों और डिब्बों का नियमन और प्रबंधन सही तरीक़े से किया जा सके। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने भी धरती में घुलनशील प्लास्टिक के 10 मानकों के बारे में अधिसूचना जारी की है। नियम-कानून सब उपलब्ध हैं बस जागरूकता की कमी है। हमें देश भर में सफलतापूर्वक चल रहे स्वच्छता अभियान का प्राथमिक हिस्सा प्लास्टिक प्रदूषण से अवमुक्ति को बनाना चाहिए।

 

(हरीश कुमार)

मुख्य महाप्रबंधक (पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन)