जीवित जीवश्‍म है माउस डियर

 

तेलांगना वन विभाग ने प्रदर्शनी में एक ऐसे जीव के विषय में जानकारी प्रदर्शित की थी जिसे जीवित जीवाश्‍म भी कहा जा सकता है। वे जीव जो आज से लाखों वर्ष पहले इस पृथ्‍वी पर उत्‍पन्‍न होकर किसी प्रकार प्राकृतिक परिवर्तनों से अप्रभावित रहकर आज भी पृथ्‍वी पर पाये जाते हैं, जीवित जीवाश्‍म कहलाते है। जीवित जीवाश्‍म का पाया जाना यह प्रमाणित करता है कि जैव-विकास हुआ है। इस श्रृखंला में दुर्लभ प्रजाति के जीव माउस डियर से संबंधित जानकारियों और मॉडल को तेलांगना वन विभाग के स्टॉल में प्रदर्शित किया गया था।

 

‘माउस डियर’ बहुत ही रोचक जीव है जो कि चूहे से बडा और एक खरगोश के आकार का होता है। असामान्‍य रूप से छोटी हिरण की इस प्रजाति को सबसे छोटे खुर वाला स्‍तनधारी माना जाता है। माउस डियर का वजन लगभग चार से साढे चार किलो तक होता है। आगे से चूहे जैसा दिखने वाले इस हिरण के पीठ पर चांदी जैसी चमक होती है, इसलिए इसे सिल्‍वर-बैकेड चेवरोटाइन भी कहा जाता है। ग्‍लोबल वाइल्‍डलाइफ कंजर्वेशन के अनुसार आखिरी बार माउस डियर को वर्ष 1990 में देखा गया था, उसके बाद यह कहीं दिखाई नहीं दिया तो विशेषज्ञों ने मान लिया कि यह प्रजाति अवैध शिकार के कारण विलुप्‍त हो गई है। हाल के दिनों में तेलांगना और छत्‍तीसगढ के जंगलों में इसे देखा गया है। तेलांगना वन विभाग अभियान की तरह इस दुर्लभ प्रजाति के जीव को संरक्षित करने की दिशा में कार्य कर रहा है। प्रक्ति संरक्षण के लिए बनाई गई सूची में माउस डियर रेड लिस्‍ट अथवा विलुप्‍त होने वाली श्रेणी में रखा गया है।

 

ये कुछ उदाहरण थे जो प्रवासी अथवा विलुप्‍त होने वाले जीव जगत को सुरक्षित करने की दिशा में उठाए गए कदमों का लेखा जोखा प्रस्‍तुत करते हैं। कोप-13 में आयोजित प्रदर्शनी एक सुखद अनुभूति प्रदान करा रही थी कि भारत में बड़े पैमाने पर विभिन्‍न उपक्रमों, सरकारी संस्‍थानों, वन विभाग और एनजीओ द्वारा जोखिम में आए जीव-जंतुओ के संरक्षण के लिए कार्य किया जा रहा है।

 

गौरव कुमार, उप-महाप्रबंधक पर्यावरण

राजीव रंजन प्रसाद, वरिष्‍ठ प्रबंधक पर्यावरण

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संकलन: वैश्विक समिट काप – 13 में प्रदर्शित प्रवासी जीव जगत पर केंद्रित कार्यो, मॉडलों तथा तस्‍वीरों के आधार पर।