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पर्यावरण ऊर्जा टाइम्स  (अंक जुलाई – 2018) में प्रकाशित  

 

हर वर्ष 5 जून को संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2018 के आयोजन का विषय था – बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन अर्थात प्लास्टिक प्रदूषण को परास्त करें। यह विश्व पर्यावरण दिवस और भी खास रहा क्योंकि आयोजन की मेजबानी भारत देश ने की। वर्ष 1972 में स्टॉकहोम सम्मेलन के पहले दिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस मनाये जाने की घोषणा हुई एवं इसके दो वर्षों के बाद वर्ष 1974 में पहली बार “केवल एक धरती” विषय वस्तु पर केंद्रित विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। तब से इन चवालिस वर्षों में निरन्तर विभिन्न विषयवस्तुओं पर केंद्रित आयोजनों के द्वारा पृथ्वी को बचाने की मुहिम चल रही है।  विश्व पर्यावरण दिवस अब जन जागरूकता कार्यक्रम के रूप में विश्वव्यापी स्वरूप ले चुका है।

 

पर्यावरण संवर्धन की दिशा में अब सचेत होने की हमारी बाध्यता का प्राथमिक कारण है जलवायु परिवर्त्तन के अपेक्षित दुष्परिणामों का परिलक्षित होना। जो द़ृश्य लगभग दो-तीन  दशकों पहले हौलीवुड की फिल्मो में नज़र आते थे, अब रोज़ ही विश्व के किसी ना किसी कोने में साक्षात हो रहे हैं। असाधारण गर्मी, असाधारण एवं बिन मौसम बारिश, तूफानी हवाएँ, समुद्री तूफान में अभूतपूर्व वृद्धि, जल एवं वायु प्रदूषण से होने वाली खतरनाक बीमारियाँ, पीने के पानी का अभाव इत्यादि आने वाले प्रलय का साफ संकेत दे रहे हैं।वर्ष 2018 के विश्व पर्यावरण दिवस की विषय वस्तु “प्लास्टिक प्रदूषण को पराजित करें” का प्रथम पर्यावरण दिवस की विषय वस्तु “केवल एक धरती” से सीधा संबन्ध प्रतीत होता है।

 

हमारी नासमझी और लापरवाही के कारण हर वर्ष तेरह मिलियन टन प्लास्टिक समुन्दर में जा रहा है। प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पूरे विश्व में व्यक्तिगत स्तर पर बहुत सारी कोशिशें हो रही हैं। इसके बाद भी हमारी प्रवृत्ति ऐसी है कि हर व्यक्ति यह सोचता है, जिस प्रकार सरकार स्वच्छ भारत मुहिम में शौचालय बनवा बनवा कर लोगों को खुले में शौच करने पर पाबंदी लगा रही है वैसे ही हाथ में कपड़े का थैला लाकर देगी, तब हम प्लास्टिक के प्रयोग पर रोक लगाएँगे।

 

वर्ष 2018 में जब हमारा देश विश्व पर्यावरण दिवस के मेजबान के रूप में वैश्विक कार्यक्रमों की तैयारियों में मशगूल था, ठीक उसी दौरान तूफानी एवं गर्म हवाओं के चपेट में आकर विभिन्न राज्यों में कई लोगों ने अपनी जाने गवां दी। खबर आई कि शिमला में पीने के पानी के अभाव में पाँच दिनों के लिए स्कूल बंद कर दिये गए। विडम्बना देखिये कि जितना समय इस आलेख को पूरा करने में लगा उतनी देर में लगभग 35 हज़ार टन प्लास्टिक समुद्र में विसर्जित कर दिया गया होगा जो कि ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं और उनके कारण उत्पन्न होने वाली विभीषिकाओं का जनक है। ये कुछ उदाहरण इस बात के साक्ष्य हैं कि वर्ष में एक दिन वृक्षारोपण करने, विश्व पर्यावरण दिवस के दिन पाँच सितारा होटलों में बड़े बड़े सम्मेलन करने अथवा पर्यावरण संरक्षण के सार्थक संदेश को सोश्यल माध्यमों पर आगे ठेल देने से न अपने गृह को बचाया जा सकता है और न ही इस ग्रह को। यह समय की मांग है कि मानव जाति अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर संदेश अग्रसारक की भूमिका से आगे निकले एवम स्वयं की पहल से किये गए कार्यों के कारण संदेश वाहक बने।

 

सबसे सरल उपाय है कि स्कूल के बच्चों के माध्यम से बड़ी मुहिम चलाई जाए। बच्चे यदि पर्यावरण संरक्षण की महत्ता समझ गये तब संवर्धन के कार्य को पूरा कर पाना आसान हो जाएगा। यह लेख मैं अपनी दस वर्षीय पुत्री की प्रेरणा से लिख रहा हूँ जिसके परोक्ष में एक घटना है जो साझा करना चाहता हूँ। दो हफ्तों से निरन्तर मैं उसे दूध, फल और सब्ज़ी खरीदने अपने साथ ले कर जा रहा हूँ। बाज़ार में दुबारा प्रयोग में ना आ सकने वाली प्लास्टिक के अनियंत्रित प्रयोग एवं मेरी ओर से व्यक्तिगत स्तर पर इसके प्रयोग में कमी लाने के लिए कोइ गंभीर प्रयास को ना देख कर उसके व्यहवार में मैंने अजीब प्रकार की असहजता देखी। कभी दूध लेने के लिए, कभी एक सब्ज़ी को दूसरी सब्ज़ी में मिल जाने से बचाने के लिए, कभी आलस्य के कारण प्रतिदिन दो चार चीजें मैं पॉलीथीन की थैली में घर ला रहा था। इसपर बेटी मुझसे नाराज हो जाती और हर बार गिनाती कि आपके कारण आज इतनी संख्या में पॉलीथीन का कचरा उत्पन्न हुआ। मुझे यह जागरूकता अच्छी लगी और मैं सराहना करते हुए पुन: प्रयोग न करने का वायदा किया। हैरानी हुई जब अनपढ़ समझे जाने वाले दुकानदारों ने भी पुत्री की पॉलीथीन का प्रयोग न करने सम्बंधी जागरूकता को खुल कर सराहा। अब बाजार जाते हुए कपड़े अथवा जूट के थैले ले जाना मेरा स्वभाव बन गया है। यह प्रयास छोटा है किंतु अत्यधिक महत्तवपूर्ण है।

 

मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ कि पर्यावरण बचाने की मुहिम में मेरी पुत्री अपनी सतर्कता और जागरूकता के कारण सार्थकता के साथ सम्मिलित हो गयी है। यदि प्रत्येक छात्र ऐसा ही जागरूक हो जाये तो शहरी आबादी के द्वारा अनियंत्रित रूप से उपयोग किए जा रहे प्लास्टिक/पॉलीथीन को कम किया जा सकेगा एवं उत्पादित कचरे का पर्यावरण प्रिय निष्पादन सुनिश्चित किया जा सकेगा। आवश्यक है कि हम स्वयं से आरम्भ करें स्वत: कारवां बनता चला जायेगा। बच्चों में आने वाली पर्यावरण जागरूकता का श्रेय उनके विद्यालय एवं शिक्षकों को जाता है। इसी पीढ़ी के माध्यम से किये गये सतत प्रयासों के द्वारा ही पर्यावरण संरक्षण की दिशा प्रशस्त होगी एवं यह भावना एक जन आंदोलन का रुप ले सकेगी।

 

डॉ. सुजीत कुमार बाजपेयी, उप-महाप्रबंधक (पर्यावरण) 

पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन विभाग, निगम मुख्यालय, फरीदाबाद