पर्यावरण के सिद्धांतों को जीवन में आत्मसात करना आवश्यक है, इस सम्बन्ध में महात्मा गाँधी अनुकरणीय हैं। एक संत, एक युगप्रवर्तक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में हम उन्हें जानते हैं परंतु एक पर्यावरण चिंतक के रूप में भी उनकी अनिवार्य रूप से चर्चा होनी चाहिये। विचार कीजिये कि पहनावे में खादी का प्रयोग, दार्शनिकता में अहिन्सा के तत्व तथा जीवन शैली में स्वच्छता का अनुसरण, क्या पर्यावरण संरक्षण के मूल सिद्धांत नहीं हैं ? गाँधी जी मानते हैं कि प्रकृति हमें पहनने-खाने का इतना कुछ देती है कि किसी लोभ के लिये उसका दोहन अनुचित है। यह धरती, इसमें बसने वाले प्रत्येक पेड़ पौधे और जीवजंतु की है, साथ ही जो गंदगी अथवा प्रदूषण जिसने फैलाया है उसको ही स्वच्छ करना होगा। इन तीन बिंदुओं पर ध्यान पूर्वक विचार करें तो आज पर्यावरण प्रिय जीवन शैली अपनाने के जो विचार हैं, सतत विकास की जो अवधारणा है एवं ‘पॉल्यूटर पेज़’ से जुड़ी नियमावलियाँ हैं, सब कुछ महात्मा गाँधी की विचार प्रक्रिया से उत्पन्न जान पड़ता है। उनका प्रसिद्ध कथन इसीलिये बार-बार वैशविक मंचों से उद्धरित भी किया जाता है कि प्रकृति सभी मनुष्यों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है, उनके लालच को नहीं। “ 2 अक्टूबर को जब हम महात्मा गाँधी की जयंती मनाते हैं तब उनका सूत्रवाक्य विस्मृत कर देते हैं, उन्होंने कहा था कि “मेरा जीवन ही मेरा संदेश है”।

 

 

महात्मा गाँधी के जीवन दर्शन से हो कर, हमें अपने कार्यों की समुचित विवेचना करनी चाहिये। भारत एक ग्रामवासी देश कहा जाता है; हमारे सभी उद्यम गाँवों के विकास के लक्ष्य के साथ होने चाहिये। एनएचपीसी द्वारा यह प्रयास किया जाता है कि अपनी परियोजनाओं के लिये पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन करते हुए परियोजना प्रभावित परिवारों के हित में योजनाओं को निर्मित किया जाये। जलविद्युत परियोजनाओं को वैसे भी ‘पर्यावरण प्रिय’ माना जाता है। हाल के दौर में जिस तरह का ईंधन संकट ब्रिटेन में देखा गया अथवा कोयला की अनुपलब्धता के कारण विद्युत संकट चीन में देखा जा रहा है, ऐसे में किसी भी देश की दूरगामी रणनीति गैरपारम्परिक ऊर्जास्त्रोतों की ओर लौटना ही हो सकती है। प्रकृति ने हमें धूप और पानी प्रचुरता में दिया है जिनका समुचित प्रयोग राष्ट्र को अपनी ईंधन व ऊर्जा आवश्यकताओं के दृष्टिगत आत्मनिर्भर बना सकता है। एनएचपीसी ने न केवल जल अपितु अब सौर ऊर्जा उत्पादन की दिशा में अपने मजबूत कदम बढ़ा दिये हैं। महात्मा गाँधी के प्रकृति के साथ चलने का मंत्र और विकास की उनकी परिभाषा को एनएचपीसी ने अपने योजना निर्माण और प्रतिपादन में आत्मसात किया है। मेरा एनएचपीसी पर्यावरण ब्लॉग के सभी पाठकों से यह आग्रह होगा कि महात्मा गाँधी से प्रेरित हो कर अपनी जीवनशैली में पर्यावरण से जुड़ी सोच, समझ को अवश्य विकसित करें।

 

 

वी आर श्रीवास्तव

कार्यपालक निदेशक

पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन विभाग

 

 

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