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पांगी घाटी : संक्षिप्त विवरण

 

हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा का उपमण्डल पांगी जनजातीय क्षेत्र में आता है जिसका मुख्यालय किलाड में स्थित हैI किलाड समुद्रतल से 14500 फुट की ऊंचाई पर देश के मानचित्र में 32°-33″ से 33°-19″ उत्तरी आंक्षाश तथा 76°-15″ से 77°-21″ देशान्तर रेखाश के मध्य स्थित है। पांगी घाटी समुद्रतल से 2000 से 4000 मीटर तक की ऊंचाई पर स्थित है। इस घाटी का कुल क्षेत्रफल लगभग 1601 वर्ग कि.मी. है, जिसमें से लगभग 82% क्षेत्रफल पर वन, नदियां, नाले ,बडी चट्टानें, पहाड़ इत्यादि है। शेष 18% क्षेत्र आवासीय, कृषि योग्य एवं घास के मैदान हैं । यह जनपद पहाड़ी एवं प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर है। पीर पंजाल व जांसकर की पहाड़ियों के बीच में स्थित यह मनमोहक क्षेत्र चन्द्रभागा (चिनाब) नदी के दोनों ओर फैला हुआ है।

 

पांगी घाटी बहुत सुन्दर है। ऊँची-ऊँची पहाड़ों की चोटियां के बीच में कल-कल बहती चन्द्रभागा नदी मन मोह लेती है। यह घाटी गर्मियों में जितनी रमणीय एवं चहल-पहल युक्त लगती है, सर्दियों में कड़ाके की ठंड से उतनी ही कठिन, भयावह एवं सूनी-सूनी हो जाती है।

 

यहां की अपनी अलग लोक-संस्कृति, भाषा, धर्म, प्रथाएं एवं परम्पराएं हैं। पांगी क्षेत्र का रहन-सहन, समाजिक व्यवस्था व संस्कृति समृद्ध है। यहां की विशेष पहचान इसकी ‘प्रजा प्रणाली’ है, जो वर्तमान समय में भी एक राजनीतिक एवं सामाजिक संगठन के रूप में ‘पगवाला जनजातीय समाज’ में विधमान है। इनके द्वारा लिए गए निर्णय को आज भी प्रजा के सदस्यों को मानना होता है। जनजातीय क्षेत्र पांगी के विकास के लिए पांगी में 1986 में एकलौती प्रशासन प्रणाली हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई थी।

 

परिवहन मार्ग :

 

पांगी घाटी तक पहुंचने के लिए तीन रास्ते हैं। पहला रास्ता पठानकोट-जम्मू-उधमपुर-किश्तवाड़-गुलाबगढ़- सोहल तयारी-संसारी नाला- लुज के रास्ते लगभग 274 कि.मी. की दूरी के साथ है। किश्तवाड़ से लुज की दूरी 106 कि.मी. है जिसमें तियारी से किलाड़ तक का रास्ता अत्यंत दुर्गम है।पांगी घाटी के मुख्यालय किलाड तक पहुंचने के लिए दूसरा रास्ता कुल्लू-मनाली-अटल टनल-सिस्सू-तांदी-उदयपुर-तिन्दी-रौहली-शौर-पूर्वी चेरी-वगलो-किलाड है। पार्वती-l परियोजना से डुगर की दूरी 270 कि.मी. है। मनाली से उदयपुर तक बहुत अच्छी सड़क है परन्तु उदयपुर से किलाड-लुज की 95 कि.मी. की सड़क कच्ची, घुमावदार, पथरीली तथा खतरनाक मोड़ वाली है। मनाली से किलाड के लिए प्रतिदिन एचआरटीसी की एक बस आती-जाती है जो लगभग 14-15 घण्टे में यह दूरी तय करती है।पांगी घाटी के लिए तीसरा रास्ता चम्बा-तीसा- बैरास्यूल बांध(एनएचपीसी)-कालावन-सतरूडी-साचपास से होते हुए किलाड पहुंच जाता है। यह दूरी 170 कि.मी. है तथा यह सड़क साल में 4-5 महीने खुली रहती है।इसी रास्ते में एनएचपीसी की परियोजना बैरास्यूल का बांध स्थल आता है और यहां से 74 कि.मी. पर किलाड व किलाड  से 10 कि.मी. की दूरी पर डुगर परियोजना है। किलाड / डुगर मनाली के रास्ते साल में 8 महीने तथा जम्मू व कश्मीर की तरफ से 12 महीने सड़क परिवहन से जुड़ा रहता है। यहां के लिए भून्तर/ पठानकोट हवाई अड्डा सबसे नजदीक है। इन सड़को में अनुभवी ड्राईवर ही होने चाहिए व 4×4 गियर गाड़ियों से सफर करना चाहिए।

 

त्योहार एवं मान्यताएं :

 

पांगी घाटी के मेले एवं त्यौहार किलाड के ‘फुल्याच’ मेले से आरम्भ होते हैं जो कि प्रायः अक्तूबर मास के मध्य में होता है। यह यहां सर्दियों के आरम्भ होने का समय होता है। फसलें इत्यादि काट ली जाती हैं, सर्दियों के लिए पशुओं का चारा इकट्ठा कर लिया जाता है, आगामी ठंडे छः महीनों के लिए राशन इत्यादि जमा कर लिया जाता है।

 

सर्द ऋतु में पांगी घाटी में उत्तरायण का त्यौहार होता है, जबकि निचले क्षेत्रों में लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। माघ महीने की पूर्णमासी की शाम को किलाड़ क्षेत्र में ‘चज्गी’ या ‘रखडल’ का त्यौहार मनाया जाता है। इसके बाद की अमावस्या से पांगी घाटी का सबसे लंबी अवधि तक चलने वाला त्यौहार पडईद या जुकारू’ आरम्भ हो जाता है। इस समय घाटी में भारी मात्रा में बर्फ होती है और लोगों को इस त्यौहार का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य है कि भारी बर्फ-बारी में आप स्वस्थ्य हैं । अपने रिश्तेदारों से मिलना-जुलना, खाने पर बुलाना और पूराने गिले-शिकवे भूल कर नई शुरूआत करना है। यहां की भाषा में ‘तगडा असा’ या ‘तकडा अस्ता’ अर्थात् आप स्वस्थ हैं, कहा जाता है।

 

पांगी घाटी में 55 राजस्व गांव है । इसमें 5 गांव बौद्ध धर्म को मानने वाले है जिन्हें भोट-जनजातीय समुदाय कहा जाता है तथा यहां के लोग भटौरी कहलाते हैं । इस प्रकार पांगी में 5 भटौरी – सुराल भटौरी, हुण्डाण भटौरी, परमार भटौरी, हिलुढुवान भटौरी व चस्क-भटौरी हैं। चस्क भटौरी सबसे ऊंची (13000 फुट) चस्क गांव है। चम्बा जिला का सबसे ऊंचाई वाला मतदान केन्द्र इसी गांव में है।

 

पांगी घाटी में स्थित माता मिन्धल वासनी का प्रसिद्ध मन्दिर हिमाचल प्रदेश के चम्बा व लाहौल तथा केंद्रशासित जम्मू व कश्मीर के भद्रवाह व पॉडर क्षेत्र के लोगों के लिए मान्यता का प्रतीक है। यहां 12 भट्ट खानदान के ब्राहाण निवास करते थे इसलिए इस स्थान को मिन्धल भट्टवास के नाम से जाना जाता है। माता के आशीर्वाद से आज भी एक बैल से खेती की जाती है। आजादी के पूर्व इस मन्दिर का प्रबंधन चम्बा राजा के पास था। अब इस मन्दिर की कमेटी पांगी एसडीएम के अधीन है जो कि मन्दिर का रख-रखाव, पूजा आदि का हिसाब रखती है।

 

वर्ष 2008 में हुण्डाण भटौरी गांव की चरागाह शिकलधार के लम्वरानू नामक स्थान पर चरवाहों को शिवलिंग व गणेश के दर्शन हुए । पांगी घाटी देवभूमि है यहां प्रत्येक गांव में मन्दिर है और उनकी अपनी ही मान्यता है। इसी तरह डुगर परियोजना के पास सीतला माता व नाग देवता का मन्दिर है। सीतला माता यहां गुफा से प्रकट हुई है और बाहर भव्य मन्दिर है। इसी तरह किलाड में हणसुन नाग, करयास में वलीन वासिनी, करयूणी में तिलाकुण्ड माता व सिद्ध बाबा मन्दिर, फिन्डरू गांव के पास मुख्य सड़क पर भीम का पैर, पुर्थी गांव में माता मलासनी का मन्दिर मुख्य हैं।

 

पांगी घाटी में एनएचपीसी

 

एनएचपीसी द्वारा पांगी घाटी में चन्द्रभागा नदी से बिजली बनाने का कार्य प्रस्तावित है । डुगर जल विद्युत के नाम से 500 मेगावाट की यह परियोजना 25.09.2019 को एनएचपीसी को हिमाचल सरकार से प्राप्त हुई है।डुगर जल विद्युत परियोजना हिमाचल प्रदेश में चम्बा जिला के उपमण्डल पांगी में हिमाचल तथा केंद्रशासित जम्मू व कश्मीर की सीमा पर स्थित है। यहां से 5 कि.मी. की दूरी पर संसारी नाला से केंद्रशासित जम्मू व कश्मीर राज्य की सीमा शुरू होती है। पांगी के मुख्यालय किलाड से 10 किलोमीटर दूर, लुज नामक स्थान में चन्द्रभागा नदी पर डुगर परियोजना का बांध स्थल व पावर हाऊस प्रस्तावित है।

 

चन्द्रभागा वह नदी है जो लाहौल स्पीति के तादी नामक स्थान पर चन्द्रा तथा भागा दो नदियों के मिलने से बनती है। पांगी घाटी में इसे चन्द्रभागा कहते हैं तथा जम्मू-कश्मीर के पॉडर इलाके में प्रवेश करने के बाद इसे चिनाब के नाम से जाना जाता है। यह नदी संकरी व गहरी घाटियों से होती हुई बहती है। गहरी घाटियां होने के कारण इंसानी पहुंच के योग्य नहीं है। नदी के पहुंच से दूर होने के कारण नदी के पानी का प्रयोग न तो पीने के लिए होता है और न ही सिंचाई के लिए काम में लाया जाता है । पहले इस नदी का मुख्य उपयोग नदी की धारा पर लकड़ी के ढुलाई के लिए किया जाता था।

 

एनएचपीसी ने चम्बा जिला में बैरास्यूल, चमेरा, चमेरा-I  व चमेरा-II जल विद्युत परियोजनाएं बनाई हैं और पांचवी परियोजना के रूप में डुगर जल विद्युत परियोजना का निर्माण कार्य शुरू करने जा रही है। चन्द्रभागा नदी  लाहौल स्पीति व चम्बा जिला में 140 कि.मी. का सफर तय करने के बाद संसारी नाला के पास जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करती है, उसके बाद चन्द्रभागा को चिनाब के नाम से जाना जाता है तथा एनएचपीसी इस नदी पर करथई-II, किरू, क्वार, दुलहस्ती चरण-II, पकलडूल, रतले व सावलकोट परियोजनाओं का निर्माण करने जा रही है। डुगर जल विद्युत परियोजना हिमाचल प्रदेश में एनएचपीसी की अगली बड़ी 500 मेगावाट क्षमता की परियोजना है।

 

पांगी घाटी अतिसुन्दर है। यहां के लोग सीधे, सरल व मितभाषी हैं। पांगी चम्बा जिला का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है।यहां मिलने वाला सत्तू, कालाजीरा, ठांगी, तिलमिल का पानी यहां की मुख्य पहचान है।पांगी घाटी में एनएचपीसी की डुगर जलविद्युत परियोजना के बनने से पर्यटन, परिवहन संसाधन व मूलभूत ढांचों जैसे कि शिक्षा व चिकित्सा सुविधाओं में सुधार होगा जिससे इस क्षेत्र के विकास को गति मिलेगी।

 

नोट : पांगी घाटी का संक्षिप्त विवरण लेखक द्वारा व्यक्तिगत सर्वेक्षण के आधार पर प्रस्तुत किया गया है।लेखक वर्तमान में पांगी घाटी में सहायक सर्वे अधिकारी के रूप में पदस्थापित हैं

 

संदर्भ :

 

ओम प्रकाश शर्मा, सहायक सर्वे अधिकारी

डुगर जल विद्युत परियोजना