Picture source =https://aquariumfishonline.com.au/product/pink-kissing-gourami-helostoma-temminkii-7cm/

 

किसिंग गौरामी (Helostoma temminkii), जिसे किसिंग फिश या किसर के रूप में भी जाना जाता है, हेलोस्टोमैटिडी (Helostomatidae ) परिवार की मध्यम आकार की उष्णकटिबंधीय क्षेत्र व मीठे पानी में पाये जानी मछली है। इस मछली का उद्गम स्थल थाईलैंड से लेकर इंडोनेशिया तक है। वैसे तो यह सजावटी मछली के तौर पर सर्वत्र प्रसिद्ध है, लेकिन इन मछलियों के मूल देशों (दक्षिण पूर्व एशिया) में ये खाद्य मछली के रूप में भी प्रचलित हैं, क्यूंकी वहाँ इनकी खेती फार्म स्तर पर की जाती है। दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में इन मछलियों को स्टीमिंग, बेकिंग, ब्रोइलिंग और पैन फ्राइंग के उद्देश्य से ताजा उपयोग में लाया जाता है।

 

किसिंग गौरामी मछली का सबसे विशिष्ट भाग इसका मुंह होता है, क्यूंकी इसके मुंह की बनावट की वजह से ही यह बाकी मछलियों से भिन्न होती है। इसी विशेषता के कारण इनका अनोखा नामकरण प्रतीत होता है। इन मछलियों में किसी भी प्रकार की बाहरी यौन द्विरूपता नहीं होती, इसलिए इनके लिंगों में बाह्य तरीके से अंतर कर पाना सरल कार्य नहीं होता। यह मछली अन्य मछलियों, पौधों और आस-पास के वस्तुओं पर अपनी अजीबो-गरीब “किसिंग” व्यवहार के कारण जलशालाविद के बीच काफी लोकप्रिय है। नर एवं मादा किसिंग गौरामी आपस में अक्सर मुंह से मुंह लड़ाते हैं, और एक दूसरे को विपरीत दिशा में धकेलते है, जो प्रायः किसिंग प्रक्रिया जैसा प्रतीत होता है। इन मछलियों का निर्यात जापान, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, आस्ट्रेलिया और दुनिया के अन्य हिस्सों में वृहत पैमाने पर किया जाता है।

 

ये मछलियाँ अपने से समान आकार की दूसरे मछलियों के प्रति सहिष्णुता का परिचय देती हैं, लेकिन बाकी अन्य मछलियों का पीछा कर, तंग कर उन्हें पीड़ा पहुंचाती है, जिससे टैंक (एक्वेरियम) में मौजूद अन्य मछलियाँ असहज महसूस करती हैं। नर मछलियाँ प्रायः एक दूसरे को किसिंग गतिविधि की चुनौती देते रहते हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया इनके लिए कभी भी घातक नहीं होता, लेकिन लगातार ऐसा करने से दूसरी मछलियाँ तनाव में आकार अपनी जान गवा सकती हैं। फलस्वरूप एक्वेरियम में इन मछलियों के साथ अगर दूसरे प्रजाति के मछलियों को रखना हो, तो इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वे सभी इनके आकार के बराबर हो।किसिंग गौरामी अपने भोजन के उद्देश्य से अक्सर अन्य मछलियों की त्वचा से बलगम चूसते हैं, जिससे शिकार मछलियों की त्वचा पर संक्रमण होने से जान जाने का खतरा बना रहता है।

 

ये मछलियाँ एक्वेरियम टैंक में मौजूद शैवाल को अपना आहार बना लेती हैं, इसलिए एक्वेरियम टैंक में शैवाल के विकास को नियंत्रित करने के लिए ये मछलियाँ बहुत उपयोगी होती हैं।  मछलियों द्वारा टैंक में मौजूद आधार सतह की खुदाई को रोकने के लिए और शैवाल के विकास हेतु पर्याप्त सतह क्षेत्र उपलब्ध कराने के लिए, सब्सट्रेट में बड़े-व्यास वाली बजरी और पत्थरों का होना आवश्यक होता है। एक्वेरियम के पिछले शीशे को नियमित रखरखाव के दौरान साफ नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि वहां उगने वाले शैवाल, इन मछलियों के लिए भोजन आपूर्ति का कार्य करते हैं।अधिकांश जीवित पौधे, मछलियों के चरने से समाप्त हो जाते हैं, इसलिए अक्वेरियम को अलंकृत रूप में बरकरार रखने के उद्देश्य से अक्वेरियम में ज्यादातर अखाद्य पौधों जैसे: जावा फ़र्न, जावा मॉस या प्लास्टिक के पौधों को अधिष्ठापित करना उचित रहता है।

 

किसिंग गौरामी मछलियाँ सर्वाहारी होती हैं और इन्हें अपने आहार में पौधे और पशु पदार्थ, दोनों की आवश्यकता होती है। ये किचन में पके हुए सब्जियों जैसे लेट्यूस  (Lactuca sativa) और सूक्ष्म जीवजन्तु भोजन के रूप में स्वीकार करती हैं। एक्वेरियम में इनके लिए पानी की कठोरता (Hardness) 5 से 30 dGH और pH 6.8 और 8.5 के मध्य होना चाहिए तथा पानी का तापमान 22 और 28 डिग्री सेल्सियस (72 और 82 डिग्री फारेनहाइट) के मध्य होना चाहिए। हालांकि प्रजनन करते समय, शीतल जल (सॉफ्ट वॉटर) को प्राथमिकता दी जाती है। चूंकि ये मछलियाँ घोंसले का निर्माण नहीं करती है, इसलिए पानी की सतह पर रखे लेट्यूस के पत्ते स्पौनिंग हेतु माध्यम के रूप में कार्य करते हैं। लेट्यूस (Lactuca sativa) पर बैक्टीरिया और इन्फ्यूसोरिया जैसे सूक्ष्म जीवजन्तु के पनपने से इनकी भोजन आपूर्ति पूरी हो जाती है। एक्वैरियम में किसिंग गौरामी की अधिकतम लंबाई 30 से 40 सेमी (12 और 15.5 इंच) के मध्य होती है। सामान्य तौर पर टैंक और स्ट्रीम में इन मछलियों का औसत जीवन काल 5 से 7 वर्ष तक दर्ज किया गया है।

 

-मनीष कुमार, उप प्रबंधक (फिशरीज)

 निगम मुख्यालय

 

संदर्भ :

  • https://www.fishbase.de/summary/500
  • https://animaldiversity.org/accounts/Helostoma_temminkii/
  • https://www.cabi.org/isc/datasheet/80320