Environment
Global Climate Risk Index 2021
Image source : https://www.studymarathon.com/daily-news-en/global-climate-risk-index-2021/ The Germanwatch Global Climate Risk Index is an analysis based on one of the most reliable data sets available on the impacts of extreme weather events and associated socio-economic data, the MunichRe NatCatSERVICE. The Global Climate Risk Index indicates a level of exposure and vulnerability to extreme weather events, which countries should understand as warnings in order to be prepared for more frequent and/or more severe events in the future. The index focuses on extreme weather events such as storms, floods and heat waves but does not take into account important slow-onset processes such as rising sea levels, glacier melting or ocean warming and acidification. It is based on past data and is not be used as a basis for a linear projection of future climate impacts, etc. The index analyses and ranks to what extent countries and regions have been affected by impacts of climate-related extreme weather events, their level of exposure and vulnerability. The Climate Risk Index (CRI) report 2021 is the 16th edition of the annual report and has taken into account the data available from 2000 to 2019. Data from 180 countries were analyzed. The key findings of the report ...
“खज़ानों के हीरे : बावड़ी जल संचय की पारंपरिक प्रणाली”
चित्र आभार – रितुमाला गुप्ता , वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण) प्राचीन काल से ही भारत में जल के महत्व को समझते हुए जल संरक्षण एंव प्रबंधन के कार्य किए गए हैं। मुख्य रूप से “वर्षा जल संचय” - जल संरक्षण की एक प्राचीन परंपरा है जो वर्तमान परिदृश्य में अधिक प्रासंगिक हो गयी है। जल संरक्षण और प्रबंधन तकनीकों में अंतर्निहित मूल अवधारणा यह है कि वर्षा का पानी जब भी और जहां भी गिरे उस जल का संरक्षण किया जाना चाहिए। पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि जल संरक्षण और प्रबंधन की प्रथा, प्राचीन भारत के विज्ञान में गहराई से निहित है। प्राचीन भारत में बाढ़ और सूखा दोनों नियमित घटनाएँ थीं एवं यह एक कारण हो सकता है कि देश के हर क्षेत्र की भौगोलिक विषमताओं और सांस्कृतिक विशिष्टताओं के आधार पर पारंपरिक जल संरक्षण और प्रबंधन तकनीक उपायों का निर्माण किया गया होगा । हमारे देश के जल संरक्षण और प्रबंधन के विरासत को दर्शाने के लिए जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2020 में “"भारत की तरल संपत्ति के लिए बावड़ी - खानदानी ख़ज़ाने ( http://jalshakti-dowr.gov.in/sites/default/files/eBook/eBook-Stepwell/mobile/index.html" पुस्तिका प्रकाशित कि गयी है और बावड़ी को खानदानी ख़ज़ानों का दर्जा दिया गया है। सदियों के अनुभव ...
निम्मो बाजगो पावर स्टेशन में मत्स्य प्रबंधन योजना का सफल कार्यान्वयन
चित्र आभार : लेखक परिचय: जलविद्युत परियोजनाओं ने क्षेत्र के सतत विकास में हमेशा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जलविद्युत विकास, सामाजिक व आर्थिक बेहतरी और पर्यावरण संरक्षण के साथ आता है। पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं पर जलविद्युत के निर्माण के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है जिसमें जलीय पारिस्थितिकी भी शामिल है। यह उल्लेख करना आवश्यक है की जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के घटक जैसे मत्स्य और उसका वैज्ञानिक प्रबंधन जलविद्युत परियोजनाओं के पर्यावरण प्रबंधन का अभिन्न अंग है। एनएचपीसी ने पर्यावरण के प्रति हमेशा एक जागरूक संगठन के रूप में पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं को लगातार प्रतिबद्ध तरीके से कार्यान्वित किया है , जिसे विभिन्न मंचों पर समय-समय पर सराहा गया है। यह लेख निम्मो बाजगो पावर स्टेशन में कार्यान्वित मत्स्य प्रबंधन योजना एवं इससे प्राप्त सामाजिक लाभ पर प्रकाश डालता है। क्षेत्र का विवरण: लद्दाख का क्षेत्र एक विरोधाभास है - लद्दाख से होकर बहने वाली शक्तिशाली सिंधु नदी के बावजूद, यहां ठंडे रेगिस्तान जैसी स्थिति बनी रहती है। ज़ांस्कर और लद्दाख पर्वत शृंखला बारिश के बादलों को लद्दाख प्रवेश करने से रोकते हैं फलस्वरूप सालाना वर्षा औसतन मात्र 9 से 10 से.मी. है। सिंधु नदी मानसरोवर झील (ऊँचाई 5180 मीटर) के पास पश्चिमी तिब्बत में कैलास ...