Environment
पर्यावरण संरक्षण एक संवैधानिक जिम्मेदारी
Image source:https:https://transform.iema.net/article/failure-enforce-environmental-law-widespread-un-study-finds ज्ञात है कि सतत विकास के तीन प्रमुख स्तंभ होते हैं: आर्थिक विकास, सामाजिक विकास और पर्यावरण संरक्षण। इन तीनों स्तंभों में से, पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि पृथ्वी पर पर बढ़ते मानवजनित (anthropogenic) गतिविधियों के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन के साथ मानव स्वास्थ्य तथा अन्य जैव विविधता पर प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । हाल ही में कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान किए गए शोध में पाया गया कि न्यूनतम मानवजनित गतिविधि होने से पर्यावरण की गुणवत्ता में स्वतः सुधार होता है । इसे संज्ञान में लेते हुए हमें ‘सतत विकास’ के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक व्यवस्थित पर्यावरण संरक्षण प्रणाली को अपनाने की ज़िम्मेदारी को समझना होगा । इस संदर्भ में अपने देश का बहुचर्चित संविधान में समाविष्ट पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न प्रावधानों को इस ब्लॉग के माध्यम से उजागर करने तथा नागरिक को सजग करने का प्रयास किया गया है । किसी भी देश का संविधान सर्वोच्च कानून होता है जिसका अनुपालन करना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी होती है। भारतीय संविधान के भाग IV ‘राज्य नीति निदेशक तत्व’ और भाग IV-ए में ‘मौलिक कर्तव्यों’ का जिक्र किया गया है जिसके तहत, पर्यावरण का ...
जलवायु और हमारा पर्यावरण
Image Source : https://www.khayalrakhe.com/2018/01/jalvayu-parivartan-climate-change-hindi.html हमारे आस-पास जो कुछ भी है, जैविक अथवा अजैविक सब पर्यावरण की परिभाषा के अंतर्गत समाविष्ट हो जाता है। बहुधा पेड़-पौधे और जीव-जंतु तक हमारा पर्यावरण विमर्श केंद्रित रह जाता है जबकि मिट्टी की घटती हुई उर्वरता से ले कर जहरीले होते आसमान तक चर्चा आवश्यक है। विषय को इसी क्रम में देखते हैं तथा जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों पर एक विहंगम दृष्टि डालने का प्रयास करते हैं। आरम्भ मृदा से....। मृदा पृथ्वी का वह उपरी हिस्सा है जो शैलों के जलवायु, जीवजंतु, स्थलाकृति तथा समय जैसे कारकों द्वारा टूट-फूट अथवा अपक्षय से निर्मित है। मृदा में आवश्यक रूप से अनेक प्रकार के जीवांश पाये जाते हैं एवं यही पेड़-पौधे की समुचित वृद्धि में सहायक भूमिका अदा करते हैं। मृदा का निर्माण आग्नेय, अवसादी तथा कायांतरित शैलों (rocks) से होता है। इन शैलों की रासायनिक संरचना भिन्न होने से इनसे बनी भूमियों व मृदा की प्रवृत्तियाँ, बनावट व संगठन भी भिन्न-भिन्न होता है। मृदा निर्माण की प्रक्रिया के लिये शैलों का अपक्षय (weathering) विभिन्न भौतिक तथा रासायनिक कारणों से होता है। भौतिक अपक्षय के मुख्य सहायक है जल, वायु, पेड़-पौधों एवं जीव-जंतु। रासायनिक अपक्षय के कारक हैं - विलयन, जलीकरण, जल-अपघटन, कार्बोनीकरण, ऑक्सीकरण ...
Stubble Burning
Image source : Google/Internet What is stubble? Stubble is the crop residue that remains in the fields after the crop is harvested. India produces more than 500 million tons of crop residue every year. While a significant quantity is used as fodder, the residue from wheat-rice crop system in northern India is disposed of by burning. What is stubble burning? The farmers burn the crop residue as a speedy and economical way of clearing the fields for sowing the next crop, though it has its negative effects on the soil health as well as environment as a whole as it releases harmful gases such as carbon dioxide, carbon monoxide, nitrogen oxides, particulate matter etc. into the air. However, it is believed traditionally that the fire helps to eradicate weeds and pests from the fields that can attack the upcoming crop. Reasons for Stubble Burning : In India, stubble burning has become more prevalent after the mechanization of harvesting process through combine harvesters. Traditionally, the harvesting was done by hand and whole plant was cut from near the ground. Subsequently, after thrashing out the grains, the straw was piled up and stored for use as animal bedding ...