Environment

पर्यावरण वार्ता (अंक 19 )

दीपपर्व की मैं एनएचपीसी परिवार, सभी हितधारकों तथा इस ब्लॉग के सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामना प्रदान करता हूँ।   भारतीय संस्कृति का सबसे प्रमुख आयाम है जोड़ना। यही दीपावली पर्व भी परिलक्षित करता है। ‘दीप’ अर्थात प्रकाशमान दीपक और ‘आवली’ का अर्थ होता है ‘पंक्ति’। प्रकाश और पंक्ति दोनों ही ऐसे प्रतीक हैं जो राष्ट्रनिर्माण की प्रक्रिया मे लोक-भागीदारी को सुनिश्चित करते हैं। अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व प्रतीक है कि अंधेरा कितना ही गहरा हो छोटे छोटे दीपकों की पाँति इससे लड़ने मे सक्षम है हमें केवल एकजुट होना है, दीप से दीप जलाना है। यही कारण है कि दीपावली का पर्व हमें कर्मठता का संदेश देने मे भी समर्थ है जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री और कवि श्री अटल बिहारी बाजपेयी की कविता की पंक्तियाँ भी हैं – हम पड़ाव को समझे मंज़िल, लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल, वतर्मान के मोहजाल में, आने वाला कल न भुलाएँ; आओ फिर से दिया जलाएँ।    जल से विद्युत का निर्माण करते हुए एनएचपीसी इस देश को प्रकाशमान और गतिशील करने में अपनी पूरी क्षमता और निष्ठा से लगी हुई है। हमें इस बात का गर्व है कि आज जब देश का कोना- कोना और गाँव-गाँव सम्पूर्ण विद्युतीकरण के ...

 October 25, 2022


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E-WASTE: How dangerous is it?

Electronic waste or e-waste is essentially old, end-of-life electrical and electronic equipment (EEE) that users have discarded. There exists three types of e-waste: White that include refrigerators, washing machines and air-conditioners; Brown that includes televisions, cameras and recorders and Grey that includes computers, laptops, cell phones and printers. Toxic substances like lead, mercury, lithium, cadmium, plastics, nickel, barium, beryllium, chromium etc. form an integral part of e-waste. All of the aforementioned metals have dangerous effects on brain, nervous, blood, reproductive, respiratory and urinary systems. It is a fact that a tonne of electronic waste can give us hundred times more gold than a tonne of gold ore. It is worth mentioning that today; India is facing a herculean task of disposing its discarded mobiles, fridges, TV sets and computers filled with toxic substances. It is estimated that India has over one billion devices in active use. The average life cycle of phones is about three to four years. In addition, India is today the world's third-largest producer of e-waste-at 3.2 million tonnes, after China (10 million tonnes) and the USA (6.9 million tonnes). It is estimated that the graph of production of e-waste will be an exponential one. Conclusively, it ...

 October 25, 2022


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कुकरौन्धा (ब्लूमिया लैसेरा)- एक औषधीय पौधा विशेषत: बवासीर निदानक

आजकल की व्यस्त दिनचर्या में मनुष्य अपने खान-पान पर ध्यान नहीं दे रहा है । परिणामस्वरूप वह अनेक व्याधियों से ग्रसित होता जा रहा है। हालाँकि आज के वैज्ञानिक युग में रोगों के निदान के लिए आधुनिक रासायनिक दवाएं एवं शल्य चिकित्साएँ उपलब्ध हैं, किन्तु फिर भी पादप औषधियाँ अनेक रोगों के निदान के लिए कारगर सिद्ध होती हैं क्योंकि वह या तो परंपरा पर आधारित हैं या युगों से जनजातियों एवं लोकमान्यताओं द्वारा प्रयोग में लाई जा रही हैं । ऐसी ही एक औषधीय पादप जाति कुकरौन्धा (ब्लूमिया लैसेरा) है जो अनेक रोगों के निदान के लिए प्रचलित एवं कारगर है । विशेषतः उत्तर एवं मध्य भारत में इसका उपयोग बवासीर के निदान के लिए अत्यधिक प्रचलित है ।   विशेषता- कुकरौन्धा एस्टेरेसी कुल का सदस्य है । यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार तथा ओडिशा में बहुतायत से मिलता है । यह एकवर्षीय, उच्छीर्ष पौधा है जिसकी ऊँचाई 30 से 80 सेमी होती है । तने पर घने ग्रंथिल रोम होते हैं । पत्तियां सरल, एकांतरक्रम में व्यवस्थित तथा दीर्घवृतीय होती हैं । इनके किनारे अच्छिन्न अथवा पालित, शीर्ष निशिताग्र तथा पालियाँ अनियमित रूप से ऋकची-दन्तुर होती हैं ...

 October 25, 2022


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