Environment
Bio-resource Management and Energy Conservation – a way forward Atmanirbhar Bharat
Image Source : https://www.toppr.com/guides/essays/essay-on-conservation-of-natural-resources/ In spite of the rapid pace of developments and technological advancements there are various challenges today. Climate Change or Global Warming, increasing population pressure, Food deficiency, Freshwater deficit, and others are debated around the world. Now COVID 19 pandemic is one of the greatest challenges of the 21st century and many more new challenges will come in the future which have their solutions in preserving our Bio-resources. In other words, it is becoming relevant now more than ever to save our Bio-resources. Biological Resource means any resource of biological origin. India has diversity of biological resources in various areas which range from pristine ecosystems, agro-climatic ecosystems and ecosystems developed due to diverse socio-cultural conditions. However, the Bio-resources get depleted due to various causes such as anthropogenic activities, industrial development, agricultural practices, aquaculture, etc. Therefore, handling bio-resources in a proper manner is important for the optimum use without over exploitation of our bio-resources wealth. Accordingly, a Centre of Excellence on “Bio-Resources Management and Energy Conservation Material Management” is being set up at Fakir Mohan University campus at Balasore, Odisha and the foundation stone for the centre was laid at the by its Vice-Chancellor Prof Dinabandhu ...
पर्यावरण वार्ता (अंक 14 )
ब्लॉग के पिछले विविध सम्पादकीयों में हमने अनेक पर्यावरण विषयों पर बात की है, इस अंक में जल संसाधन पर विचार करते हैं। एनएचपीसी की कार्यशैली के दृष्टिगत आज बात नदियों की कर लेते हैं। लगभग 329 मिलियन हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्रफल में फैले भारत देश को सम्पूर्णता से जानने के लिये इसकी नदियों और पर्वतों की समझ आवश्यक है। संस्कृति, धर्म एवं आध्यात्मिक जीवन के विकास से जुड़ी ये नदियाँ भारतीय जीवन का हृदय एवं आत्मा हैं। यह सौभाग्य है कि हमारे भू-भाग से बहने वाली कतिपय नदियों को विश्व की महानतम नदियों में गिना जाता है। भारतीय उप-महाद्वीप की प्रमुख नदियों के रूप में बारह को वर्गीकृत किया गया है, जिनका कुल आवाह क्षेत्रफल 252.8 मिलियन हेक्टेयर है। हमारी प्रमुख नदियों में गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना तंत्र का आवाह क्षेत्रफल 110 मिलियन हेक्टेयर है जो कि देश की सभी प्रमुख नदियों के आवाह क्षेत्रफल का 43 प्रतिशत से अधिक है। सिन्धु (32.1 मिलियन हेक्टेयर), गोदावरी (31.3 मिलियन हेक्टेयर), कृष्णा (25.9 मिलियन हेक्टेयर) एवं महानदी (14.2 मिलियन हेक्टेयर) देश की अन्य प्रमुख नदियाँ हैं जिनका आवाह क्षेत्रफल 10 मिलियन हेक्टेयर से अधिक है। इसी प्रकार देश की मध्यम श्रेणी की नदियों की भी महति भूमिका है जिनका कुल आवाह क्षेत्रफल 25 मिलियन ...
पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन विभाग की द्विभाषिक पुस्तिका “एनएचपीसी : हरित प्रयासों से सतत जलविद्युत विकास / NHPC – Green Endeavours for Sustainable Hydropower” का विमोचन
पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन विभाग द्वारा हिन्दी/द्विभाषी में तैयार की गई ‘एनएचपीसी- हरित प्रयासों से सतत जलविद्युत विकास” पुस्तिका का श्री ए.के. सिंह , सीएमडी, एनएचपीसी की उपस्थिति में विमोचन करते मुख्य अतिथि डॉ. सुमीत जैरथ, सचिव (राजभाषा), राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार। पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन विभाग द्वारा द्विभाषिक पुस्तिका “एनएचपीसी : हरित प्रयासों से सतत जलविद्युत विकास / NHPC – Green Endeavours for Sustainable Hydropower” तैयार की गई है। सामाजिक रूप से एक जिम्मेदार संगठन के रूप में, एनएचपीसी अपनी जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण के समय, निर्माण के पश्चात और संचालन के विभिन्न चरणों के दौरान पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। जब देश के दूरदराज और पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक स्रोत के रूप में उपलब्ध नदी जल का उपयोग कर प्रदूषण मुक्त और स्वच्छ बिजली उत्पन्न करने के लिए जल विद्युत परियोजनाओं के विकास की बात आती है, तब एनएचपीसी का मंत्र “पर्यावरण पहले” सर्वप्रथम उजागर होता है। एनएचपीसी द्वारा अपनी परियोजनाओं और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रकृति को संरक्षित कर, भावी पीढ़ी के लिये हरा-भरा पर्यावरण सुनिश्चित करने के दृष्टिगत हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं । एनएचपीसी द्वारा परियोजनाओं के निर्माण अथवा संचालन के दौरान पर्यावरण पर पड़ने वाले ...