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निगम मुख्यालय में -एक पेड़ माँ के नाम- अभियान के अंतर्गत वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन

भारत के माननीय प्रधानमंत्री द्वारा प्रारंभ किए गए अभियान #एक पेड़ माँ के नाम के अंतर्गत तथा विद्युत मंत्रालय के निर्देशानुसार एनएचपीसी आवासीय परिसर में दिनांक 21 अगस्त 2024 को पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, श्री आर के चौधरी द्वारा अपनी स्वर्गीय माताजी की स्मृति में एक पौधा लगाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। तत्पश्चात एनएचपीसी के निदेशकगण, कार्यपालक निदेशकगण व अन्य अधिकारियों द्वारा भी अपनी माताजी की स्मृति में  कुल 150 पौधों का रोपण किया गया।   “एक पेड़ माँ के नाम” अभियान के तहत एनएचपीसी ने 4000 पौधों को लगाने का लक्ष्य रखा है व अबतक 2210 पौधे एनएचपीसी के विभिन्न स्थानों में रोपित किए जा चुके हैं।

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 |    August 28, 2024

एनएचपीसी में विश्व पर्यावरण दिवस-2024 का आयोजन

एनएचपीसी में निगम मुख्यालय के साथ - साथ समस्त परियोजनाओं, पावर स्टेशनों एवं क्षेत्रीय कार्यालयों में दिनांक 05 जून 2024  को "विश्व पर्यावरण दिवस" का आयोजन हर्षोल्लास के साथ किया गया। इस वर्ष पर्यावरण दिवस के अवसर पर "Land Restoration , Desertification and Drought Resilience" की थीम के साथ विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया । एनएचपीसी की सभी कार्यस्थलों में पर्यावरण संरक्षण हेतु जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन कर अधिकारियों व कर्मचारियों को पर्यावरण संरक्षण की शपथ दिलाई गई। विभिन्न स्थानों में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का सन्देश दिया गया। समस्त परियोजनाओं, पावर स्टेशनों एवं क्षेत्रीय कार्यालयों में  बड़े पैमाने पर पौधारोपण कर स्वच्छ व हरित पर्यावरण बनाने की पहल की गई।स्थानीय विद्यालयों में लेख, स्लोगन एवं चित्रकला प्रतियोगिताओं का आयोजन कर भावी पीढ़ी को जागरूक करते हुए पर्यावरण संरक्षण का सन्देश दिया गया।

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 |    June 28, 2024

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में जंगल सफारी

[ Picture Source : विशाल शर्मा, समूह वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण)]     काजीरंगा नेशनल पार्क, डिब्रूगढ़ से 235 km एवं गुवाहाटी से लगभग 220 km की दूरी पर है । जोरहाट रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी 90 km है। काजीरंगा नेशनल पार्क की यात्रा मैंने परिवार के साथ डिब्रुगढ़ से शुरू की। डिब्रूगढ़, रेल एवं वायु मार्ग द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़ा हुआ है। डिब्रूगढ़ से काजीरंगा नेशनल पार्क टॅक्सी एवं बस से जाया जा सकता है। काजीरंगा नेशनल पार्क असम के गोलाघाट, नगाँव और शोणितपुर जिलों में स्थित है। डिब्रूगढ़ से सुबह 10 बजे निकलने पर हम 4 बजे तक काजीरंगा नेशनल पार्क के कोहोरा रेंज पहुँच चुके थे जहाँ एक रेस्ट हाउस में हमारे ठहरने की व्यवस्था थी। रेस्ट हाउस के माध्यम से हमने सुबह 6 से 7 बजे के लिए कोहोरा रेंज से एलिफ़ेंट सफारी के लिए बुकिंग की। उसी दिन के लिए हमने बागोरी रेंज से जीप सफारी के लिए 10 बजे से 12 बजे के लिए बुकिंग की ।   काजीरंगा का एक संरक्षित क्षेत्र के रूप में इतिहास वर्ष 1904 से प्रारंभ होता  है, जब मेरी कर्ज़न, जो तत्कालीन भारत के वायसराय लॉर्ड कर्ज़न की पत्नी थीं, ने क्षेत्र का दौरा किया। जिस ...

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 |    May 15, 2024

महुआ – भारत की जनजातीय आबादी के लिए वरदान

Picture Source : https://www.aranyapurefood.com/blogs/news/mahua-tree-kalpvriksra-of-tribal-area https://www.sourcedjourneys.com/post/the-tree-of-life http://anyflip.com/zptxm/ambt   मधुका लॉन्गीफोलिया अथवा इंडियन बटर ट्री जिसे सामान्य भाषा में महुआ कहते हैं सैपोटेसी परिवार का एक महत्वपूर्ण वृक्ष है । यह वृक्ष मध्य भारतीय राज्यों की जनजातीय आबादी के लिए सामाजिक तथा आर्थिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है । भारत में यह वृक्ष मुख्य रूप से पश्चिमी, मध्य तथा दक्षिणी भारत के अर्ध-पर्णपाती शुष्क वनों में पाया जाता है तथा इसका विस्तार मुख्यतः आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में है । यह एक बहुउद्देशीय वृक्ष है जिससे भोजन, ईंधन, लकड़ी, हरित खाद, तेल, खली, शराब प्राप्त होती है तथा यह अनेक उत्पादों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराता है।   वृक्ष विवरण महुआ एक मध्यम से बड़े आकार का पर्णपाती एवं तीव्रता से बढ़ने वाला वृक्ष है जिसकी ऊँचाई 20-25 मीटर तक हो सकती है। इसकी लकड़ी कठोर से अति कठोर श्रेणी की होती है जिसमें सैपवुड की मात्रा अधिक होती है तथा हार्डवुड भूरे-लाल रंग की होती है । पत्तियाँ जो शाखाओं के सिरों के पास एकत्रित होती हैं, अण्डाकार या लंबाकार-अण्डाकार, चिकनी तथा रोमरहित होती हैं। युवा पत्तियाँ गुलाबी-लाल और निचली सतह पर रोमिल होती हैं। फूल सफेद-क्रीम रंग के तथा ट्यूबुलर ...

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 |    May 15, 2024

रोडोडेंड्रोन नीवियम (Rhododendron niveum)- सिक्किम का राज्य वृक्ष

[ Picture Source : https://www.treesandshrubsonline.org/articles/rhododendron/rhododendron-niveum/ ]   स्थानीय नाम: ह्युनपाटे गुरांस परिवार: एरिकेसी कॉमन नाम: रोडोडेंड्रोन (इंग्लिश); बुरांस (कुमाऊनी); गुराँस (नेपाली) पाया जाता है: 3000-3700 मीटर की ऊंचाई पर IUCN स्थिति: गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered (CR))   रोडोडेंड्रोन नीवियम का स्थानीय नाम से ह्युनपाटे गुरांश है। मूल रूप से यह  केवल उत्तरी सिक्किम में लाचुंग के ऊपर शिंगबा रोडोडेंड्रोन अभयारण्य के आसपास पाया जाता था। यह सिक्किम की संस्कृति की खूबसूरती,  सुघड़ता और दृढ़ता का प्रतिनिधित्व करता है इस लिए इसे सिक्किम के ‘राज्य वृक्ष’ होने का का दर्जा  प्राप्त है।   रोडोडेंड्रोन नीवियम के विषय में: रोडोडेंड्रोन नीवियम या Bell Snow Rhododendron एक छोटा पेड़ है जो 2-6 मीटर तक ऊँचा होता है। इसमें अनोखे धुएँ के रंग के नीले या बैंगनी- मॉव रंग के फूल होते हैं और पत्तियों के निचले हिस्सों में बर्फ के समान सफेद रंग होता है। नीवियम रोडोडेंड्रोन की प्रजाति का नाम लैटिन शब्द “निवेस” से लिया गया है जिसका अर्थ बर्फीला या बर्फ जैसा सफेद।  इस पौधे के फूल गोलाकार घने 15-20 के गुच्छे में लगते हैं, जिनके बीच में पीला मखमली रंग होता है। फूल अप्रैल-मई में आते हैं और फल जुलाई के माह मे । युवा अंकुर भूरे हरे, ...

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 |    May 15, 2024

ईएसजी रिपोर्टिंग में डाटा प्रबंधन की भूमिका

[ Picture Source : https://community.nasscom.in/communities/ai/how-ai-can-help-esg-data-standardization-bfsi ]   पर्यावरणीय (Environmental), सामाजिक (Social) और गवर्नेंस (Governance) अर्थात  ‘ईएसजी रिपोर्टिंग’ एक मापदंड है जिसका उपयोग किसी कंपनी के व्यावसायिक कार्यप्रणाली की स्थिरता (Sustainability) को प्रभावी करने वाले मूल गैर-वित्तीय तत्वों के प्रदर्शन (परफॉर्मेंस) का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। यह व्यावसायिक जोखिमों और अवसरों को मापने का तरीका भी प्रदान करता है। पूंजी बाजारों में कुछ निवेशक कंपनियों का मूल्यांकन करने और निवेश योजनाओं को निर्धारित करने के लिए ईएसजी रिपोर्ट का उपयोग करती हैं। ईएसजी रिपोर्ट में प्रदान किए गए विवरणों से निवेशकों को कंपनियों की पहचान करके निर्णय लेने में सक्षमता प्राप्त होती है। इस रिपोर्टिंग या प्रदत्त विवरणों से कंपनी को अपनी कार्य-प्रणाली में मौजूद अच्छाई व कमी का भी आकलन करने में सहजता होती है एवं मूल्यांकन के आधार पर यदि आवश्यकता हो तो समय रहते सुधार किया जा सकता है।   कंपनी की ‘ईएसजी (ESG) रिपोर्टिंग’ के लिए ‘ग्लोबल रेपोर्टिंग इनिसिएटिव (जीआरआई)’ स्टैंडर्ड एवं सेबी (SEBI) के निर्धारित फ़ारमैट में ‘ईएसजी (ESG) के प्रमुख कारक व संकेतक के बारे में वित्त-वर्ष के अनुसार वृहद डाटा की आवश्यकता होती है।  इस डाटा के विश्लेषण व विवेचना के अनुसार कंपनी की Sustainability Report एवं बीआरएसआर तैयार किया जाता ...

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 |    May 15, 2024

तीस्ता VI जलविद्युत परियोजना द्वारा पर्यावरण स्वच्छता के अंतर्गत फोगिंग कार्यक्रम का आयोजन

तीस्ता-VI जलविद्युत परियोजना द्वारा दिनांक 30.04.2024 को पीएम श्री राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय एवं राजकीय प्राथमिक विद्यालय, सिंगताम, जिला-गंगटोक, सिक्किम में मलेरिया एवं डेंगू जैसी बीमारियों एवं जहरीले कीटों से बचाव हेतु फोगिंग किया गया।   कार्यक्रम के अंतर्गत विद्यालय के सभी कक्षाओं एवं परिसर में फोगिंग किया गया। इस आयोजन के लिए विद्यालय के प्रधानाचार्य एवं शिक्षकों ने एनएचपीसी का आभार व्यक्त किया एवं इसकी प्रशंसा की। उन्होंने भविष्य में इस प्रकार के कार्यक्रम के आयोजन की आशा व्यक्त की।

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 |    May 15, 2024

अंक की तस्वीर ( अंक : 23 )

[ चित्र आभार : पूजा सुन्डी, प्रबंधक (पर्यावरण), निगम मुख्यालय ]     भारतीय हाथी : जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, रामनगर, उत्तराखंड   स्थिति: संकटग्रस्त जनसंख्या : 20,000 – 25,000 वैज्ञानिक नाम : एलीफस मैक्सिमस इंडिकस (Elephas maximus indicus) ऊंचाई : 6-11 फीट (कंधे तक) वज़न: 5 टन लंबाई: 21 फीट तक निवास: उपोष्णकटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाले वन, उष्णकटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाले नम वन, शुष्क वन, घास के मैदान (Subtropical broadleaf forest, tropical broadleaf moist forest, dry forest, grassland)   हाथी भारत के साथ-साथ पूरे एशिया में एक सांस्कृतिक प्रतीक है। ये समूह में रहना पसंद करते हैं तथा अपनी सामाजिक संवेदना एवं बुद्धिमता (intelligence) के कारण प्राणिजगत में इनका खास स्थान है। भारतीय हाथी का मुख्य भोजन घास होता है, लेकिन बड़ी मात्रा में ये पेड़ों की छाल, जड़ें, पत्तियां और छोटे तने भी खाते हैं। कृषि फसलें जैसे केले, धान, गन्ना आदि भी इनके पसंदीदा भोजन हैं। प्रतिदिन भोजन करते हुए एवं अपने आवास के एक बड़े क्षेत्र में घूमते हुए ये गोबर का उत्पादन करते हैं, इससे अंकुरित बीजों को फैलाने में मदद मिलती है। इस तरह ये अपने जंगल तथा घास के मैदानों के आवास की अखंडता को बनाए रखने तथा  पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) में संतुलन ...

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 |    May 15, 2024