पर्यावरण को ले कर हमारी सजगता प्राचीन समय से ही है। इसकी प्राथमिक समझ तो हमारी प्राचीन पुस्तकें ही करा देती हैं जहाँ वे शरीर को जिन पाँच तत्वों की समिष्टि बताती हैं अर्थात धरती, जल, अग्नि, आकाश तथा वायु; वस्तुत: ये सभी तत्व सम्मिलित रूप से पर्यावरण शब्द की सही परिभाषा निर्मित करते हैं और यह भी बताते हैं कि शरीर की कोशिका जैसे सूक्ष्म तत्व से ले कर अंतरिक्ष की विराटता तक सब कुछ पर्यावरण शब्द के भीतर समिष्ठ हो जाता है। अथर्ववेद मे कहा गया है कि भूमि हमारी माता है। हम पृथ्वी के पुत्र हैं। मेघ हमारे पिता हैं, वे हमें पवित्र करते हुए पुष्ट करें – मात्य भूमि पुत्रो अहम पृथिव्या। पर्जन्य पिता स उ ना पिपर्तुम। ऋग्वेद में ही उल्लेख है कि पृथ्वी, अंतरिक्ष एवं द्युलोक अखंडित तथा अविनाशी हैं। जगत का उत्पादक परमात्मा एवं उसके द्वारा उत्पन्न यह जीव जगत भी कभी नष्ट न होने वाला है। विश्व की समस्त देवशक्तियाँ अविनाशी हैं। पाँच तत्वों से निर्मित यह सृष्टि अविनाशी है। जो कुछ उत्पन्न हो चुका है अथवा जो कुछ उत्पन्न होने वाला है वह भी अपने कारण रूप से कभी नष्ट नहीं होता है – अदितिधौर्रदितिर न्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्र:। विश्वे देवाअ अदिति: प न्चजनाअदितिर्जात मदितिर्जनित्वम॥
हमारे आसपास की प्रत्येक वस्तु जड़, चेतन, प्राणी, हमारा रहन-सहन, खान-पान, संस्कृति विचार आदि सभी कुछ पर्यावरण के ही अंग है। ‘जल बिन मीन’ के अस्तित्व की कल्पना कीजिये। जल मछली का पर्यावरण है वह जीवित ही नहीं रह सकती यदि उसे पानी से बाहर निकाल दिया जाये। मछली तब भी जीवित नहीं रह सकती यदि जिस पानी में उसका जीवन है वह विषैला हो जाये अथवा उसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगे। यही उदाहरण वृहद हो कर पर्यावरण की सम्पूर्ण परिभाषा बन जाता है। इस आधार पर यह स्पष्ट है कि जीवन के लिए एक परिपूर्ण व्यवस्था बनाने वाले जैविक तथा अजैविक तत्व मिल कर पर्यावरण का निर्माण करते हैं। “किसी भी जीव जन्तु में समस्त कार्बनिक व अकार्बनिक वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों को पर्यावरण कहेंगे” ।यह परिभाषा जर्मन वैज्ञानिक अरनेस्ट हैकन ने दी है।
इसी उदाहरण पर आगे बढ़ते हुए हम यह समझ सकते हैं कि प्रत्येक प्राणी भिन्न पर्यावरण में निवास करता है। मछली के लिये जो पर्यावरण सही है वह हाथी के लिये अनुपयुक्त, यही उनके भिन्न-भिन्न निवास स्थल होने का कारण भी है। अत: एक विशेष जीव समूह के योग्य पर्यावरण में उसका निवास स्थल अर्थात हेबिटाट (Habitat) बनता है। हेबिटाट शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द हैबिटेयर (Habitare) से हुई है। बुनियादी तौर पर देखा जाये तो हेबिटाट और पर्यावरण शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची प्रतीत होते हैं किंतु इनमें बुनियादी अंतर व्यापकता का है। जहाँ हैबिटाट शब्द किसी परिवेश के स्थानीय घटकों तक संकुचित है वहीं पर्यावरण व्यापकता में परिवेश के अनेकों घटकों को स्वयं में समाहित करता है। किसी छोटे क्षेत्र में एक जीव विशेष से जुडे परिवेश को उसका अपना सूक्ष्म वातावरण (Micro Climate) कहा जा सकता है।
पर्यावरण तथा हेबिटाट की बात करना इसलिये भी प्रासंगिक है कि इस माह 17 मई को “नेशनल एन्डेंजर्ड स्पिसीज डे” मनाया गया। इस माध्यम से विलुप्त हो रहे पादप तथा जीव प्रजातियों को बचाने की वैश्विक स्तर पर चिंता की गयी। इसी माह की 22 मई को “इंटरनेशनल डे फॉर बायलॉजिकल डाईवर्सिटी” मनाया जा रहा है। इस अवसर पर जैव-विविधता को बनाये रखने और उसका संवर्धन करने के दृष्टिगत पर्यावरण से जुडी संस्थाओं द्वारा अनेक आयोजन किये जायेंगे। इस वर्ष इस आयोजन का विषय है – “हमारी जैवविविधता, हमारा भोजन, हमारा स्वास्थ”। इसी क्रम में 23 मई को “वर्ल्ड टर्टल डे” है। कछुओं को बचाने के तथा उनके हैबिटाट को नष्ट न होने देने के अनेक प्रयास वैश्विक स्तर पर हो रहे है।
एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमारा कर्तव्य है कि हमारा भी इन प्रयासों में सतत योगदान सुनिश्चित हो। एनएचपीसी ने निरंतर जैवविविधता संरक्षण के दृष्टिगत कार्य किया है जिसके कुछ उदाहरण जैसे – तीस्ता लो डैम परियोजना – III, IV एवं सुबनसिरी लोअर परियोजना में ऑर्किडेरियम का निर्माण, सेवा-II परियोजना के अंतर्गत फ्लोरल बायोडाईवर्सिटी कंजरवेटरी का निर्माण, पार्बती-II परियोजना के अंतर्गत वन विभाग के सौजन्य से ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में गिद्ध की प्रजातियों के संरक्षण का कार्य, तीस्ता-V परियोजना में हर्बल एवं तितली उद्यान का निर्माण, लगभग 40 हेक्टेयर भूमि में वन विभाग के सौजन्य से अंडमान स्थित केलपॉन्ग परियोजना द्वारा बॉटनिकल गार्डन का निर्माण, इंदिरासागर परियोजना में पक्षीविहार का निर्माण आदि सम्मिलित है। 5 जून अर्थात विश्व पर्यावरण दिवस भी निकट है। इस वर्ष इस दिवस को वायु प्रदूषण से सम्बंधित चिंताओं पर विमर्श एवं रोकथाम सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मनाया जायेगा। इस सभी दिवसों तथा आयोजनओं का मूलभूत उद्देश्य है कि हमारा भी इन प्रयासों में सतत योगदान सुनिश्चित हो।
अरुण कुमार मिश्रा
कार्यपालक निदेशक (पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन)
Photograph Source: https://fineartamerica.com/featured/caribbean-sea-turtle-and-reef-fish-daniel-jean-baptiste.html
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