भारत सरकार ने 2-अक्टूबर अर्थात महात्मा गांधी की एक सौ पचासवीं जयंती के अवसर से एकल प्रयोग प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। इस आलोक में प्लास्टिक का प्रयोग, उसकी उपादेयता, पर्यावरण पर प्रभाव तथा विकल्पों पर गंभीर विमर्श की आवश्यकता है। विश्व मे प्लास्टिक का वार्षिक उत्पादन तीन हजार-लाख टन से अधिक है, अर्थात वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्लास्टिक का योगदान खरबों डॉलर का है। ऐसे में यह समझना कठिन नहीं है कि पर्यावरण का नुकसान अर्थशास्त्र के हिसाब-किताब में समृद्धि की तरह दर्ज किया जाता है। प्लाटिक कचरे से निजात पाने के अब तक जो भी प्रयास किए गए हैं वे कतिपय पंचायतों, नगरों, शहरों अथवा कुछ जागरूक देशों के निजी हैं, जबकि इस समस्या का निदान पूरे विश्व को एक साथ ही निकालना होगा। हमें सतत विकास की परिभाषा को सम्मुख रख कर यह विचार करना होगा कि आने वाली पीढ़ी के लिए हम प्लास्टिक से अटी धरती छोड़ जाना चाहते हैं अथवा हमारे पास समाधानों के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण भी है? विचार करें कि क्यों पैकेजिंग, खानपान, शल्य चिकित्सा, स्वच्छता से जुड़े कार्यों/वस्तुओं के लिये प्लास्टिक पदार्थों का उपयोग अब भी युक्तिसंगत माना जाता है? हम क्यों यह विचार नहीं करते कि अल्पकालिक सुविधा लेने के बाद हम चिरजीवी पदार्थों को अपने पर्यावरण का विनाश करने के लिए धरती पर छोड़ देते हैं? हम जानबूझ कर आँख मूँद लेते हैं कि निपटान के समुचित उपायों एवं इसके लिए संसाधनों के अभाव में प्लास्टिक कचरा जो हम जानते-बूझते उत्पन्न कर रहे हैं वह पर्यावरण को सैकड़ों-हजारों वर्षों तक प्रदूषित करता रहेगा।
उत्पादन बंद करने का सबसे सकारात्मक मार्ग है प्लास्टिक का उचित विकल्प प्रस्तुत करना। ऐसा नहीं कि वर्तमान में प्लास्टिक के जो विकल्प सामने आए हैं वे प्रदूषणकारी नहीं हैं। मक्के से बने थैलों की इन दिनों बड़ी चर्चा है परंतु बीबीसी में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार ये थैले नष्ट होने की प्रकिया में मीथेन गैस उत्पन्न करते हैं जो ग्लोबल वार्मिंग के लिहाज से सही नहीं है। इसी तरह अमरीका में कागज के बैग बहुत लोकप्रिय रहे हैं परंतु जानकारों का कहना है कि नष्ट होने की प्रक्रिया में ये कार्बन पैदा करते हैं। अर्थात ऐसे विकल्प तक पहुँचने का हमारा प्रयास अभी जारी रहना चाहिए जो पूर्णत: पर्यावरण मित्र सिद्ध हो सके। कुछ अच्छे विकल्प भी सामने आए हैं, उदाहरण के लिए ब्रिटेन की एक कंपनी एक खास तरह के प्लास्टिक बैग बनाती है जो अट्ठारह महीने के भीतर स्वत: नष्ट हो सकते हैं (स्त्रोत – बीबीसी), इसी तरह यूरोपीय आयोग ऐसे प्लास्टिक बैग शुरु करने पर विचार कर रहा है जो जैविक रूप से खुद नष्ट हो जाएं (स्त्रोत – इंडिया वाटर पोर्टल)। इसी कड़ी में प्लास्टिक बोतल का बहुता अच्छा विकल्प ले कर गुवाहाटी, आसाम के धृतिमान बोरा सामने आए हैं। उन्होनें बांस की लीकप्रूफ बोतलों का आविष्कार किया है जो पानी को न केवल देर तक ठंडा रखने में सक्षम है अपितु उसमें औषधिक गुणवत्ता का समावेश करने मे भी सक्षम है। प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध की दिशा इसी तरह के नये, मौलिक तथा सकारात्मक प्रयासों से ही संभव है। प्लास्टिक मुक्त भारत ही महात्मा गाँधी के जीवन व शिक्षाओं का सच्चा अनुसरण सिद्ध होगा। आईये महात्मा के “सादा जीवन और उच्च विचार” को आत्मसात कराते हुए स्वच्छता के प्रति जागरूक हों, जागरूकता प्रसारित करें।
(हरीश कुमार)
मुख्य महाप्रबंधक (पर्यावरण एवं विविधता प्रबंधन)
Image source = https://www.civilhindipedia.com/blogs/blog_post/gandhiji-s-thinking-on-environment
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