वैश्विक समिट काप–13 में एनएचपीसी की प्रतिभागिता और कुछ विमर्श
प्रवासी जीवजगत पर केंद्रित वैश्विक समिट काप – 13 में एनएचपीसी ने प्रतिभागिता की तथा पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन को लेकर किए जा रहे निगम के प्रयासों को देशी-विदेशी आगंतुकों के समक्ष प्रस्तुत किया। एनएचपीसी के स्टॉल पर पर्यावरण प्रबंधन से जुड़े कार्यों के सचित्र पोस्टर लगाए गए, जिनमे जैव-विविधता संरक्षण, विलुप्त होने वाले जीवों के संरक्षण से संबंधित कार्यों, जलागम क्षेत्र के लिए किए गए उपचारात्मक कदमों, निक्षेप प्रबंधन, मत्स्य प्रबंधन आदि को प्रदर्शित किया गया था। स्टॉल पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी चलाई गई जिसके माध्यम से निगम की पर्यावरण प्रिय छवि को उजागर किया गया। इस अवसर पर, प्रवासी जीव जगत पर केंद्रित कार्यो, मॉडलों तथा तस्वीरों को, देश के विभिन्न संस्थाओं, वन विभागों, एनजीओ आदि के द्वारा लगाई गई प्रर्दशनी में प्रस्तुत किया गया था। कुछ महत्वपूर्ण प्रस्तुतियों पर चर्चा इस विमर्ष के लिए आवश्यक है कि मनुष्यों में प्राणीजगत को आज किस स्थिति में पहुंचा दिया है, हम कैसे प्रकृति और पर्यावरण का सरंक्षण कर सकते हैं।
वह सारस जिसने दुनिया को पहली कविता दी
प्रर्दशनी में एक स्टाल पर सारस पक्षी के लोमहर्षक चित्र प्रस्तुत किए गए थे। सारस अर्थात् कौंच…..वही पक्षी जिसके कारण दुनिया की पहली कविता अस्तित्व में आयी थी। महर्षि वाल्मिकि ने शिकार कर मार डाले गए सारस के जोड़े से द्रवित होकर लिखा था – “मा निषाद प्रतिष्ठांत्वमगम: शाश्वती: समा:। यत् क्रौंचमिथुनादेकं वधी: काममोहितम्।” अर्थ यही कि हे निषाद, तुझे कभी शांति न मिले। तूने इस काम क्रीडा में रत क्रौंच के जोड़े की, बिना किसी अपराध, हत्या कर दी। प्रतीत होता है मानो महर्षि वाल्मिकि ने भविष्य देख लिया था। विकसित होने का दंभ भरते हुए हमने क्रौंच की क्यों, न जाने कितने पक्षी मार दिये…..हाँ हम स्वयं अब टाईम बम पर बैठे नये समय के डायनासोर हैं।
इसमें अच्छी सूचना यह है कि धरती पर सारस की सर्वाधिक उपस्थिति हमारे देश भारत में है इसलिए इनके संरक्षण संवर्धन का दायित्व बढ जाता है। दुनिया में सबसे ऊंचा उडने वाला पक्षी सारस है, इसे किसानों का मित्र भी माना जाता है। लगभग 12 किलो वजन वाले सारस पक्षी की लंबाई 1.6 मीटर तथा उनका जीवनकाल पैंतीस से अस्सी वर्ष तक होता है। सारस वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची में दर्ज हैं। दुनियाभर में सारस पक्षियों की अनुमानित संख्या आठ हजार है, जो कि दलदली क्षेत्रों में पाये जाने वाले घास के टयूबर्स, कृषि खाद्यान्न, छोटी मछलियां, कीड़े मकोडें, छोटे सांप, घोघें, सीपी आदि पर निर्भर रहते हैं (स्त्रोत: बीबीसी हिन्दी)। भारतीय साहित्य में सारस को प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता हैं। इसका मूल कारण इस पक्षी की जीवन शैली हैं। वस्तुत: यह पक्षी जीवनकाल में केवल एक बार जीवन साथी चुनता है। जोडा बनाने के बाद सारस युगल पूरे जीवन भर साथ रहते हैं। किसी कारण एक साथी की मृत्यु हो जाये तो दूसरा खाना पीना बंद कर देता है जिससे प्राय: उसकी भी मृत्यु हो जाती है।
कल्पना कीजिये कि यदि पंछी हमारी दुनिया का हिस्सा न रहे तब कितनी बेरंग धरती के वासी होंगे हम? गांधीनगर, गुजरात में प्रवासी जीवजगत पर केंद्रित वैश्विक समिट काप-13 में प्रतिभागिता करते हुए सारस के संरक्षण में लगे एक समूह से कुछ तस्वीरें प्राप्त हुई, जिसे इस उद्देश्य से हम साझा कर रहे है कि इनके सम्मोहन में हमें महर्षि वाल्मीकि का श्लोक स्मरण हो और हम नये समय के शापित निषाद न बनें।
गौरव कुमार, उप-महाप्रबंधक पर्यावरण
राजीव रंजन प्रसाद, वरिष्ठ प्रबंधक पर्यावरण
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संकलन: वैश्विक समिट काप – 13 में प्रदर्शित प्रवासी जीव जगत पर केंद्रित कार्यो, मॉडलों तथा तस्वीरों के आधार पर।
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