चित्र आभार : लेखक

 

परिचय:

जलविद्युत परियोजनाओं ने क्षेत्र के सतत विकास में हमेशा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जलविद्युत विकास, सामाजिक व आर्थिक बेहतरी और पर्यावरण संरक्षण के साथ आता है। पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं पर जलविद्युत के निर्माण के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है जिसमें जलीय पारिस्थितिकी भी शामिल है। यह उल्लेख करना आवश्यक है की जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के घटक जैसे मत्स्य और उसका वैज्ञानिक प्रबंधन  जलविद्युत परियोजनाओं  के पर्यावरण प्रबंधन का अभिन्न अंग है। एनएचपीसी ने पर्यावरण के प्रति हमेशा एक  जागरूक संगठन के रूप में पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं को लगातार प्रतिबद्ध तरीके से कार्यान्वित किया है , जिसे विभिन्न मंचों पर समय-समय पर सराहा गया है। यह लेख निम्मो बाजगो पावर स्टेशन में कार्यान्वित मत्स्य प्रबंधन योजना एवं इससे प्राप्त सामाजिक लाभ पर प्रकाश डालता है।

 

क्षेत्र का विवरण:

लद्दाख का क्षेत्र एक विरोधाभास है – लद्दाख से होकर बहने वाली शक्तिशाली सिंधु नदी के बावजूद, यहां ठंडे रेगिस्तान जैसी स्थिति बनी रहती है। ज़ांस्कर और लद्दाख पर्वत शृंखला बारिश के बादलों को लद्दाख प्रवेश करने से रोकते हैं फलस्वरूप सालाना वर्षा औसतन मात्र 9 से 10 से.मी. है। सिंधु नदी मानसरोवर झील (ऊँचाई 5180 मीटर) के पास पश्चिमी तिब्बत में कैलास पर्वत श्रृंखला से निकलती है और 404 किलोमीटर की लंबाई के बाद ग्राम दमचोक के पास जम्मू और कश्मीर में प्रवेश करती है। सिंधु नदी की सहायक नदियाँ ज्यादातर स्थायी हिमखंडों, ग्लेशियरों और हिम क्षेत्रों से निकलती हैं। सिंधु नदी लद्दाख से होकर बहती है और पाकिस्तान के मैदानों में प्रवेश करती है।

 

निम्मों बाजगो पावर स्टेशन:

लद्दाख में लेह जिले के अलची गाँव के पास सिंधु नदी पर एनएचपीसी द्वारा निर्मित 45 मेगावाट का निम्मों बाजगो पावर स्टेशन, दुनिया में सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित पनबिजली परियोजना  में से एक है। यह परियोजना MSL से 10,000 फीट पर स्थित है जहाँ तापमान -30 डिग्री सेल्सियस से +40 डिग्री सेल्सियस तक बदलता है। यह परियोजना एक रन-ऑफ-रिवर  योजना है जिसके अंतर्गत नदी पर 59.0m उच्च कंक्रीट गुरुत्वाकर्षण बांध का निर्माण किया गया है। बांध के निर्माण से लगभग 19.5 किमी लंबे जलाशय का निर्माण हुआ है, जिसका क्षेत्रफल 342 हेक्टेयर है। कार्यकारी परियोजना का पूर्ण जलाशय स्तर (FRL) 3093 है। अक्तूबर, 2013 में परियोजना को सफलतापूर्वक कमिशन कर दिया गया है। तब से आज तक परियोजना लेह-लद्दाख में बिजली आपूर्ति में लगातार महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।

 

बांध निर्माण से मछलियों पर प्रभाव के अध्ययन की आवश्यकता क्यूँ है ?

नदियों ने मानव उपनिवेश और उपयोग के लिए सेतु के रूप में कार्य किया है, और परिणामस्वरूप लोगों ने कई नदियों के पारिस्थितिक तंत्रों को प्रभावित किया है। बांधों के निर्माण के कारण नदियों के व्यापक फैलाव से आम तौर पर प्रवाह पैटर्न और डाउनस्ट्रीम तापमान व्यवस्थाओं में परिवर्तन होने की संभावना रहती है। परिणामस्वरूप, नदी सतह की भौतिक संरचना बदल सकती है, और जैविक समुदाय अपने खाद्य आपूर्ति और भौतिक रासायनिक वातावरण में परिवर्तन के कारण प्रभावित हो सकते हैं। इसमें सबसे अधिक प्रभावित मछलियों की वो प्रजातियाँ होती है जो प्रजनन हेतु नदी में प्रवासन (migration) करती हैं व बांध बन जाने के कारण ऊर्ध्वप्रवाह व अनुप्रवाह में प्रवास नहीं कर पाती, जिससे उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है व उनकी संख्या में गिरावट आ जाती है। नतीजन, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित होने के लिए बाध्य है, अतः यह अति महत्वपूर्ण है कि बांध के निर्माण से पहले प्रस्तावित परियोजना क्षेत्र के आसपास के क्षेत्रों में नदी और उसकी सहायक नदियों की लिमोनोलॉजिकल (limnological) विशेषताओं का अध्ययन किया जाए ताकि जलीय जीवों पर बांध के संभावित प्रभावों को समझा जा सके और नदी में मछलियों व वनस्पतियों पर प्रभावों को कम करने के लिए प्रबंधन योजनाओं को प्रस्तावित किया जाए।

 

सिंधु नदी की जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर परियोजना निर्माण से संभावित प्रभावों का मूल्यांकन:

इस संबंध में, Centre of Research for Development, (CoRD), कश्मीर विश्वविद्यालय द्वारा अक्तूबर, 2004 में परियोजना हेतु पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) व पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) तैयार किया गया है। ईआईए अध्ययन में सिंधु नदी के प्रासंगिक भाग की जलीय पारिस्थितिकी का विस्तृत अध्ययन किया गया है।

 

  • जलीय वनस्पति: ईआईए अध्धयन के दौरान मछलियों की प्रजातियों के साथ साथ विभिन्न साइटों से कुल 29 फाइटोप्लांकटन प्रजातियों को दर्ज किया गया था। इनमें 14 बेसिलिरिओफाईसी, 10 क्लोरोफाईसी और 5 सियानोफाईसी के थे। सिंधु और उसकी सहायक नदियों में फाइटोप्लांकटन की तुलना में फाइटोबेन्थोस प्रजातियों को काफी अधिक संख्या में पाया गया। प्लवक और बनथिक दोनों समुदायों में प्लवकवादी समूह जैसे यूग्लीनोफाईसी (Euglenophyceae), क्राइसोफाईसी (Chrysophyceae) और ज़ैंथोफाईसी ( Xanthophyceae ) पूरी तरह से अनुपस्थित पाये गए थे।

 

  • जलीय जीव: माइक्रो – अकशेरूकीय (Macro-invertebrates) , सूक्ष्म – उपभोक्ताओं और मछलियों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी का गठन करते हैं और एक जलीय प्रणाली में डेट्राइटस आधारित मत्स्य की सफलता का निर्धारण भी करते हैं। फाइलम आर्थोपोडा को दो वर्गों – इंसेक्टा और एम्फीपोड़ा द्वारा दर्शाया गया है। इन कीट द्वारा पूरे वर्ष भर सभी नमूना स्थलों पर मैक्रो-इनवर्टेब्रेट समुदाय के प्रमुख भाग का गठन किया गया । हेमिप्टेरा ( Hemiptera ) और डिप्टेरा ( Diptera ) द्वारा कीटों के प्रमुख भाग का गठन किया गया। यह जलीय वनस्पति व जलीय जीव ही पानी में मछलियों का प्राकृतिक भोजन होते हैं इसलिए इनका अध्ययन भी आवश्यक है क्यूंकी इनकी संख्या में गिरावट प्राकृतिक पर्यावरण में मछलियों की उत्तरजीविता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है।

 

  • सिंधु नदी में मत्स्य विविधता: ईआईए सर्वेक्षण के दौरान सिंधु और इसकी सहायक नदियों से एकत्र की गई आठ मछली प्रजातियां पायी गयी थीं: साइजोथोरैक्स प्लाजियोस्टोमस (Schizothorax plagiostomus), साइजोथोरैक्स लैबियाटस (Schizothorax labiatus), साइजोथोरैक्स प्रोगैस्टस (Schizothorax progastus), टायकोंबारबस कोनिरोस्ट्रिस ( Ptychobarbus conirostris ), डिप्टीचस मैक्युलेट्स (Diptychus maculates) (साइप्रिनिडे/Cyprinidae), ट्रिपलोफिसा स्टॉलिकजैक (Triplophysa stoliczkae) (बैलीटोरिडा/Balitoridae) और ग्लाइप्टोस्टेरनन रेटिकुलटम (Glyptosternum reticulatum) (सेसोरिडा/Sisoridae) । सिंधु और उसकी सहायक नदियों से अब तक रिपोर्ट की गई मछलियों की कुल संख्या 15 है। परियोजना क्षेत्र के संग्रह स्थलों से एकत्रित मछलियाँ सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के विभिन्न हिस्सों में व्यापक रूप से वितरित है। साइजोथोरैक्स और टायकोंबारबस लद्दाख की नदी की सच्ची प्रजातियाँ हैं, जो टरबिड  (turbid) जल में निवास करती हैं, जबकि डिप्टीचस स्वच्छ बड़ी धाराओं में निवास करती है।

 

 

जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभावों का प्रबंधन/शमन :

EMP में बांध के सभी संभावित प्रभावों को नियंत्रित करने या शमन के उद्धेश्य से अध्यायवार प्रबंधन व्यवस्थाओं का विस्तृत उल्लेख किया गया है।एक नदी के मत्स्य विविधता पर प्रभाव को कम करने के लिए आमतौर पर कई उपाय किए जाते हैं। उदाहरण के लिए,  मछली के ऊर्ध्वप्रवाह व अनुप्रवाह प्रवास के लिए बांध में विभिन्न प्रकार के फिशवेज (मछली के लिए रास्ता) प्रदान किए जा सकते हैं। हालांकि, वर्तमान बांध की ऊंचाई को ध्यान में रखते हुए ‘मछली की सीढ़ी’ (फिश लैडर) प्रभावित मछली को कोई राहत प्रदान नहीं कर सकता। अतः एक अन्य उपाय जो मछली को बांध के ऊपर और नीचे जाने में मदद कर सकता है, वह है “मछली बायपास” का प्रावधान। हालांकि, सिंधु की स्थानीय स्थलाकृति मछली बाईपास के प्रावधान को लगभग असंभव और अव्यवहार्य बनाती है।एक तीसरा विकल्प बांध संरचना में एक मछली लिफ्ट का समावेश है। परंतु साइप्रिनिड मछली के मामले में अपने कार्य के लिए जैविक अनिश्चितता इत्यादि  इस विकल्प को भी अव्यवहार्य बनाती है। अतः प्रस्तावित किया गया कि मछली के प्रसार की तकनीक को अपनाकर निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त किया जाना चाहिए। नदी में मछलियों के बाधित प्रवासन की संभावनाओं की भरपाई के लिए जैविक और आर्थिक रूप से सबसे अच्छा विकल्प कृत्रिम हैचिंग और नदी और जलाशय की निरंतर बहाली का विकल्प प्रतीत होता है। इसलिए, परियोजना क्षेत्र में मछली हैचरी बनाने की सिफारिश को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा मंजूर की  गयी ।

 

 

परियोजना में मत्स्य प्रबंधन योजना का कार्यान्वयन:  

परियोजना में सभी प्रस्तावित पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया गया है व इस प्रयास में समय-समय पर परियोजना की समीक्षा की जाती है। राज्य मत्स्य विभाग द्वारा निर्मित व एनएचपीसी वित्त पोषित ट्राउट फिश हैचरी का निर्माण किया गया है। यह हैचरी कश्मीर विश्वविद्यालय व राज्य मत्स्य विभाग के मत्स्य विशेषज्ञों के परामर्श से मत्स्य प्रबंधन योजना के अंतर्गत विकसित की गयी है ताकि बांध द्वारा अवरोध के कारण होने वाली मछलियों के नुकसान की भरपाई की जा सके। निम्मों बाजगो पावर स्टेशन के पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) के तहत, मत्स्य विकास योजना हेतु कुल रु.142.44 लाख राज्य मत्स्य विभाग को प्रदान किए गए थे।

 

  • हैचरी के बारे में :

ट्राउट फिश हैचरी का उद्घाटन दिनांक 04.10.2016 को किया गया। इसके बाद लेह के गांव चुकोट शम्मा हैचरी को लगभग 4 कनाल 8 माल्रा (लगभग 0.22 हेक्टेयर क्षेत्र में चेन लिंक फेंसिंग द्वारा संरक्षित) के क्षेत्र में ‘लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद’, मत्स्य विभाग, लेह (लद्दाख) द्वारा विकसित किया गया है। प्रस्तावित योजना के अनुसार हैचरी में 3 जोड़े अमेरिकी प्रकार के रेसवे शामिल हैं। पानी की आपूर्ति हेतु  डिसिल्टिंग चैंबर के साथ वॉटर इनलेट चैनल बनाए गए हैं। पानी को पास के स्ट्रीम से चैनलाइज़ किया गया है। दो मंजिला हैचरी बिल्डिंग का निर्माण किया गया है जिसमे प्रथम फ्लोर पर फीड स्टोर रूम के साथ सर्विस कक्ष बनाया गया है व भू -तल पर हैचरी कॉम्प्लेक्स बनाया गया है। मछलियों का दाना श्रीनगर में सरकारी फीड मिल से खरीदा जाता है और फिर हैचरी के फीड स्टोर पर संग्रहीत किया जाता है। क्षेत्र के ठंडे और कठोर मौसम को ध्यान में रखते हुए रेनबो ट्राउट (sp. Salmo trutta fario) प्रजाति की मछलियाँ जो कि एक शीत अनुकुल प्रजाति है, उनका हैचरी में सफलता पूर्वक प्रजनन किया जा रहा है।

 

  • सामाजिक लाभ :

निम्मों बाजगो पावर स्टेशन के अंतर्गत निर्मित यह ट्राउट हैचरी आस-पास के क्षेत्र के विकास में अपना योगदान दे रही है व सिंधु नदी की प्राक्रतिक जैव संरचना को बनाए रखने के कार्य में एक स्तंभ की तरह लगातार कार्य कर रही है। यहाँ उत्पादित बीजों को आस-पास के क्षेत्र में निजी मछली फार्मों को बेच दिया जाता है जिससे स्थानीय मछ्ली पालन को बढ़ावा मिलता है व लोगों की आय बढ़ रही है। साथ ही क्षेत्र में गुणवत्ता वाले ट्राउट के बीज आम लोगों को उपलब्ध हो जाते है, जो की पूर्व में उन्हे श्रीनगर से निर्यात करने पड़ते थे। साथ ही परियोजना बांध के डाउन स्ट्रीम व अप स्ट्रीम में भी इन मछलियों की ranching/ stocking की जाती है ताकि उनका घनत्व नदी में स्थिर किये जाने के साथ प्राकृतिक प्रजनन स्तर में आयी गिरावट को संतुलित किया जा सके।

 

निष्कर्ष:

व्यापक अर्थ में देखा जाए तो निम्मों बाजगो परियोजना से पूर्व इस क्षेत्र में बिजली की उपलब्धता न्यूनतम थी,  दैनिक जरूरतों के लिए भी डीजल जनरेटर का उपयोग किया जाता था, जिसके कारण बिजली उत्पादन की उच्च लागत आती थी व क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर भी बढ़ रहा था। निम्मो बाजगो परियोजना ने इसके आसपास के क्षेत्र में स्थित 90 से अधिक गांवों के जीवन स्तर को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बेहतर बनाया है। पूरे वर्ष विश्वसनीय एवं प्रदूषण रहित विद्युत आपूर्ति के फलस्वरूप क्षेत्र में बागवानी, मुर्गीपालन, पशुपालन,डेयरी फार्मिंग व अन्य लघु / कुटीर उद्योगों को अच्छी सहायता मिल रही है। पर्यटन और होटल उद्योग विकसित हुए हैं एवं मछ्ली पालन को बढ़ावा मिलने से लोगों की आय आशा के अनुरूप बढ़ रही है।यह उल्लेखनीय है कि जलविद्युत का वैज्ञानिक और व्यवस्थित विकास हमेशा समाज के लिए एक वरदान साबित हुआ है । 

 

 

 आशीष कुमार दाश , उप महाप्रबंधक (पर्यावरण)

 

अनुराधा बाजपेयी, वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण)

 

पूजा कन्याल, सहायक प्रबंधक (मत्स्य)

 

 

संदर्भ : यह लेख, पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकनों के निष्कर्षों ,प्रबंधन योजनाओं की कार्यान्वयन, निगरानी और देश में जलविद्युत के बड़े पैमाने पर विकास के अनुभव पर आधारित है।
** चित्र आभार : लेखक
 **(राजभाषा ज्योति, अंक – 38 में पूर्व प्रकाशित)