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ज्ञात है कि सतत विकास के तीन प्रमुख स्तंभ होते हैं: आर्थिक विकास, सामाजिक विकास और पर्यावरण संरक्षण। इन तीनों स्तंभों में से, पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि पृथ्वी पर पर बढ़ते मानवजनित (anthropogenic) गतिविधियों के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन के साथ मानव स्वास्थ्य तथा अन्य जैव विविधता पर प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । हाल ही में कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान किए गए शोध में पाया गया कि न्यूनतम मानवजनित गतिविधि होने से पर्यावरण की गुणवत्ता में स्वतः सुधार होता है । इसे संज्ञान में लेते हुए हमें ‘सतत विकास’ के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक व्यवस्थित पर्यावरण संरक्षण प्रणाली को अपनाने की ज़िम्मेदारी को समझना होगा । इस संदर्भ में अपने देश का बहुचर्चित संविधान में समाविष्ट पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न प्रावधानों को इस ब्लॉग के माध्यम से उजागर करने तथा नागरिक को सजग करने का प्रयास किया गया है ।
किसी भी देश का संविधान सर्वोच्च कानून होता है जिसका अनुपालन करना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी होती है। भारतीय संविधान के भाग IV ‘राज्य नीति निदेशक तत्व’ और भाग IV-ए में ‘मौलिक कर्तव्यों’ का जिक्र किया गया है जिसके तहत, पर्यावरण का संरक्षण एवं संवर्धन हेतु राज्य सरकार की भूमिका व नागरिक के कर्तव्यों को समझाया गया है। चूँकि भारत क्षेत्रीय या वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित कई अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों का एक हस्ताक्षरकर्ता है, अतः भारतीय संविधान में इन संधियों और समझौतों की निर्णयों को अनुपालन करने का भी प्रावधान किया गया है जो निम्न अनुच्छेदों में वर्णित है :
- अनुच्छेद 48 क (राज्य नीति निदेशक तत्व): राज्य , देश के पर्यावरण का संरक्षण, संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा ।
- अनुच्छेद 51 ग (राज्य नीति निदेशक तत्व): राज्य, संगठित लोगों के एक दूसरे से व्यवहारों में अंतराष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का प्रयास करेगा ।
- अनुच्छेद 51ग (छ)(मूल कर्तव्य) : भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी व वन्य जीव हैं ,रक्षा करे और उसका संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखे ।
- अनुच्छेद 253 भाग XI (संघ और राज्यों के बीच संबंध): संसद को किसी अन्य देश या देशों के साथ की गई किसी संधि, करार या अभिसमय अथवा किसी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, संगम या अन्य निकाय में किए गए किसी विनिश्चय के कार्यान्वयन के लिए भारत के सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए कोई विधि बनाने की शक्ति है ।
संविधान के उपरोक्त अनुच्छेद 253 में दर्शाये गए मुद्दे के अनुपालन हेतु भारत सरकार द्वारा पर्यावरण संबन्धित विभिन्न राष्ट्रीय अधिनियमों जैसे पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 ; वायु एवं जल ( प्रदूषण निवारण व नियंत्रण ) अधिनियमों को जारी किया गया है जिसका अनुपालन विशेषकर विकासात्मक कार्यों के दौरान किया जाना करना अनिवार्य है जिससे कि भारत ‘सतत विकास’ के उद्देश्य को सफलतापूर्वक पूरा कर सके।
इसके अलावा, विगत कुछ वर्षों में न्यायिक सक्रियता द्वारा भारतीय संविधान में “ स्वच्छ पर्यावरण एक मौलिक अधिकार ” जैसी विशिष्ट प्रावधान मौजूद नहीं होने की मान्यता को खारिज करते हुए व्याख्या की गई है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन का अधिकार’ एक मौलिक अधिकार का अर्थ है, स्वच्छ वातावरण में जीवन जीना, बीमारी और संक्रमण के खतरे से मुक्त रहना। इस प्रकार, माननीय सर्वोच्च न्यायालय व राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन जी टी) द्वारा समय-समय पर पर्यावरण संरक्षण मुद्दों पर अहम निर्णय दिया है जिसका अनुपालन अनिवार्य है।
मनोज कुमार सिंह
वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण)
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